शुक्रवार, 29 दिसंबर 2017

 जरूरत बेहतर साफ- सफाई की ही अधिक है।
पर, वह तो एक आदर्श है जिसे हासिल करने की हमें कोशिश जारी रखनी  चाहिए।
पर, इस बीच बिहार के जो मरीज औकात से अधिक  खर्च करके मुम्बई तथा दूसरी जगह बेहतर इलाज के लिए जाने को मजबूर हैं,उनके लिए थोड़ी राहत हो जाएगी, यदि यहां अस्पताल खुले।
  बेहतर साफ -सफाई और पर्यावरण की रक्षा जब दिल्ली की भी नहीं हो पा रही है जहां देश की सबसे ताकतवर सरकार निवास करती है, तो देश के बाकी हिस्से के बारे में क्या कहा जाए !
  ब्रिटेन के लोग गंदी टेम्स नदी की सफाई कर सकते हैं,पर हम लोग औषधीय गुणों  वाली मां गंगा को गंदे नाले मंे परिणत करते जा रहे हैं।गंगा के किनारे वाले जिलों में कैंसर का प्रकोप अधिक है।
   एम.सी.मेहता की लोक हित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 1993 में ही कें्र्रद्र और राज्य सरकारों को निदेश दिया था कि प्राथमिक स्कूलों से लेकर विश्व विद्यालय स्तर तक पर्यावरण विज्ञान की पढ़ाई पृथक व अनिवार्य विषय के रूप में हो।
  इस आदेश का कितना पालन हुआ ? हुआ भी तो कितना हुआ  ? मेरी जानकारी के अनुसार तो नहीं हुआ।जबकि इस आदेश के उलंघन के कारण अदालत ने कुछ राज्य सरकारों पर जुर्माना भी किया था।मेरी जानकारी के अनुसार इसमें भी निहितस्वार्थ बाधक बन गया था।
मेरी बेटी इन दिनों पर्यावरण विज्ञान में पीएच.डी.कर रही है।उसकी ससुराल यानी उसके घर जब भी मैं जाता हूं, तो उसकी साफ- सफाई देख कर सुखद आश्चर्य होता है।हालांकि उसकी ससुराल वाले भी पहले से ही सफाई के  मामले में काफी सतर्क रहे हैं।
 पर, जब वह पर्यावरण की पढ़ाई कर रही थी और हमारे साथ थी तभी  से हमलोगों को पर्यावरण व साफ -सफाई को लेकर जागरूक करती रहती थी।
यानी पढ़ाई और जागरूकता का कितना असर होता है, मैंने खुद देखा है।
सिर्फ जरूरत है इस बात की कि सरकारें भी अपने स्वार्थ छोड़कर इस ओर गंभीरता से काम करे।
पर जब प्रभुता, सत्ता और देश चलाने वाले लोग ही अपनी और अगली पीढि़यों की असामयिक मौत को खुद ही बुलाने पर अमादा हों तो कोई क्या कर सकता है ?

   

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