सोमवार, 30 सितंबर 2019

जल जमाव से परेशान पटना--कौन जिम्मेवार ?
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अति वर्षा से पटना के लोहिया नगर यानी कंकड़बाग की से आज जो कष्टदायक स्थिति बनी है,यह तो होना ही था।
 निचली भूमि यानी ‘खाल’ जमीन में नालों की समुचित व्यवस्था किए बिना काॅलोनी बसा देंगे तो वही होगा, जो हो रहा है। सन 1967 में बिहार सरकार ने यह काॅलोनी बसाई थी।
 पहले वह धान के खेत और आम के बगीचे वाला इलाका था।
तब के  संबंधित लोहियावादी मिनिस्टर भोला प्रसाद सिंह ने इसका नाम लोहिया नगर रखवाया था।पर आज भी लोगबाग इसे कंकड़बाग ही कहते हंै।
जल निकासी की व्यवस्था में गड़बड़ी के कारण पटना के कई अन्य मुहल्ले के लोग भी पीडि़त हो रहे हैं।
यही हाल पश्चिम पटना स्थित दानापुर -खगौल रोड के आसपास के इलाकों का भी एक दिन  होने वाला है।
  निर्माणाधीन आठ लेन वाली दानापुर -खगौल सड़क के बाएं-दाएं बड़ी आबादी बड़ी संख्या में बसती जा रही है।
पर,जल निकासी की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है।
उस काम में कम से कम 25  हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।
 कब इतने पैसे आएंगे ? कहां से आएंगे ?
    मुहल्ले बसाने की जिम्मेदारी से राज्य सरकार ने खुद को मुक्त कर लिया है।
परिणामस्वरुप अब लोगबाग खुद ही जहां- तहां छोटे -छोटे भूखंड खरीद कर बसते जा रहे हैं।वहां न तो सड़क है ,न बिजली और न नाले।
ऐसी बेतरतीब बस्तियों में सामान्य दिनों में भी नालियों का मैला जल पड़ोस के घर में घुस जाता है और मारपीट की नौबत आ जाती है।
  बाढ़ और अति वर्षा अक्सर लोगों को यह अवसर देती है कि वे देख लें कि नगर में कौन सी जगह नीची है और कौन बसने लायक है।
फिर भी मकान बनाने से पहले भला कौन इन बातों पर ध्यान देता है !  
  बाद में तो कोसने के लिए सरकार है ही !

  

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