मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

  हिमांशु जी, मेरी मंशा पर शक करने के बदले तथ्यों पर बात कीजिए।इसलिए कि मैं आपकी मंशा पर शंक नहीं करता।आप अपना काम कीजिए। मुझे अपना काम करने दीजिए।मैं यही काम इसी गति में लगभग 45 साल से कर रहा हूं।किसी के मात्र दस-बीस लेख पढ़कर उसके बारे में कोई राय नहीं बनानी चाहिए।कुछ अधिक जानना हो तो मेरा ब्लाॅग पढि़ए।
उसमें मेरे सैकड़ों लेख मिलेंगे।उसमें आपके सवालों के जवाब शायद मिल जाएं।
 वैसे उन्हें तो कोई जवाब कभी नहीं मिलेगा जो मुझे अपनी कार्बन काॅपी के रूप में देखना चाहते हैं।
 हां, यदि मेंरे तथ्यों मंे कमी हो तो बताइए।स्वागत करूंगा।
मेरी जानकारी  के अनुसार 2 -जी केस में अभियोजन पक्ष की ओर से साक्ष्य पेश करने का समय नवंबर, 2013 में ही समाप्त हो गया था।
सी.बी.आई.की सहमति से  अभियोजन पक्ष ने  आग्रह किया था कि बचाव पक्ष अब अपना साक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है।
   ं केंद्र की  नई सरकार उससे करीब चार -पांच महीने बाद सत्ता में आई।
उसके बाद वह क्या कर सकती  थी जो उसने  नहीं किया ? उसे कानूनन क्या करना चाहिए था ?  इस संबंध में किसी संबंधित जानकार व्यक्ति से पता करके मुझे बताइएगा तो मेरा ज्ञानवर्धन होगा ।और लोग भी जान जाएंगे कि सरकारों का कैसा चरित्र होता है। देखिए, मैं  यह मान कर चलता हूं कि लगभग सभी सरकारें भ्रष्ट होती हैं। अधिकतर नेता अवसरवादी होते हैं।
कुछ कम तो कुछ ज्यादा। तो कुछ  और भी ज्यादा।मुझे याद है कि अटल बिहारी सरकार ने अपने शासन काल के अंतिम चार महीनों में किस तरह बोफर्स केस को जाने या अनजाने खराब कर दिया  था।
  जनता   खास समय पर जिसे सबसे कम भ्रष्ट समझती है,उसे वोट देकर सत्ता दे देती है।वैसे उन मतदाताओं को छोड़कर यह बात की जा रही है जो जाति, विचार धारा, संप्रदाय तथा व्यक्तियों को प्राथमिकता देते हैं।
बाकी बातें उनके लिए गौण होती हैं।हां, विभिन्न दलों में कुछ नेता  ईमानदार होते हैं तो कुछ अन्य नेता  भ्रष्ट। कुछ अत्यधिक भ्रष्ट।


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