शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

सरकारी मकानों पर कब्जा कराने वाले अफसरों पर कार्रवाई जरूरी ---


पटना के बहादुर पुर में बिहार राज्य आवास बोर्ड ने बहुत पहले सैकड़ों फ्लैट्स बनवाए ।
  आज उनकी  स्थिति क्या है ? उनकी स्थिति की एक झलक खुद आवास बोर्ड के एक विज्ञापन से मिलती है।वह विज्ञापन इसी 27 नवंबर को स्थानीय अखबार में छपा है।
विज्ञापन में  दो सौ से अधिक फ्लैटों के नंबर प्रकाशित किए गए हैं।
साथ ही, उसी विज्ञापन के जरिए कार्यपालक अधिकारी की ओर से यह नोटिस निकाला गया है कि ‘ इन अनावंटित फ्लैटों में रह रहे अवैध अतिक्रमणकारियों को सूचित किया जाता है कि सूची प्रकाशन के पंद्रह दिनों के भीतर  वर्णित फ्लैटों को खाली कर उन्हें बोर्ड को सौंप दें।अन्यथा, कानूनी प्रक्रिया अपना कर उन्हें खाली करवा दिया जाएगा।’
  उधर इसी बुधवार को यह खबर भी आई कि दाना पुर रेल मंडल के सैकड़ों सरकारी आवास अवैध कब्जे में हैं।
 सवाल यह है कि क्या इतनी अधिक संख्या में फ्लैट्स व मकान पर कब्जा एक दिन  हुआ होगा ? ऐसा नहीं है।इन मकानों पर कब्जे की खबर  देख कर लगता है कि ये फ्लैट्स न हों, मानो फुटपाथ हों !
जो चाहे जब चाहे, कब्जा कर ले ! शासन लाचार !
 क्या संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना ऐसा कब्जा संभव है ?
यह कब्जा क्या सिर्फ इन्हीं दो जगहों  में ही है ?
कत्तई नहीं।बल्कि ऐसी खबरें देश के विभिन्न स्थानों  से आए दिन आती रहती हैं।
 इस समस्या के स्थायी हल के लिए सरकार के पास कौन- कौन से  उपाय हंै ?
 उपाय होंगे ही ।पर वे उपाय अब कारगर नहीं हो पा रहे हैं।अब सरकारों को  कुछ नया सोचना होगा।
  यह तो मानी हुई बात है कि संबंधित अफसरों की सांठगाठ या मौन सहमति के बिना ऐसे अतिक्रमण नहीं हो सकते हैं।
उन अफसरों पर जब तक सबक सिखाने लायक कार्रवाइयां नहीं होंंगी , तब तक सरकारी मकानों पर कब्जे होते ही रहेंगे।
और उसके असली हकदार कठिनाइयां  झेलते रहेंगे।
     एक पुण्य स्मृति ऐसी भी----
कोई नेता अपनी पुस्तक किसी पत्रकार की पुण्य स्मृति में समर्पित करे,यह मैंने पहली बार देखा।
झारखंड के संसदीय कार्य मंत्री सरयू राय ने अपनी नयी पुस्तक ‘समय का लेख’ अपने  पत्रकार मित्र दिवंगत फरजंद अहमद को समर्पित की है।
   एक बड़े नेता और बड़े पत्रकार का यह संबंध अलग ढंग का  लगता है।
जीवन काल और पत्रकारिता के सक्रिय काल में तो कई पत्रकार कई नेताओं बड़े करीबी रहते हैं।पर रिटायर होते ही  आम तौर से एक-दूसरे को भुला देने की परंपरा रही है।पर यहां रिटायर कौन कहे, दिवंगत हो जाने के बाद भी सरयू राय अपने मित्र  पत्रकार को याद कर रहे  हंै।  
  कैसे बढ़े सिद्ध दोषियों की संख्या ----
  अदालती सजाओं का प्रतिशत घट रहा है।यही हाल लगभग पूरे देश का है।पर, अभी दिल्ली का एक नमूना पेश है।
 सिद्ध दोषियों की संख्या कम होने का एक बड़ा कारण है फाॅरेंसिक जांच प्रयोगशालाओं की देश भर में  भारी कमी।
 पूरी दिल्ली में ऐसी सिर्फ एक ही प्रयोगशाला है।
ताजा खबर के अनुसार उस प्रयोगशाला में डी.एन.ए.के करीब 5 हजार नमूने जांच के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
वैसे वहां नमूनों की कुल संख्या 9 हजार हैं।
  याद रहे कि दोषियों को अदालतों से सजा दिलाने में डी.एन.ए.के जांच नतीजे बड़े काम आते हैं।
पर उसके अभाव में अधिकतर मामलों में केस कमजोर हो जाते हैं।
हालांकि अपराधियों के बच जाने के कई और कारण भी हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश है कि किसी की इच्छा के खिलाफ उसके डी.एन.ए.के नमूने नहीं लिए जा सकते।
  इस फैसले का लाभ उठाकर अनेक शातिर अपराधी अपने नमूने नहीं देते।
शासन को चाहिए कि वह उपर्युक्त फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार करे।    
     आखिर कौन करेगा गंगा की सफाई ?---
यदि मोदी-योगी  की सरकारें गंगा की सफाई नहीं करेंगी तो फिर भला कौन करेगा ?
गाय और गंगा की बात करने वाली भाजपा की केंद्र में बहुमत की सरकार है।उत्तर प्रदेश में भी।यहां तक कि उत्तराखंड में भी।हालांकि भाजपाई ही कौन कहे, समाजवादी नेता डा. राम मनोहर लोहिया ने भी कभी सरकार से मांग की थी कि ‘नदियां साफ करो ।’
 पर पिछली सरकारों ने तो गंगा जैसी बहुमूल्य नदी को जहां-तहां बड़े नाले में परिणत कर दिया।यही आरोप पहले भाजपा लगाती थी।
अब वही सरकार में है तो  कुछ करे।मौजूदा सरकार कुछ तो रही है।नितिन गडकरी ने गंगा रिवर फ्रंट विकसित करने के लिए भारतीय मूल के कुछ विदेशी पूंजीपतियों को तैयार किया है।वह अच्छी बात है।वह काम भी जरूरी है।
पर गंगा के पानी के औषधीय गुणों को बरकरार रखने के लिए क्या हो रहा है ? पटना के पास  गंगा नदी में जो पानी है,क्या वह गंगा जल है ?
या सहायक नदियों और नाले-नालियों का जल है ? क्या गंगा के किनारे बसे नगरों के गंदे पानी को साफ करके उसे गंगा में गिराया जाएगा और उसे ही गंगा जल कह दिया जाएगा ?
 वास्तविक गंगा जल में औषधीय गुण हैं।
गंगा जल पर  19 वीं सदी मंे ब्रिटिश वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैन्किन ने रिसर्च किया था।जांच के बाद उसने पाया था कि गंगा जल के वायरस हैजा फैलाने वाले बैक्टीरिया में घुस कर उसे नष्ट कर देते हैं।
  इनके अलावा भी गंगा जल में अनेक गुण हैं।गंगा नदी के ऊपरी हिस्से में वैसे गुणों वाला गंगा जल मौजूद है।उसे फिर से हासिल करने का अधिकार बिहार और बंगाल के लोगों को कब मिलेगा ?
    उत्तर प्रदेश में  विधान सभा उप चुनाव---
बहुजन समाज पार्टी उप चुनाव नहीं लड़ती।उत्तर प्रदेश की सिकंदरा विधान सभा उप चुनाव भी वह नहीं लड़ रही है।क्या उसका लाभ सपा को मिलेगा ? या कांग्रेस को ?
पिछले आम चुनाव में भाजपा के मथुरा प्रसाद पाल करीब 38 हजार मतों से विजयी हुए थे।बसपा दूसरे स्थान पर थी।
भाजपा ने दिवंगत विधायक के पुत्र
को टिकट दिया है।कांग्रेस के भी उम्मीदवार हैं।
  नगर निकायों के चुनावों में बाजी मार लेने के बाद अब मुख्य मंत्री योगी की परीक्षा सिकंदरा में होगी।
वहां 21 दिसंबर को मतदान होगा और 24 दिसंबर को रिजल्ट।
याद रहे कि इससे पहले के विधान सभा उप चुनावों में बसपा की अनुपस्थिति का लाभ आम तौर पर सपा को मिलता रहा है।
  एक भूली बिसरी याद---
पंडित सुंदर लाल ने ‘भारत में अंग्रेजी राज’ नामक पुस्तक लिखी है।किताब दो भागों में है। अंग्रेजों के छल-कपट के उदाहरण देते हुए उन्होंने लिखा है कि कच्छ के राजा को अंग्रेजों ने यह कह कर डराया कि तुम पर सिंध के मुसलमान और अमीर हमला करने वाले हैं।
यदि तुमने अंग्रेज कंपनी के संरक्षण में आना स्वीकार नहीं किया तो अंग्रेज भी तुम्हारे खिलाफ सिंध के अमीरों को मदद देने को मजबूर हो जाएंगे।
सुंदर लाल ने लिखा कि इस विचित्र न्याय के औचित्य पर बहस करने की आवश्यकता नहीं।न ही यह बताने की आवश्यकता है कि कच्छ पर सिंध के हमले की आशंका बिलकुल झूठ थी।
लाचार होकर सन 1816 में कच्छ के राव ने कंपनी के साथ संधि कर ली।
इस तरह कच्छ की स्वाधीनता समाप्त हो गयी और पश्चिमी भारत में
अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ गया।
पडित सुंदर लाल ने छल कपट से सत्ता हथियाने के कुछ अन्य उदाहरण भी दिए हैं। 
और अंत में---
सन 1967 से पहले कई राजनीतिक दल छोटे जरूर थे,पर उनमें 
नैतिक बल अधिक था। सन् 2017 आते -आते कई राजनीतिक दल आकार में तो बड़े हो चुके हैं,पर उनमें नैतिक बल घट चुका है।
@ 8 दिसंबर 2017 को प्रभात खबर-बिहार-में प्रकाशित मेरे कानोंकान काॅलम से@



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