उन दिनों प्रभात खबर अंग्रेजी में भी छपता था।मैंने भी पढ़ा था।
आपने कमाल की रिपोर्टिंग करवाई थी।आपकी सराहना होती थी।
कुछ लोग हिम्मत की भी दाद देते थे।
दुर्भाग्यवश उन दिनों के प्रभात खबर की कटिंग मैं नहीं रख सका।
यू.एन.विश्वास के एक करीबी पत्रकार ने तब मुझे बताया था कि उसने वह लिस्ट देखी थी।पटना,रांची और दिल्ली के 55 पत्रकारों के नाम थे।रकम
10 हजार से 35 लाख रुपए तक।
शर्मनाक स्थिति थी।
मैं जनसत्ता के लिए रिपोर्टिंग करता था।
विनोद जी, आप से बेहतर कौन जान सकता है कि कितने तनाव में हम लोग रहते थे।
एक घोटालेबाज ने, जो तब जेल में था, अब भी जेल में हैं ,कई लोगों के सामने कहा था कि जेल से निकल कर सच्चिदानंद झा और सुरेंद्र किशोर की मुड़ी कटवा दूंगा।उत्तम सेन गुप्त तथा कई अन्य पत्रकारों की भूमिका शानदार थी।गर्व होता है ऐसे पत्रकारों पर।
समाज के हर संबंधित क्षेत्रों के प्रभावशाली लोगों के बीच पैसे बांटते थे वे घोटालेबाज।
इस देश में कितने लोग हैं जो घर आई लक्ष्मी का तिरस्कार करें ? जितने लोग हैं, उतने ही लोगों ने ठुकराया था।
@ मशहूर पत्रकार एस.एन.विनोद के एक लेख पर मेरी टिप्पणी@
आपने कमाल की रिपोर्टिंग करवाई थी।आपकी सराहना होती थी।
कुछ लोग हिम्मत की भी दाद देते थे।
दुर्भाग्यवश उन दिनों के प्रभात खबर की कटिंग मैं नहीं रख सका।
यू.एन.विश्वास के एक करीबी पत्रकार ने तब मुझे बताया था कि उसने वह लिस्ट देखी थी।पटना,रांची और दिल्ली के 55 पत्रकारों के नाम थे।रकम
10 हजार से 35 लाख रुपए तक।
शर्मनाक स्थिति थी।
मैं जनसत्ता के लिए रिपोर्टिंग करता था।
विनोद जी, आप से बेहतर कौन जान सकता है कि कितने तनाव में हम लोग रहते थे।
एक घोटालेबाज ने, जो तब जेल में था, अब भी जेल में हैं ,कई लोगों के सामने कहा था कि जेल से निकल कर सच्चिदानंद झा और सुरेंद्र किशोर की मुड़ी कटवा दूंगा।उत्तम सेन गुप्त तथा कई अन्य पत्रकारों की भूमिका शानदार थी।गर्व होता है ऐसे पत्रकारों पर।
समाज के हर संबंधित क्षेत्रों के प्रभावशाली लोगों के बीच पैसे बांटते थे वे घोटालेबाज।
इस देश में कितने लोग हैं जो घर आई लक्ष्मी का तिरस्कार करें ? जितने लोग हैं, उतने ही लोगों ने ठुकराया था।
@ मशहूर पत्रकार एस.एन.विनोद के एक लेख पर मेरी टिप्पणी@
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