इतने लंबे समय तक मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भी मोदी पर भ्रष्टाचार-घोटाले का कोई सीधा आरोप नहीं लगा। यह बहुत बड़ी बात है। नाजायज तरीके से निजी संपत्ति उन्होंने नहीं बढाई। हालांकि वे अपनी अफसरशाही को अब तक भ्रष्टाचारमुक्त नहीं बना सके। मुक्त बनाना तो असंभव लगता है, पर यदि कम भी कर सके तो कितना ? नहीं कर सके तो क्यों ?
2014 के 15 अगस्त को मोदी ने कहा था कि न खाऊंगा और न खाने दूंगा। पहला वादा तो उन्होंने पूरा किया, पर दूसरा क्यों नहीं कर सके? नरेंद्र मोदी पर परिवारवाद का आरोप नहीं लगा। उनपर जातिवाद का भी कोई आरोप नहीं है। एक साथ ये तीनों गुण इस देश के बहुत ही कम नेताओं में रहे हैं।
ध्यान देने लायक बात है कि इतने लंबे समय तक सत्ता में बने रहने के बावजूद ये गुण कायम रहे। मोदी की उपलब्धियां तो और भी हैं। उन उपलब्धियों के कारण ही दूसरी बार अपेक्षाकृत अधिक लोगों ने उनके नाम पर वोट दिए। यह भी कहा जा सकता है वे इस देश के एक मात्र नेता हैं, जिन्होंने अपने बल पर लगतार दो -दो बार लोकसभा के चुनाव जीते।
अपने इस पोस्ट पर मैं आलोचनाएं झेलने को तैयार हूं। यदि जवाब से मेरा ज्ञानवर्धन होगा, नई जानकारियां मिलेंगी तो मुझे खुशी होगी। सिर्फ आलोचना के लिए ही आलोचना नहीं करनी चाहिए। मेरा तो मानना है कि लोकतंत्र में मोदी के अंधभक्तों के लिए भी गुंजाइश होनी चाहिए और मोदी के अंधविरोधियों के लिए भी। हजारों फूल खिलने दो!
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