बुधवार, 25 सितंबर 2019

मध्यस्थता की गुंजाइश है कहां ?
..................................................................
अमरीकी राष्ट्रपति कश्मीर पर बार -बार मध्यस्थता की
पेशकश कर रहे हैं।
 पर, सवाल है कि मध्यस्थता की गुंजाइश है कहां ?
1994 में भारतीय संसद ने सर्वसम्मत से यह प्रस्ताव पास किया कि पी.ओ.के.सहित पूरा कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
कांग्रेस सरकार या बाद की किसी भी सरकार को उस प्रस्ताव से पीछे हटकर कोई समझौता करने की न हिम्मत थी और न ही जरुरत।
   अब मोदी सरकार ने 370 और 35 ए को निष्प्रभावी बना दिया है।
क्या इस निर्णय से मोदी सरकार पीछे जा सकती है ?
न तो उसकी जरुरत है और न ही हिम्मत। 
  उधर कश्मीर के अलगाववादी व दुनिया के कुछ जेहादी गिरोह कश्मीर को भारत से अलग करके वहां इस्लामिक शासन कायम करना चाहते हैं।
वे भी उस लक्ष्य से पीछे हटने को कत्तई तैयार नहीं।
  फिर तो मध्यस्थता के नाम पर अमरीकी राष्ट्रपति आखिर करंेगे क्या ?
वे सिर्फ इतना ही कर सकते हैं कि फिलहाल वे फुर्सत के क्षणों में सेम्युअल पी. हंटिंग्टन की ‘क्लैस आॅफ सिवलाइजेशन’ वाली किताब पढ़ सकते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: