शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

अविरलता के बिना गंगा में निर्मलता लाने का निरर्थक प्रयास


भारतीय मूल के दो ब्रिटिश उद्योगपति अनिल अग्रवाल और रवि मेहरो़त्रा गंगा घाटों को संुदर बनाने का काम करेंगे।
‘वेदांता’ के अनिल अग्रवाल पटना के रिवर फ्रंट का रख रखाव करेंगे तो रवि मेहरोत्रा यही काम कानपुर में करेंगे।
गंगा और पटना से भावनात्मक लगाव रखने वाले अग्रवाल पटना के मिलर स्कूल के छात्र रह चुके हैं।
लंदन गए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को अग्रवाल और मेहरोत्रा ने यह आश्वासन दिया है।
 मंत्री और उद्योगपतियों की यह पहल सराहनीय है।
पर गंगा को निर्मल बनाने के लिए जो मूल काम होना चाहिए,उसकी जरूरत नरेंद्र मोदी सरकार भी शायद नहीं समझ सकी है।
 या,  यह काम उसके वश में भी नहीं है। कभी मुगल सम्राट अकबर गंगा नदी का ही पानी पीता था।पर, आज स्थिति यह है कि गंगा नदी का पानी पीने कौन कहे ,छूने लायक भी नहीं है।
इसे जहरीला बना दिया गया है।
शायद ऋषिकेश के पास  गंगा की स्वच्छता अपवाद है। 
 इसे जहरीला बनाने में आजादी के बाद की सरकारों का पूरा योगदान रहा है।अंग्रेजों के जमाने में भी इसकी स्थिति इतनी भयानक नहीं थी।
बचपन में मैंने सारण जिले के दिघवारा के पास गंगा की निर्मलता देखी थी।
   यदि गंगा जैसी दिव्य औषधीय गुणों वाली नदी किसी दूसरे
देश में होती तो इसे वहां के लोग अगली पीढि़यों के लिए संभाल कर रखते।
  अन्य बातों के अलावा दरअसल गंगा नदी पर डैम बना कर इसकी प्राकृतिक धारा को बाधित कर दिया गया है।
 जब नदी सूख जाएगी, उसमें नाले का गंदा पानी गिरने लगेगा तो उसकी जो हालत होगी,वही आज गंगा के साथ हो रहा है।
चाहिए तो यह था कि गंगा को छुए बिना उसकी सहायक नदियों में वर्षा जल को रोक कर उससे सिंचाई का काम किया जाता।
फिर भी गंगा किनारे वाले राज्यों खास कर उत्तराखंड को यदि आर्थिक नुकसान होता तो उसकी क्षतिपूत्र्ति 
केंद्र सरकार कर सकती थी।
  इससे गंगा की अविरलता कायम रहती।
आज यदि गंगा निर्मल नहीं है तो सिर्फ उसके रिवर फ्रंट को चमकाने से क्या फायदा ?
  अविरलता के बिना नाले की दुर्गंध लेने कौन जाएगा रिवर फ्रंट तक  ?
  कुछ नेताओं के उपेक्षित बाल-बच्चे----
इस देश के कई बड़े नेताओं के बाल-बच्चों की काली करतूतों को देखकर डा.राम मनोहर लोहिया की याद आती है।
डा.लोहिया कहा करते थे कि राजनीतिक जीवन बिताने का निर्णय  करने वालों को शादी नहीं करनी चाहिए।
खुद डा.लोहिया ने भी शादी नहीं की थी।
 हालांकि सभी नेताओं की संतानों में ऐसा भटकाव नहीं देखा जाता । पर अनेक नेताओं के बाल -बच्चों के  भटक जाने की खबरें आती रहती हंै ं।
 आजादी के तत्काल बाद गठित केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक दक्षिण भारतीय सदस्य को ऐसी ही परेशानी झेलनी पड़ी थी।
उनके बेलगाम पुत्र ने उत्तर प्रदेश में एक हत्या कर दी।
किसी तरह उसे जमानत दिलवा कर विदेश भिजवा दिया गया था।
यह और बात है कि बाद में अपने जीवन में उसने अच्छे काम किए। 
ऐसी घटनाओं का  सबसे बड़ा कारण यह है कि सार्वजनिक जीवन इतनी व्यस्तता वाला जीवन होता है कि नेताओं को अपने बाल-बच्चों को उचित शिक्षा और समुचित संस्कार देने की फर्सत ही नहीं मिलती।यह तो ईमानदार नेताओं की बात हुई।
 पर यदि नेता भ्रष्ट हो और उसे सत्ता भी मिल जाए तब तो उनके बाल -बच्चों के बिगड़ने का  बहुत अधिक चांस रहता है।
 ऐसे अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं।
 कुछ ऐसे नेताओं को जानता हूं जो अपनी संतान के अपराध व उदंडता के कारण खुद भी भारी पीड़ा झेलते रहे हैं।पर वे कहें तो किससे  ? यहां वैसे अभिभावकों की बात नहीं की जा रही है जो जानबूझ कर अपनी संतानों को विवादास्पद रास्तों पर ढकेल देते हैं।
ऐसे कटु अनुभवों को देखते हुए वे लोग सबक ले सकते हैं  जिनकी अभी शादी नहीं हुई है और वे सार्वजनिक जीवन को अपनाना चाहते हैं। 
   जनेऊ के बारे में कुछ बातें ऐसी भी ----
मैं खुद तो नियमित रूप से जनेऊ नहीं पहनता, पर इतना भी ‘क्रांतिकारी’ नहीं हूं कि यह कह दूं  कि ‘जनेऊ एक अश्लील धागा है।’
  हां, विनोबा भावे की एक बात मुझे ठीक लगती है।उन्होंने कहा था कि जनेऊ के दो ही उपयोग हैं - एक तो उसमें चाबियां बांधी जा सकती हैं और उससे पीठ खुजलाई जा सकती है।
याद रहे कि विनोबा जी भी जन्मना ब्राह्मण थे।
मैंने बचपन में अपने गांव में जनेऊ के दो अन्य उपयोग भी देखे हैं।
 मेरे पड़ोस के  बाबा लगते थे।वे पत्ते तोड़ने के लिए बांस पर चढ़ गए।बहुत मोटा जनेऊ पहनते थे।एक बांस से गिरे ,पर उनका जनेऊ दूसरे बांस में फंस गया।
गांव- जवार में चर्चा हो गयी कि फलां बाबा को जनेऊ ने बचा लिया।
दरसल बांस के निचले हिस्से में बांस की नुकीली जड़ेंं होती हंै ।उस पर गिरने से बाबा को जनेऊ ने बचा लिया था।
  एक अन्य अवसर पर एक किसान ने रस्सी से गेहूं का ‘बोझा’ बांधा था।
रस्सी टूट गयी।आसपास कोई रस्सी नहीं मिली।उसने अपने जनेऊ का सदुपयोग कर लिया।    
  एक भूली-बिसरी याद-----
जेपी आदोलन व आपातकाल की पृष्ठभूमि में सन् 1977 में लोक सभा का चुनाव हुआ था।जनता पार्टी की भारी जीत हुई थी।
पहली बार केंद्र की सत्ता से कांग्रेस का एकाधिकार टूटा था।उस जीत का सर्वाधिक श्रेय जयप्रकाश नारायण को मिला था।प्रधान मंत्री का नाम तय करने में भी जेपी-कृपलानी  की प्रमुख भूमिका थी।
  पर केंद्र की मोरारजी सरकार ने थोड़े ही दिनों में जेपी को निराश कर दिया था।
जेपी  देसाई की शासन -पद्धति से संतुष्ट नहीं थे।
वह प्रकट हुआ था जेपी के एक इंटरव्यू से ।जय प्रकाश नारायण ने  1978 में एक हिंदंी साप्ताहिक से बातचीत में यहां तक कह दिया कि 
‘यदि अब देश में कोई हिंसक आंदोलन भी होगा तो मैं उसका विरोध नहीं करूंगा।’
यह टिप्पणी जेपी की खिन्न मनोदशा को अभिव्यक्त कर रही थी।
याद रहे कि मुसहरी में हुए नक्सलियों के हिंसक आंदोलन की पृष्ठभूमि में 1969 में जेपी ने वहां शांति स्थापित करने के लिए  अभियान चलाया था।
1974 के छात्र आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए  जेपी तभी तैयार हुए थे जब छात्र-युवा नेताओं ने उन्हें यह आश्वासन दिया था कि आंदोलन में शांति बनी रहेगी।
 यह प्रकरण इसलिए भी मौजूं है क्योंकि अपने देश में कई बार ऐसा हुआ कि राजनीतिक दल लुभावने नारे के बल पर सत्ता में तो आ गए पर  गददी मिलते ही अपने वायदे भूल गए।
   लीज पर लेने का प्रावधान सही----
बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकार @संशोधन@विधेयक में जमीन लीज पर लेने या खरीदने का प्रावधान सही और मौजूं है ।पर, मुआवजा समुचित मिलना चाहिए।जिस तरह नेशनल हाईवे के लिए केंद्र सरकार देती है।
इससे बिहार में उद्योग के लिए जमीन मिलने की संभावना बढ़ेगी।
इसके साथ ही कानून -व्यवस्था में सुधार जारी रहा तो औद्योगिकीकरण भी बढ़ेगा।
बिजली की व्यवस्था तो सरकार कर ही रही है।  
    और अंत में----
 उत्तर प्रदेश में नगर निकायों के चुनाव हो चुके हैं।रिजल्ट 
बाकी है।
एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं कि 16 नगर निकायों में से 15 में भाजपा को बहुमत मिलेगा।
 प्रदेश की योगी सरकार ने अब तक ऐसा कोई चैंकाने वाला काम नहीं किया है जिससे यह लगेगा कि वह रिजल्ट उन कामों का नतीजा है।हां, एक बात हो सकती है।भाजपा की  जीत होगी तो माना जाएगा कि शायद लोगों ने योगी सरकार की उपलब्धियों से अधिक उसकी मंशा पर अधिक भरोसा किया होगा।    
@ 1 दिसबंर 2017 को प्रभात खबर -बिहार-में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से@ 


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