गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

 मेरा मानना है कि गुजरात में कांग्रेस के बेहतर चुनावी 
रिजल्ट के पीछे मुख्यतः पाटीदार नेता हार्दिक पटेल हैं।
जो लोग कांग्रेस की लोकप्रियता बढ़ने का दावा कर रहे हैं,उन्हें हिमाचल प्रदेश का रिजल्ट देखना चाहिए।
कांग्रेस को इस बार 2007 की अपेक्षा वहां 2 सीटें कम ही आई हैं।
  अब इस बात पर गौर करें कि कांग्रेस ने किस कीमत पर हार्दिक का साथ लिया  ? पाटीदारों यानी पटेलों के लिए आरक्षण देने के वायदे की कीमत पर।क्या यह संभव भी है ?
थोड़ी देर के लिए मान लीजिए कि 2019 में केंद्र में कांग्रेस या उसके गठबंधन की सरकार बन जाए।तो क्या वह सरकार हार्दिक पटेल की मांग को लागू कर देगी  ? क्या वह पाटीदारों के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकती है ?
 अभी तो मौजूदा स्थिति में इस काम को मैं लगभग असंभव ही मानता हूं।
क्योंकि पाटीदारों को आरक्षण देेने की राह में कई बाधाएं हैं।
संविधान के अनुच्छेद -340 में यह प्रावधान है कि ‘जो आबादी सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी है ,उनकी दशा सुधारने के लिए सरकार उपाय करेगी।’
मंडल आयोग उसी अनुच्छेद को ध्यान में रखते हुए बना था।
सामाजिक और शैक्षणिक रूप से कौन सी जातियां पिछड़ी हैं, इसके सर्वेक्षण के लिए एक और आयोग बन सकता है।
क्या पाटीदार शैक्षणिक रूप से गुर्जर, जाट और मराठा तथ कुछ अन्य से पिछड़ा है ? यदि नहीं तो सबके लिए आरक्षण करना पड़ेगा।
यह भी हो सकता है कि  बिहार -उत्तर प्रदेश की कोई सवर्ण जाति भी पाटीदार से शैक्षणिक रूप से पीछे हो।
उत्तर भारत की भी कोई एक सवर्ण जाति कह सकती है कि वह एक दूसरी सवर्ण जाति की अपेक्षा सामाजिक रूप से पिछड़ी है।
एक को आरक्षण देने पर देश भर की ऐसी ही दूसरी जातियां उद्वेलित हो जाएंगी।फिर सरकारें उनको कैसे संभालेंगी ?
 इस देश की अनेक मजबूत जातियों में तोड़फोड करने की क्षमता पाटीदारों से भी अधिक है।
 फिर क्या होगा ? किसे आरक्षण मिलेगा,किसे नहीं मिलेगा ?क्या सत्ताधारी दल को संविधान संशोधन लायक बहुमत मिल पाएगा ?
उधर 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है कि 50 प्रतिशत से अधिक सीटें आरक्षित हो ही नहीं सकतीं।उस समस्या से कपिल सिबल की पार्टी सत्ता में आने के बावजूद कैसे पार पाएगी ? क्या सुप्रीम कोर्ट उनके वश में है ? क्या इस या उस संबंध में किसी संविधान संशोधन को अदालत रद नहीं कर देगी ?
याद रहे कि कपिल सिबल ने ही गत माह हार्दिक पटेल को आरक्षण का भरोसा दिया ।इस पर भाजपा ने कहा था कि दोनों ने एक दूसरे को ठगा।
 दरअसल पाटीदारों और इस तरह  देश  की कुछ अन्य जातियों की मुख्य समस्या कृषि संकट है।कृषि संकट के कारण खेतिहर मजदूरों को भी उचित मजदूरी नहीं मिल पाती है।
उससे उबारने के लिए केंद्र सरकार को कड़े और बड़े कदम उठाने पड़ेंगे।उसी से समस्या के मूल पर प्रहार हो सकेगा।
 पिछले उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार अमेरिकी सरकार अपने  किसानों को हर साल नकद 2000 करोड़ डालर सब्सिडी देती थी।शायद अब बढ़ भी गया होगा।जबकि वहां 2 प्रतिशत लोग ही खेती पर निर्भर हैं।
 ऐसी सब्सिडी या किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए दूसरे उपायों पर जो भी खर्च आए, भारत सरकार को वे पैसे जुटाने ही होंगे।
  यदि इस देश में ईमानदारी से टैक्स वसूली हो और सरकारी 
योजनाओं और कल्याण के पैसों की बंदरबांट बंद हो तो देश के किसानों को संतुष्ट किया जा सकेगा।पर इसके लिए किसी सरकार के पास सचमुच 56 इंच का
सीना होना जरूरी है।क्योंकि इस देश के टैक्स चोर, भ्रष्ट नेता व्यापारी और अफसर बहुत ताकतवर हो चुके हैं।
  यदि ऐसा कुछ जल्द नहीं हुआ तो आर्थिक संकट राजनीतिक संकट पैदा करता रहेगा।
कभी वह संकट चुनाव की दृष्टि से एक सत्ता पार्टी पर भारी पड़ेगा तो कभी दूसरी सत्ता पार्टी पर।
  हमारे देश में साधन कितने हैं, इसका अनुमान एक आंकड़े से लग सकता है।1985 में राजीव गांधी ने कहा था कि ‘हम दिल्ली से 100 पैसे भेजते हैं और उसमें से मात्र 15 पैसे जनता तक पहुंचते हैं।’
इस भारी लूट के बावजूद 1985 तक देश में कुछ विकास तो हुआ ही था।
यदि कोई सरकार इस अनुपात को उलट दे तो किसानों के
लिए भी समुचित पैसे नहीं निकल जाएंगे ? 



  

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