शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

  भ्रष्टाचार का धंधा घाटे का या मुनाफे का ?
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हर्षद मेहता और जे.जयललिता पर भीषण  भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे।
 हर्षद को सजा भी हो गई थी।
वह जेल में ही 2001 में मर गया।
  जे.जयललिता की सह आरोपित शशि कला को जयललिता के निधन के बाद कोर्ट से सजा हुई।
 यदि जय ललिता जीवित होती तो उसे भी सजा हो ही जाती।
जय ललिता का 2016 में निधन हुआ।
जेल में उसे काफी शारीरिक परेशानी हुई थी।मेहता को भी।
  अब सवाल है कि ‘भ्रष्टाचार का धंधा’ हर्षद मेहता और जय ललिता के लिए कुल मिला कर घाटे का सौदा रहा या मुनाफे का ?
 यानी ‘खर्चा-पानी’ काट कर कितना बचा होगा ? 
या कुछ भी नहीं बचा ?
हिसाब करते समय मुकदमेबाजी व माल जब्ती के अलावा उसका भी आकलन होना चाहिए कि जेल यात्रा के कारण शरीर को कितने का नुकसान हुआ।जीवित रहते तो जायज तरीके से भी कितना कमा लेते ?
 अपनी व अपने खानदान की छवि की यदि कोई कीमत हो सकती हो तो वह कितने का गंवा दिया ? 
 इस मामले में यदि कोई शोध हो तो वत्र्तमान व भविष्य के घोटालेबाजों को उससे शिक्षा मिल सकती है,यदि वे लेना चाहंे तो।अन्यथा मेहता और जयललिता की गति को प्राप्त करने से भला कौन रोक सकता है ?
अरे भई, ‘भ्रष्टाचार के धंधे’ मेंं लाभ न हो तो  फिर भी उसे  क्यों जारी रखना  ! ?

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