आकाशवाणी -दूरदर्शन के हर समाचार बुलेटिन को प्रसारित करने से पहले प्रधान मंत्री को दिखा लेने के काम में असमर्थता व्यक्त करने के कारण 1975 में आई.के.गुजराल से सूचना व प्रसारण मंत्रालय छिन गया था।
बाद में डी.एम.के.के मंत्रियों को सरकार से निकालने से इनकार कर देने के बाद 1998 में गुजराल का प्रधान मंत्री पद छिन गया था।ऐसे थे आई.के.गुजराल।
उनका 1919 में जन्म और 2012 में निधन हो गया।वे अपने ढंग से जिये।
हालांकि बिहार को लेकर गुजराल ने कुछ समझौते भी किए थे।
बात 1975 की है।तब इंदर कुमार गुजराल सूचना व प्रसारण मंत्री थे।
तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के संयुक्त सचिव बिशन टंडन उन दिनों अपनी डायरी लिखते थे।बाद मंे उस डायरी कव प्रकाशन भी हुआ।
टंडन साहब ने 21 जून 1975 को अपनी उस डायरी मेें गुजराल से संबंधित प्रकरण को साफ -साफ ढंग से लिखा ।
‘आज गुजराल से पता चला कि उन्हें संजय @गांधी@ने बुला कर बहुत फटकारा कि कल की रैली का प्रचार ठीक से नहीं हुआ।प्रधान मंत्री के पक्ष में जो अभियान चल रहा है,उसका भी प्रचार अपर्याप्त है।
गुजराल को बुरा लगा कि संजय उन्हें डांटे -फटकारे।
बुलाया गया था उन्हें प्रधान मंत्री के नाम पर ,किंतु मिलने को कहा गया संजय से।संजय ने गुजराल से कहा कि समाचार बुलेटिन प्रधान मंत्री आवास पर भेजा जाए।
इस पर गुजराल ने संजय गांधी से कहा कि कार्य की दृष्टि से अच्छा होगा कि किसी अधिकारी को इस काम के लिए मनोनीत कर दिया जाए।
वह आकाशवाणी केंद्र में ही रहें।उन्हें सब बुलेटिन दिखा दिए जाएंगे।उन्होंने शारदा का नाम सुझाया। पर संजय गांधी ने इस काम के लिए बहल की ड्यूटी लगा दी।
बिशन टंडन की डायरी के अनुसार प्रधान मंत्री से भी उनकी जो भंेट हुई, वह अप्रिय ही रही।
प्रधान मंत्री ने कहा कि आज मोरारजी के घर प्रदर्शन का आयोजन होगा,उसका बहुत व्यापक प्रचार होना चाहिए।
प्रधान मंत्री ने यह भी इच्छा प्रकट की कि वे रेडियो और टी.वी.स्क्रिप्ट देखना चाहेंगी।सिर्फ इसी घटना से संबंधित नहीं ,बल्कि हर बुलेटिन प्रसारित होने से पहले मुझे दिखाया जाए।
इस पर गुजराल ने प्रधान मंत्री से कहा कि स्क्रिप्ट बुलेटिन आदि तो सामान्यतः मैं भी प्रसारण से पहले कभी नहीं देखता।
इस पर प्रधान मंत्री ने बिगड़ते हुए कहा कि यदि आप पहले नहीं देखते तो सूचना मंत्री किस बात के हैं ?
खैर आप देखें या न देखें,प्रधान मंत्री यह सब देखना चाहती हैं।
बाद में पता चला कि 20-25 आदमी मोरारजी के घर गए।कुछ लोगों ने पथराव किया।पर जब तक मोरारजी बाहर निकले,वे सब गायब हो गए।
पता नहीं इसका कितना रेडियो-टीवी पर प्रचार हुआ ,पर गुजराल शेषन से अपना दुखड़ा रो रहे थे।मैं चुपचाप सुन रहा था।’
यह सब उन दिनों हो रहा था जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी का रायबरेली से लोक सभा कव चुनाव रद कर दिया था।सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक तो लगाई,पर इंदिरा गांधी को सदन में मतदान करने से रोक दिया।
इस राजनीतिक उथल -पुथल की स्थिति में एक तरफ जेपी और प्रतिपक्षी दल प्रधान मंत्री से इस्तीफे की मांग कर रहे थे,दूसरी ओर कांग्रेस इंदिरा गांधी के पक्ष में अभियान चला रही थी।
25 जून 1975 की रात में आपातकाल लग गया और 28 जून को विद्याचरण शुक्ल ने नये सूचना व प्रसारण मंत्री का पद भार संभाल लिया।
उससे पहले टंडन ने अपनी डायरी में लिखा कि ‘शारदा ने यह बताया कि प्रधान मंत्री आवास पर पूरा कंट्रेाल संजय ने अपने हाथ में ले लिया है।’
गुजराल जब 1997 में संयुक्त मोर्चा सरकार के प्रधान मंत्री बने तो उन्हें कुछ ही महीनों में नाहक प्रधान मंत्री पद से हटवा दिया गया।यह काम तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने किया।
उन दिनों जस्टिस एम.एल.जैन आयोग की रपट आई थी।
रपट में राजीव गांधी की हत्या के लिए डी.एम.के. को जिम्मेदार ठहरा दिया गया था।हालांकि जैन आयोग ने उसका कोई सबूत नहीं दिया था।
याद रहे कि 1991 में तमिल नाडु में राजीव गांधी की लिट्टे द्वारा हत्या कर दी गयी थी।हत्या की परिस्थियों की जांच के लिए जैन के नेतृत्व में न्यायिक जांच आयोग बना था।
जैन आयोग ने अंतरिम रिपोर्ट दी थी।
पर सीताराम केसरी समझ रहे थे कि गुजराल के हटने के बाद खुद उनके प्रधान मंत्री बनने के चांस होंगे।
केसरी ने पहले गुजराल से कहा कि वे डी.एम.के. के तीनों मंत्रियों को बर्खास्त कर दें।गुजराल जब नहीं माने तो केसरी ने मोर्चा सरकार से कांग्रेस का समर्थन वापस ले लिया।
1998 में फिर से लोक सभा का चुनाव हुआ।अटल बिहारी वजपेयी के नेतृत्व में राजग की सरकार बन गयी।
@सुरेंद्र किशोर -हिंदी फस्र्टपोस्ट@
@ 30 नवंबर 2017@
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