रविवार, 31 दिसंबर 2017


  मेरा हमेशा ही यह मानना रहा है कि भारत जैसे गरीब देश के लिए भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या है।
  सरकारी और गैर सरकारी भ्रष्टाचार भुखमरी पैदा करता है ।या, पहले से जारी भुखमरी को बढ़ाता है।उनमें से कुछ लोग भुखमरी से बचने के लिए माओवादी बनते हंै तो कुछ अन्य लोग आतंकवादी।कुछ लोग अपराधी बन जाते हैं।कुछ अन्य गलत धंधे में लग जाते हैं।मरता, क्या न करता !
  हत्या करने वालों के लिए तो इस देश में फांसी का प्रावधान है।पर भ्रष्टाचार करके हजारों लोगों को रोज परोक्ष रुप से भूख से मार देने वालों के लिए ऐसी सजा नहीं है। आखिर क्यों ?
  जब सिर्फ जेल भेजने से भी भ्रष्ट लोगों में कोई सुधार नहीं हो रहा हो, तो देश को बचाने के लिए फांसी के अलावा और क्या उपाय है ? चीन के एक बड़े नेता ने हाल में कहा है कि यदि हमारे देश में भ्रष्टाचार इसी तरह बढ़ता रहा तो हमारा देश भी सोवियत संघ की तरह बिखर जाएगा।
जिस देश में भ्रष्टाचार के लिए फांसी का प्रावधान है,वहां तो भ्रष्ट लोग काबू में नहीं आ पा रहे हैं,और अपने देश में तो फांसी है नहीं,फिर अपने यहां के हर स्तर के भ्रष्टों की निश्चिंतता देख लीजिए।
  संभव है कि चीन खुद को बिखरने से बचाने के लिए फांसी के अलावा भी कुछ अन्य कठोर दंडों के बारे में सोच- विचार कर रहा होगा।हम क्या कर रहे हैं।
यहां के तो भ्रष्ट सिस्टम में मौजूद अत्यंत थोड़े से ईमानदार सत्ताधारी नेता व अफसर ,भ्रष्टाचारियों  की अपार ताकत के सामने खुद को लाचार पा रहे हैं।
 उत्तर प्रदेश के पूर्व डी.जी.पी.प्रकाश सिंह ने एक टी.वी.टाॅक शो में एक बार एक बड़ी बात कही थी।एक रिसर्च संस्था की जांच रपट का हवाला देते हुए श्री सिंह ने कहा था कि जब एक व्यक्ति को फांसी पर चढ़ाया जाता है तो हत्या के लिए उठे अन्य सात हाथ रुक जाते हैं। 
पूर्व आई.ए.एस.अधिकारी एन.सी.सक्सेना का कहना है कि इस देश में भ्रष्टाचार अभी अधिक लाभ और कम खतरे का सौदा है।
  एक व्यक्ति  ने अपने एक भ्रष्ट अधिकारी मित्र से पूछा कि आप भ्रष्टाचार करके बार -बार जेल जाते हो,निलंबित होते हो,फिर भी यह काम  नहीं छोड़ते हो ? ऐसा क्यांे ? उसने जवाब दिया कि मैं समझता हूं कि ‘जेल जाना भी मेरी ड्यूटी का ही हिस्सा है।’
  जब कभी भ्रष्टाचार की बात करो तो कुछ लोग कहने लगते हैं कि जनता ही भ्रष्ट हो चुकी है।
  अरे भई, जब जनता के हाथों में ही सब कुछ है तो नेता, पुलिस, प्रशासन और अदालत किसलिए है ?
इसकी स्थापना ही यही मान कर हुई थी कि  जनता के बीच के भ्रष्ट,देश द्रोही  और अपराधी तत्वों को कंट्रेाल करने की जरूरत पड़ेगी ही।
  साठ के दशक में एक अमरीकी प्रोफेसर पाॅल रिचर्ड ब्रास ने उत्तर प्रदेश में गहन रिसर्च करके लिखा था कि  आजादी के बाद सत्ताधारी नेताओं ने ही अपने स्वार्थ में भ्रष्टाचार को ऊपर से ही नीचे तक फैलाया।
  कुछ लोग कहते हैं कि जब तक जनता का विवेक नहीं जगेगा, तब तक भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा।
 पर सवाल है कि वह कैसे जगेगा ?
हजारों -हजार  साधु,संत और अवतारी पुरूष सदियों से विवेक जगाने की कोशिश करते रहे हैं।फिर भी स्थिति बिगड़ती जा रही है।
   1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के बाद इस देश की जनता भी निराश होकर लगभग सो गयी थी। क्योंकि झांसी की रानी और वीर कुंवर सिंह जैसे नेता बाद में नहीं मिले।
  पर जब मोहनदास करमचंद गांधी का आगमन हुआ तो जनता जग गयी और देश आजाद हो गया।
 पर लोगों को जगाने और अच्छे काम के लिए प्रेरित करने के लिए नेता चाहिए और उसके  पास महात्मा गांधी जैसे निःस्वार्थी चरित्र भी  चाहिए।
गांधी का जीवन ही उनका संदेश था।आज कितने नेताओं का जीवन सकारात्मक  संदेश है ?
   सत्ताधारी नेताओं के पास अच्छे या बुरे काम करवाने के लिए यदाकदा सत्ता की ताकत मिल जाती है।
जो भी सत्ताधारी नेता निःस्वार्थी होकर कुछ अच्छे काम करने लगता है,तो जनता उस पर मोहित हो जाती है।
  इस संबंध में एक कहावत मुझे सही लगती है।
  दुनिया के हर देश,हर काल और हर जातीय समूह में तीन तरह के लोग होते हैं। दस प्रतिशत लोग अत्यंत ईमानदार होते हैं।दस प्रतिशत लोग अत्यंत बेईमान होते हैं।
बाकी अस्सी प्रतिशत लोग पिछलग्गू होते हैं।
यदि अत्यंत ईमानदार लोगों के बीच से  शासक पैदा होते हैं तो अस्सी प्रतिशत उनके पीछे लग जाते हैं।इसके विपरीत यदि अत्यंत बेईमान लोगों के पास सत्ता आ जाती है तो फिर अस्सी प्रतिशत उसी ओर चले जाते हैं या फिर मौन हो जाते हैं। 
  

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