सी.राज गोपालाचारी यानी राजा जी कई बातों के लिए याद किए जाते हैं।
वे न सिर्फ आजाद भारत के पहले और आखिरी भारतीय गवर्नर जनरल थे बल्कि उन्होंने 1959 में एक ऐसी गैर कांग्रेसी पार्टी यानी स्वतंत्र पार्टी बनाई जिसे 1967 में लोक सभा में 44 सीटें मिलीं।
तब तक इतनी अधिक सीट किसी अन्य प्रतिपक्षी पार्टी को नहीं मिल सकी थी।
आजादी के बाद तब के गवर्नर जनरल लाॅर्ड माउंट बेटन वापस जाने लगे तो सवाल उठा कि उनकी जगह कौन लेगा।
कांग्रेस पार्टी की राय सरदार बल्लभ भाई पटेल के पक्ष में थी ।किंतु प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू की जिद पर राज गोपालाचारी गवर्नर जनरल बने।उससे पहले राजा जी पश्चिम बंगाल के गवर्नर रह चुके थे।
सन 1950 में जवाहरल लाल जी, राजा जी को राष्ट्रपति बनवाना चाहते थे।पर , सरदार पटेल की जिद पर डा.राजंेद्र प्रसाद बने।
सरदार पटेल के निधन के बाद राजा जी देश के गृह मंत्री बने थे।पर नेहरू के साथ सैद्धांतिक मतभेद के कारण वे उस पद से 10 महीने में ही हट गए।
हालांकि बाद में भी राजा जी मद्रास के मुख्य मंत्री बने।
वे 1937-39 में भी वहां के मुख्य मंत्री यानी प्रीमियर रह चुके थे।
पर कभी उन्होंने अपने विचारों से समझौता नहीं किया।
राजा जी खुली अर्थ व्यवस्था के कट्टर समर्थक थे।
इसीलिए जब उन्होंने स्वतंत्र पार्टी बनाई तो उससे बड़े -बड़े उद्योगपति व राजा महाराजा जुड़े।फिर भी कुछ कारणवश जवाहर लाल नेहरू उन्हें पसंद करते थे।
राजा जी 1952 से 1954 तक मद्रास के मुख्य मंत्री थे।उनके ही मुख्य मंत्रित्व काल में मद्रास से अलग होकर 1953 में भाषा के आधार पर आंध्र प्रदेश अलग राज्य बना।
गांव के स्कूल से अपनी शिक्षा प्रारंभ करने वाले राजा जी विद्वान लेखक ,वकील और राज नेता थे ।उन्होंने ऊंची शिक्षा हासिल की थी।राजा जी का जन्म मद्रास प्रेसिडेंसी के एक गांव में 10 दिसंबर 1878 को हुआ था।उनका निधन 25 दिसंबर 1972 को हुआ।
उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के प्रभाव में आकर 1911 में सार्वजनिक जीवन की शुरूआत की।
सन 1919 में वे गांधी जी से जुड़े।
वे गांधी जी से पारिवारिक रूप से जुड़ गए थे।
राजा जी की बेटी लक्ष्मी की शादी महात्मा गांधी के चैथे पुत्र देव दास गांधी से हुई थी।देवदास गांधी हिन्दुस्तान टाइम्स के प्रबंध संपादक थे।
देव दास गांधी -लक्ष्मी के पुत्र राज मोहन गांधी, राम चंद्र गांधी और गोपाल कृष्ण गांधी हुए।राम चंद्र गांधी का 2007 में निधन हो गया।गोपाल कृष्ण गांधी पश्चिम बंगाल के गवर्नर थे।
राजा जी हमेशा ही स्वतंत्र विचार के राज नेता रहे ।
वे जो ठीक समझते थे,वही करते थे।उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का समर्थन नहीं किया था।उनके अपने तर्क थे जो गांधी जी से नहीं मिलते थे।
इसीलिए जब जवाहरलाल नेहरू ने उन्होंने राष्ट्रपति बनाने का प्रस्ताव किया तो कांग्रेस पार्टी ने उनका कड़ा विरोध कर दिया।
विरोध इसी आधार पर हुआ कि जिस व्यक्ति ने कांग्रेस की सबसे कठिन लड़ाई में हमारा साथ नहीं दिया ,उन्हें हम राष्ट्रपति कैसे बनाएं।
हालांकि दूसरी ओर अपने निधन से पहले राजाजी ने एक बार सार्वजनिक रूप से कहा था कि आजादी के बाद यदि जवाहर लाल नेहरू की जगह सरदार पटेल प्रधान मंत्री बने होते तो देश के लिए बेहतर होता।
@ फस्र्टपोस्ट हिंदी में 10 दिसंबर 2017 को प्रकाशित मेरा लेख@
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