सोमवार, 25 दिसंबर 2017

दक्षिण मेंं सामाजिक-राजनीतिक परिवत्र्तन के कर्णधर थे ई.वी. रामास्वामी नायकर





               
  द्रविड़ मुनेत्र के संस्थापक और ‘स्वाभिमान आंदोलन’ के सूत्रधार ई.वी.रामास्वामी नायकर पेरियार अपने पिता से झगड़ा के बाद 25 साल की उम्र में घुमक्कड़ बन गए थे।
अनेक धर्म स्थल घूमते हुए बनारस पहुंचे।
 बनारस को वह सर्वाधिक पवित्र स्थल मानते थे।
पर वहां भी उन्हें लगा कि गैर ब्राह्मण होने के कारण उनके साथ  अपमानजनक व्यवहार हो रहा है।नतीजतन वे भ्रमण का काम छोड़कर मद्रास लौट गए और 1915 में राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए। 
 सन् 1919 में तो कांग्रेस में शामिल हुए और मद्रास पे्रसिडेंसी  कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे।पर  आरक्षण के उनके प्रस्ताव को कांग्रेस ने नहीं माना तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी।
  कुछ मुद्दों पर गांधी जी से भी उनका मतभेद हुआ।
 1927 में नायकर से ब्राह्मण- विरोध छोड़ने की अपील करते हुए गांधी जी ने कहा कि ब्राह्मण ज्ञान के भंडार और बलिदान की प्रतिमूत्र्ति हैं।
पर नायकर अपनी जिदद पर अड़े रहे।नायकर ने गांधी जी से साफ -साफ कह दिया कि भारत की सच्ची आजादी कांग्रेस, हिंदूवाद और ब्राह्मणवाद को नष्ट करके ही आ सकती है।
नायकर उन लोगों में प्रमुख थे जो आर्यवाद को छोड़कर द्रविड़ मूल की तलाश में थे।
   17 सितंबर 1879 को मद्रास प्रसिडेंसी के एक गांव में जन्मे रामास्वामी ने 1925 में कांग्रेस छोड़ने के बाद ‘आत्म सम्मान आंदोलन’ शुरू किया।उनका उददे्श्य गैर ब्राह्मणें के मन में अपनी सांस्कृतिक विरासत के प्रति गर्व की भावना भरना था।नायकर का निधन 24 दिसंबर 1973 को हुआ।पर इस बीच उन्होंने दक्षिण के समाज और राजनीति पर अपना भारी प्रभाव छोड़ा।हमेशा विवादों में रहे।बाद में तो उन्हें अपने अनेक सहयोगियों से भी मतभेद हो गया था।
रामास्वामी नायकर ‘पेरियार’ मानते थे कि हमारी द्रविड़ परंपरा ब्राह्मणों की परंपरा से श्रेष्ठत्तर है।
   1937 में कांग्रेस के सी.राज गोपालाचारी  मद्रास पे्रसिडेंसी  के प्रधान मंत्री बने थे। कांग्रेस की नीतियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने 1938 में सरकारी विद्यालयों में हिंदी को अनिवार्य कर दिया।
रामास्वामी के लिए यह अच्छा मौका था।उन्होंने इसके खिलाफ जोरदार आंदोलन शुरू कर दिया।
नायकर ने कहा कि हिंदी आर्य दमन का हथियार है।
उनके कुछ लोगों ने राजा जी के घर के समाने अनशन किया।आंदोलन तेज हो गया।स्थिति बेकाबू होते देख पुलिस ने नायकर को गिरफ्तार कर लिया।
उस गिरफ्तारी के कारण द्रविड़ आंदोलन और बढ़ा।
नायकर का कद बढ़ता गया।
अंततः हिंदी की अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी।
नायकर ने द्रविड़ों के लिए अलग देश तक की मांग कर दी थी।
पर इस मांग को मद्रास की जनता का समर्थन नहीं मिला।
नायकर और सी.एन.अन्ना दुरै ने मिलकर 1944 में द्रविड़ कषगम नामक नया राजनीतिक दल बनाया।
  बाद के वर्षों में यानी आजादी के बाद अन्ना दुरै , नायकर से अलग हो गए।
अन्ना दुरै 1967 में मद्रास के मुख्य मंत्री बने।करूणानिधि भी
अन्ना दुरै के साथ थे।द्रविड़ कषगम बाद में द्रविड़ मुनेत्र कषगम बन गया।
   नायकर अपनी अतिवादी राह पर चलते रहे।
एक बार तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने रामा स्वामी नायकर को सार्वजनिक रूप से पागल कह दिया था।
तब उन पर हिंसा भड़काने के आरोप में मुकदमा चल रहा था।
यह 1958 की घटना है।नायकर को छह महीने की सजा भी हो गयी।
वह जेल में थे।अस्वस्थ होेने के कारण जब अस्पताल में थे तो समाजवादी नेता डा.राममनोहर लोहिया ने उनसे जाकर अस्पताल में मुलाकात की।लोहिया चाहते थे कि नायकर अपने अतिवादी विचारों का त्याग करें और पूरे देश के नेता बनें।
 लोहिया ने उनसे कहा कि इस उम्र में आपको जेल में नहीं रहना चाहिए।
प्रधान मंत्री ने आपको जो पागल कहा है,उसको लेकर उन पर मानहानि का मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
  पर साथ ही लोहिया ने उनसे आग्रह किया कि वे ब्राह्मणों के खिलाफ अपना अभियान बंद कर दें।
आप जातिप्रथा के खिलाफ आंदोलन जरूर करिए, पर व्यक्तिगत ब्राह्मणों के खिलाफ इस आदंोलन का रुख नहीं होना चाहिए।
इस पर रामास्वामी ने कहा कि ‘हिंसा से मेरा कोई सरोकार नहीं है।असलियत यह है कि मद्रास का प्रेस ब्राह्मणों के हाथों में है।और वे मुझे बदनाम करना चाहते हैं।
में अपने को सदैव नियंत्रित रखता हूं।’
इस पर लोहिया ने कहा कि यही काफी नहीं है कि हिंसा नहीं होनी चाहिए।बल्कि स्पष्ट रूप से आपकी ओर से यह कहा जाना चाहिए कि व्यक्तिगत रूप से लक्ष्य बनाकर ब्राह्मणों के खिलाफ अभियान नहीं होना चाहिए।
नायकर ने कहा कि किसी तरह की हिंसा मेरे दल और  ब्राह्मणों दोनों का ही विनाश कर डालेगी।
लेकिन मेरे जीवन काल में तो ऐसा नहीं होने को है।
लोहिया ने उनसे कहा कि उत्तर भारत का विरोध छोड़ कर आप देश की सभी समस्याआंे पर  सोचें।
  अगली किसी मुलाकात का वायदा करके दोनों अलग हुए।
 नायकर के निधन के बाद मद्रास में उनकी स्मृति में लाइब्रेरी और शोध केंद्र स्थापित किया गया जिसका समारंभ 1974 में तत्कालीन मुख्य मंत्री एम.करूणानिधि ने किया।
पेरियार को तमिलनाडु के लोग अब भी श्रद्धापूर्वक याद करते हैं।तमिलनाडु से बाहर भी वे यदाकदा याद किए जाते हैं।ं 
@ नाइकर की पुण्य तिथि -24 दिसंबर -पर मेरा लेख@

  

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