रविवार, 24 दिसंबर 2017

  देश के थोड़े से चर्चित मुकदमों के बारे में संक्षिप्त बातें यहां पेश हैं।
यदि किसी मित्र के पास इस तरह के अन्य उदाहरण व जानकारियां भी हों तो कृपया साझा करें।
चारा घोटाले से जुड़े डी.ए.केस में लालू प्रसाद बहुत पहले ही अदालत से दोषमुक्त  हो चुके हैं।
जय ललिता-शशि कला हाईकोर्ट से रिहा हुई थीं, पर सुप्रीम कोर्ट 
ने उन्हें सजा दे दी।
कनिमोझी की रिहाई विवादास्पद है।ऊपरी अदालत में उनके साथ भी यथायोग्य हो सकता है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम को टेल्कम घोटाले में 2011 में पांच साल की सजा हुई थी।उससे पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री श्यामधर मिश्र को सजा हुई थी।उन पर हत्या का आरोप था।
खुद डा.जगन्नाथ मिश्र को 2013 में लालू प्रसाद के साथ ही सजा मिल चुकी है।
अजित सरकार हत्याकांड मुकदमे में क्या सी.बी.आई. ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी ?
शेयर घोटालेबाज हर्षद मेहता 2002 में जेल में ही मर गया।
पूर्व कंेद्रीय राज्य मंत्री मतंग सिंह जेल में हैं या बाहर ?
उत्तर प्रदेश के दो बड़े विवादास्पद नेता के भ्रष्टाचार जग जाहिर हैं।उनके खिलाफ पी.आई.एल. का क्या हाल है ?
 क्या कभी वे गिरफ्तार हुए ?
  23 दिसंबर 2017 को  लालू प्रसाद के साथ जगदीश शर्मा को भी सजा हुई और डा.मिश्र के साथ भगत और निषाद रिहा हो गए।
इस तरह के मुकदमों के अनेक उदाहरण हंै।
सारी चीजों को एक खास चश्मे से देखने से किसी को कोई लाभ नहीं होता।न व्यक्ति को, न देश को न ही किसी जाति  की अगली पीढि़़यों को।
 इस बात पर विचार क्यों नहीं करते कि लालू प्रसाद के साथ मंडल आरक्षण आंदोलन के समय यानी 1990 में पिछड़ी जातियों के जितने लोग थे, आज उतने क्यों नहीं हैं ? 
  अंग्रेजों के जाने के बाद से ही इस देश में सजा पाने का प्रतिशत घटता जा रहा है।लालू प्रसाद भी लंबे समय तक सत्ता में थे।उन्होंने 
अधिक से अधिक आरोपितों को सजा दिलवाने के लिए अभियोजन व्यवस्था को टाइट करने के लिए क्या किया ? इस दिशा में आज भी देश और खास कर बिहार में क्या हो रहा है ? 
अभी बिहार में सिर्फ दस प्रतिशत मामलों में ही सजा हो पाती है।हत्या के मामले में तो यह दो प्रतिशत ही है।यह स्थिति एक दिन में पैदा नहीं हुई ।न ही इसके लिए कोई एक सत्ताधारी नेता जिम्मेदार नहीं है। 


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