रविवार, 24 दिसंबर 2017

  जावेद अख्तर ने हाल में कहा है कि जोधा बाई नाम की अकबर की कोई पत्नी नहीं थी।
यह तो ‘मुगल ए आजम’ फिल्म के  लेखक की कल्पना मात्र थी।
पर अख्तर साहब, आपको मालूम है कि उससे समाज के एक हिस्से 
को दूसरे के सामने नाहक कितना लज्जित होना पड़ा ?
साठ के दशक में बिहार में कांग्रेस विधायक दल के नेता पद का चुनाव हो रहा था।
मुख्यतः कायस्थ, यादव और राजपूत विधायक एक साथ थे।दूसरे पक्ष ने दबे स्वर में यह प्रचार किया कि ‘लाला, ग्वाला और अकबर के साला’ एक साथ हो गए हैं।कुछ ही समय पहले मुगल ए आजम फिल्म रिलीज हुई थी।
  अब बताइए कि ऐसी टिप्पणी सुनकर राजपूतों पर क्या बीतती होगी !
  पद्मावती के बारे में अनेक लोगों के मन में यह धारणा है कि वह जौहर करने वाली  बहादुर क्षत्राणी थीं।उन्होंने अपने पति को एक ताकतवर दुश्मन के कब्जे से छुड़ा लिया था।
  पर, पद्मावती फिल्म के प्रोमो में यह दिखाया गया है कि दीपिका पादुकोण यानी पद्मावती जब घूमर नाच कर रही हैं तो उसकी  पीठ और पेट नंगी हैं।
  क्या पद्मावती के प्रशंसकों की भावना आहत करने वाला यह दृश्य नहीं है ? ऐसे दृश्यों को उस फिल्म से निकाल देने में क्या हर्ज है ? 
क्या भावनाएं कुछ ही लोगों की आहत होती हैं ?
समझ में नहीं आता कि कभी-कभी कुछ लोग खास समूह या  समुदाय को क्यों नाराज और उत्तेजित करने पर तुल जाते हैं ?
यह सिर्फ राजपूतों का ही सवाल नहीं है।ऐसा अन्याय इस देश में कभी -कभी अन्य समुदायों और समूहों के साथ भी होता रहता है।यह सब प्रगतिशीलता व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर होता है।

  
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