कांग्रेस जब भी कहीं चुनाव जीत कर सत्ता में आती है तो
उसका पूरा श्रेय तुरंत उसके सर्वोच्च नेता को दे दिया जाता है।
पर जहां कहीं भी हार जाती है, तो वहां के बारे में कह दिया जाता है कि वहां संगठन कमजोर था।इस बार भी पूर्व केंद्रीय मंत्री कमल नाथ ने कह दिया है कि कांग्रेस का संगठन कमजोर था।
पर, इस संबंध में दो सवाल उठते हैं।
1.-1969 में कांग्रेस का महा विभाजन हुआ।
कांग्रेस @आर@ और कांग्रेस @संगठन@बने।
यानी संगठन का अधिकांश, कांग्रेस@संगठन @के पास था।
फिर भी 1971 में लोक सभा चुनाव भारी बहुमत से इंदिरा गांधी जीत गयीं।कांग्रेस @संगठन@का संगठन धरा का धरा रह गया।क्योंकि इंदिरा जी के पास गरीब पक्षी नारे और उस दिशा में उनके कुछ काम थे।उन दिनों सरकार में उतने बड़े घोटाले और महा घोटाले भी नहीं हो रहे थे जितने बड़े -बड़े महा घोटाले मन मोहन सिंह के कार्यकाल में हुए।
2.- यदि गुजरात या कहीं और कांग्रेस का संगठन कमजोर था तो उसके लिए कौन जिम्मेदार रहा है ?
संगठन की याद सिर्फ चुनाव हारने के बाद ही क्यों आती है ?
चार साल कांग्रेस का शीर्ष या राज्य नेतृत्व आखिर क्या करता है ? संगठन मजबूत क्यों नहीं करता ?
इंदिरा गांधी ने अपने गरीबपक्षी नारों और कामों से जब पार्टी को चुनाव जीतने का उपकरण बना दिया तो संगठन भी बन गया।
दरअसल जिस पार्टी के बारे में यह धारणा हो कि उसके चुनाव
जीतने की कम ही गुंजाइश है, तो उस पार्टी के प्रति बहुत अधिक संख्या में राजनीतिक कार्यकत्र्ता भी आकर्षित व उत्साहित भी नहीं होते।
आजादी के बाद के बड़े कांग्रेसी नेता अपने कार्यकत्र्ताओं के सुख- दुख का भी खयाल रखते थे।
अब क्या रखते हैं ? अब तो अधिकतर दलों के अनेक छोटे- बड़े नेता अपने वंश व परिजन को टिकट दिलाने के ही फेर में रहते हैं।
फिर राजनीतिक कार्यकत्र्ता कहां से आएंगे और क्यों आएंगे।किस उम्मीद में आएंगे ?
हां इन दिनों अधिकतर दलों के कार्यकत्र्ताओं की भूमिका सांसद -विधायक फंड के ठेकेदार निभा देते हैं।
उनकी संख्या सीमित होती है।यह किसी एक दल की बात नहीं है।आम बीमारी बनती जा रही है।इस समस्या पर कोई कभी सोचेगा ?
@ 19 दिसंबर 2017@
उसका पूरा श्रेय तुरंत उसके सर्वोच्च नेता को दे दिया जाता है।
पर जहां कहीं भी हार जाती है, तो वहां के बारे में कह दिया जाता है कि वहां संगठन कमजोर था।इस बार भी पूर्व केंद्रीय मंत्री कमल नाथ ने कह दिया है कि कांग्रेस का संगठन कमजोर था।
पर, इस संबंध में दो सवाल उठते हैं।
1.-1969 में कांग्रेस का महा विभाजन हुआ।
कांग्रेस @आर@ और कांग्रेस @संगठन@बने।
यानी संगठन का अधिकांश, कांग्रेस@संगठन @के पास था।
फिर भी 1971 में लोक सभा चुनाव भारी बहुमत से इंदिरा गांधी जीत गयीं।कांग्रेस @संगठन@का संगठन धरा का धरा रह गया।क्योंकि इंदिरा जी के पास गरीब पक्षी नारे और उस दिशा में उनके कुछ काम थे।उन दिनों सरकार में उतने बड़े घोटाले और महा घोटाले भी नहीं हो रहे थे जितने बड़े -बड़े महा घोटाले मन मोहन सिंह के कार्यकाल में हुए।
2.- यदि गुजरात या कहीं और कांग्रेस का संगठन कमजोर था तो उसके लिए कौन जिम्मेदार रहा है ?
संगठन की याद सिर्फ चुनाव हारने के बाद ही क्यों आती है ?
चार साल कांग्रेस का शीर्ष या राज्य नेतृत्व आखिर क्या करता है ? संगठन मजबूत क्यों नहीं करता ?
इंदिरा गांधी ने अपने गरीबपक्षी नारों और कामों से जब पार्टी को चुनाव जीतने का उपकरण बना दिया तो संगठन भी बन गया।
दरअसल जिस पार्टी के बारे में यह धारणा हो कि उसके चुनाव
जीतने की कम ही गुंजाइश है, तो उस पार्टी के प्रति बहुत अधिक संख्या में राजनीतिक कार्यकत्र्ता भी आकर्षित व उत्साहित भी नहीं होते।
आजादी के बाद के बड़े कांग्रेसी नेता अपने कार्यकत्र्ताओं के सुख- दुख का भी खयाल रखते थे।
अब क्या रखते हैं ? अब तो अधिकतर दलों के अनेक छोटे- बड़े नेता अपने वंश व परिजन को टिकट दिलाने के ही फेर में रहते हैं।
फिर राजनीतिक कार्यकत्र्ता कहां से आएंगे और क्यों आएंगे।किस उम्मीद में आएंगे ?
हां इन दिनों अधिकतर दलों के कार्यकत्र्ताओं की भूमिका सांसद -विधायक फंड के ठेकेदार निभा देते हैं।
उनकी संख्या सीमित होती है।यह किसी एक दल की बात नहीं है।आम बीमारी बनती जा रही है।इस समस्या पर कोई कभी सोचेगा ?
@ 19 दिसंबर 2017@
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