1.-राज्य सभा में अनुशासन हीनता के कारण 3 सितंबर, 1962 को समाजवादी सदस्य गौड मुरहरि सत्र की बाकी बैठकों के लिए निलंबित कर दिए गए।
इसके बावजूद जब वे सदन से बाहर जाने को तैयार नहीं हुए तो उन्हें मार्शल के जरिए बाहर कर दिया गया।
2.- 25 जुलाई, 1966 को समाजवादी राज नारायण और मुरहरि ऐसे ही कारणों से एक सप्ताह के लिए निलंबित किए गए और सदन से जबरन निकाल बाहर कर दिए गए।
3.- 12 अगस्त, 1971 को भी राज नारायण बाकी बैठकों के लिए राज्य सभा से निलंबित हुए और मार्शल आउट कर दिए गए।
4.- 15 मार्च, 1989 को 63 सदस्य राज्य सभा से एक सप्ताह के लिए निलंबित किए गए।
5.- 23 दिसंबर 2005 को डा.छत्रपाल सिंह लोधा राज्य सभा से निष्कासित किए गए।
पर चूंकि 2005 के बाद अनुशासनहीनता के बावजूद ऐसी कार्रवाइयां बंद हो गयीं इसलिए राज्य सभा में हंगामा बढता़ गया और सभापति के लिए निरंतर बेचारगी की स्थिति पैदा होती गयी।राज्य सभा की कवर्यवाही का दृश्य टी.वी. पर देख- देख कर देश के विवेकशील लोग कुढ़ते रहते हैं।
अब तो स्थिति यह हो गयी है कि जिसे देश ने ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया है,उसे भी राज्य सभा में जनोपयोगी बातें बोलने का मौका नहीं मिल रहा है। निराश होकर वह अपनी बात कहने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहा है।
पर वैसे सांसद गण बोलने का खूब अवसर पा रहे हैं जो सांसदों के वेतन बढ़ाने की मांग करते हैं और जन प्रतिनिधियों के खिलाफ त्वरित अदालतों के गठन के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विरोध करते हैं।
कहां जा रही है यह देश, राज्य सभा और संसदीय व्यवस्था ?
इस हड़भोंग को आखिर कौन ठीक करेगा ?
यदि इसे आज के लोकतंात्रिक नेतागण ठीक नहीं करंेगे तो कोई और आकर ठीक कर देगा।फिर पछताने से कुछ नहीं होगा।
मौजूदा राज्य सभा सभापति वेंकैया नायडु इसे ठीक करना चाहते हैं।पर राज्य सभा में सत्ताधारी जमात का अभी बहुमत नहीं है।
अगले साल बहुमत होने की उम्मीद है।
नायडु साहब, उसके बाद आप बेरहमी से इस हड़भोंग को बंद कराइए । जिन लोगों ने लोकतंत्र के नाम पर राज्य सभा को चंडूखाना बना रखा है,उनसे राज्य सभा की गरिमा की रक्षा कीजिए और लोकतंत्र की भी।उससे देश के अधिकतर लोग आपको धन्यवाद देंगे।@ 23 दिसंबर 2017 @
साठ के दशक मंे जब राज नारायण और गौड़ मुरहरि मार्शल आउट किए जा रहे थे, तब लोकतंत्र समाप्त नहीं हुआ था।आगे भी ऐसा करिएगा तोभी लोकतंत्र समाप्त नहीं होगा। बल्कि लोकतंत्र जनता के लिए अधिक उपयोगी बनेगा।
इसके बावजूद जब वे सदन से बाहर जाने को तैयार नहीं हुए तो उन्हें मार्शल के जरिए बाहर कर दिया गया।
2.- 25 जुलाई, 1966 को समाजवादी राज नारायण और मुरहरि ऐसे ही कारणों से एक सप्ताह के लिए निलंबित किए गए और सदन से जबरन निकाल बाहर कर दिए गए।
3.- 12 अगस्त, 1971 को भी राज नारायण बाकी बैठकों के लिए राज्य सभा से निलंबित हुए और मार्शल आउट कर दिए गए।
4.- 15 मार्च, 1989 को 63 सदस्य राज्य सभा से एक सप्ताह के लिए निलंबित किए गए।
5.- 23 दिसंबर 2005 को डा.छत्रपाल सिंह लोधा राज्य सभा से निष्कासित किए गए।
पर चूंकि 2005 के बाद अनुशासनहीनता के बावजूद ऐसी कार्रवाइयां बंद हो गयीं इसलिए राज्य सभा में हंगामा बढता़ गया और सभापति के लिए निरंतर बेचारगी की स्थिति पैदा होती गयी।राज्य सभा की कवर्यवाही का दृश्य टी.वी. पर देख- देख कर देश के विवेकशील लोग कुढ़ते रहते हैं।
अब तो स्थिति यह हो गयी है कि जिसे देश ने ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया है,उसे भी राज्य सभा में जनोपयोगी बातें बोलने का मौका नहीं मिल रहा है। निराश होकर वह अपनी बात कहने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहा है।
पर वैसे सांसद गण बोलने का खूब अवसर पा रहे हैं जो सांसदों के वेतन बढ़ाने की मांग करते हैं और जन प्रतिनिधियों के खिलाफ त्वरित अदालतों के गठन के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विरोध करते हैं।
कहां जा रही है यह देश, राज्य सभा और संसदीय व्यवस्था ?
इस हड़भोंग को आखिर कौन ठीक करेगा ?
यदि इसे आज के लोकतंात्रिक नेतागण ठीक नहीं करंेगे तो कोई और आकर ठीक कर देगा।फिर पछताने से कुछ नहीं होगा।
मौजूदा राज्य सभा सभापति वेंकैया नायडु इसे ठीक करना चाहते हैं।पर राज्य सभा में सत्ताधारी जमात का अभी बहुमत नहीं है।
अगले साल बहुमत होने की उम्मीद है।
नायडु साहब, उसके बाद आप बेरहमी से इस हड़भोंग को बंद कराइए । जिन लोगों ने लोकतंत्र के नाम पर राज्य सभा को चंडूखाना बना रखा है,उनसे राज्य सभा की गरिमा की रक्षा कीजिए और लोकतंत्र की भी।उससे देश के अधिकतर लोग आपको धन्यवाद देंगे।@ 23 दिसंबर 2017 @
साठ के दशक मंे जब राज नारायण और गौड़ मुरहरि मार्शल आउट किए जा रहे थे, तब लोकतंत्र समाप्त नहीं हुआ था।आगे भी ऐसा करिएगा तोभी लोकतंत्र समाप्त नहीं होगा। बल्कि लोकतंत्र जनता के लिए अधिक उपयोगी बनेगा।
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