बुधवार, 20 दिसंबर 2017


 मेरा डा.शिव नारायण सिंह  से कभी व्यक्तिगत परिचय नहीं हो सका।
पर, एक सामान्य मरीज के रूप में मैं उनसे 1972 में मिला था।तब वे पटना के राजेंद्र नगर में बैठते थे।
मुझे देखते ही वे समझ गए कि मुझे कोई खास  बीमारी नहीं है।उन्होंने आई.डी.पी.एल.निर्मित  सस्ती गोलियां लिख दीं।
मैंने जिद की कि सर, जांच लिख दीजिए।उन्होंने कहा कि क्यों बेकार पैसे खर्च करोगे ?
तुम्हारे पास बहुत पैसे हैं क्या ?
मैंने कहा कि मैं अपनी शंका दूर करना चाहता हूंं।फिर भी नहीं मान रहे थे।बहुत जिद करने पर उन्होंने जांच लिख दी।
जांच रपट में कोई खराबी नहीं आई।मैंने रपट दिखाई तो उन्होंने कहा कि मैं कह रहा था न !
जाहिर है कि उन्होंने दवा बदलने की जरूरत नहीं समझी।
बाद में मुझे किसी जानकार व्यक्ति ने बताया कि  शिव नारायण बाबू कई  कारणों से आई.डी.पी.एल निर्मित दवाएं लिखते थे।दवाएं अत्यंत सस्ती होती थीं।वे गरीबों का खयाल रखते थे।उन्हें निजी दवा कंपनियों से तो कमीशन लेनी नहीं थी।साथ ही दस पैसे के टेबलेट में कोई क्यों मिलावट करेगा ? उससे वह कितना लाभ कमाएगा ? उससे अधिक रिस्क है। वे यह बात जानते थे।इसलिए डा.सिंह की लिखी दवाएं भी कारगर होती थीं।
 बाद के वर्षों में भी  वे दस रुपए फीस लेते थे जबकि उन दिनों उनके स्तर के डाक्टर 40 रुपए लेते थे।बेटी की शादी में जब कुछ ज्यादा खर्च करना पड़ा तो शिव नारायण बाबू ने अपनी फीस थोड़ी सी बढ़ा दी थी।यह मैंने सुना था।पता नहीं कितना सच है यह।
  उनके शिष्य  डा.अरूण तिवारी आज भी अपने गुरू शिव नारायण बाबू के पद चिन्हों पर चल रहे हैं।तिवारी जी पटना के महेंद्रू मुहल्ले में प्रैक्टिस करते हैं।उनसे भी मैं कभी नहीं मिला।पर सुनता हूं  कि मरीज उन्हें भी धरती का भगवान मानते हैं।आज भी शायद तिवारी जी की फीस मात्र 50 रुपए ही है।सुनते हैं कि मर्ज की पहचान की उनकी क्षमता अद्भुत है।

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