दुष्यंत कुमार की याद में
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कभी दुष्यंत कुमार की गजलों ने देश की तरुणाई को नए मंत्र देकर उद्वेलित किया था।
इसी महीने की पहली तारीख को उनका जन्म हुआ था।
साल था 1933 ।
30 दिसंबर, 1975 को वे गुजर गए।
मात्र 42 साल की उम्र में !
शायद ईश्वर को भी इनकी गजलें अच्छी लगी होंगी,सो जल्द ही पास बुला लिया।
उनकी गजलों के कुछ नमूने पेश हैं--
1
..............................................................................................
मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे,
मेरे बाद तुम्हें मेरी याद दिलाने आएंगे।
2
.........................................................................................................
जिंदगानी का कोई मकसद नहीं है,
एक भी कद आज आदमकद नहीं है।
3
....................................................................................................................
पक गई हैं आदतें ,बातों से सर होगी नहीं,
कोई हंगामा करो ,ऐसे गुजर होगी नहीं।
4
............................................................................................................
अब किसी को भी नजर आती नहीं कोई दरार,
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार।
5
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मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूं,
वो गजल आपको सुनाता हूं।
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कभी दुष्यंत कुमार की गजलों ने देश की तरुणाई को नए मंत्र देकर उद्वेलित किया था।
इसी महीने की पहली तारीख को उनका जन्म हुआ था।
साल था 1933 ।
30 दिसंबर, 1975 को वे गुजर गए।
मात्र 42 साल की उम्र में !
शायद ईश्वर को भी इनकी गजलें अच्छी लगी होंगी,सो जल्द ही पास बुला लिया।
उनकी गजलों के कुछ नमूने पेश हैं--
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मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे,
मेरे बाद तुम्हें मेरी याद दिलाने आएंगे।
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जिंदगानी का कोई मकसद नहीं है,
एक भी कद आज आदमकद नहीं है।
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पक गई हैं आदतें ,बातों से सर होगी नहीं,
कोई हंगामा करो ,ऐसे गुजर होगी नहीं।
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अब किसी को भी नजर आती नहीं कोई दरार,
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार।
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मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूं,
वो गजल आपको सुनाता हूं।
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