मैंने अपने पोस्ट की अंतिम लाइन में वी.पी.सिंह को उधृत करते हुए यह लिखा है कि ‘मैंने कभी यह आरोप नहीं लगाया कि राजीव गांधी को पैसे मिले हैं।’
दरअसल 1989 के लेास चुनाव में कांग्रेस इसलिए हार गयी क्योंकि वी.पी.सिंह बोफर्स के दलालों पर आरोप लगा रहे थे और राजीव और उनके दल के लोग दलालों का बचाव कर रहे थे।
मतदाताओं ने समझा कि जरूर दाल में कुछ काला है।इसलिए कांग्रेस हार गयी। 1988 में पटना के एक प्रेस कांफंे्रस में मैंने वी.पी.सिंह से यह सवाल किया था कि ....तब आप राजीव गांधी से इस्तीफा की मांग क्यों नहीं करते ? इस पर उन्होंने कहा कि आप कोई सिरियस सवाल कीजिए।
जहां तक जल्दीबाजी में केस के निपटारे का सवाल है, तो उसके बारे में कुछ बातें।
2 दिसंबर, 1989 को वी.पी.प्रधान मंत्री बने और 22 जनवरी को
बोफर्स में प्राथमिकी दर्ज कर दी गयी।
जिस घोटाले का अतंरराष्ट्रीय विस्तार हो,उसमें आखिर कितनी जल्दीबाजी हो सकती थी ?
एक बात और थी।कांग्रेस के अलावा भी कुछ दूसरे दलों के बड़े -बड़े नेता भी इस केस को दबाने में लगे थे।देश -विदेश की अदालतों में तरह -तरह की अपील करके मामले को लंबा खींचा जा रहा था।
जब -जब कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकारें आईं , केस को कमजोर करने के काम हुए।
इसके बावजूद अटल सरकार के कार्यकाल में 1999 में आरोप पत्र दाखिल किया गया।आरोप पत्र के सेकेंड काॅलम में आरोपित के रूप में राजीव गांधी का भी नाम है।
मृतक आरोपित का नाम उसी कालम में होता हैं।यदि वी.पी.सिंह और जांच एजेंसियों ने सारे संबंधित सबूत एकत्र नहीं किए होते तो आरोप पत्र कैसे तैयार होता ? केस इतना मजबूत था कि कांग्रेस सरकार भी कोर्ट में ट्रायल का सामना करने को कभी तैयार नहीं हुई।वह केस वापस ही कर रही थी।
बिहार के तब के एक कांग्रेसी विधायक ने इस संबंध में मुझे एक सनसनीखेज बात बताई थी।उस विधायक को राजीव जी के कारण ही 1985 ं टिकट दिया गया था।वह अब भी राजीव के कट्टर प्रशंसक हैं।राजीव से बातचीत के आधार पर बोफर्स पर उस विधायक @अब पूर्व@ ने किताब लिखी है।वह किताब मेरे पास भी है।
उसमें यह कहा गया है कि बोफर्स सौदे में दलाली राष्ट्र हित के एक खास काम के लिए ली गयी थी।वह राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित काम था।
वह गुप्त काम था।
उस गुप्त काम की चर्चा उस किताब में है।पर मैं उसे जाहिर करना नहीं चाहता।
पूर्व विधायक के अनुसार उसे राजीव जी देशहित में सार्वजनिक नहीं कर सकते थे चाहे उनकी गददी ही क्यों न चली जाए।इसीलिए उन्होंने लगातार क्वात्रोचि का बचाव किया।
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