लंदन से एक अच्छी खबर आई है।वहां के युवा अखबार को आॅनलाइन की अपेक्षा प्रिंट में पढ़ना अधिक पसंद कर रहे हैं।
लगता है कि वहां के युवा समझदार हैं।
दरअसल मेरी चिंता यह है कि नेट पर अधिक लिखंत-पढंत करने से आंखों को नुकसान हो सकता है।हालांकि लंदन के युवा वर्ग प्रिंट में पढ़ने का कारण दूसरा बता रहे हैंं।
स्वाभाविक ही है कि मेरे पास नेट से लेकर स्मार्ट फोन तक की सुविधाएं हैं। फिर भी मेरे घर रोज एक दर्जन से अधिक दैनिक अखबार आते हैं।ऐसा महंगा काम मैं अपनी आंखों को बचाने के लिए करता हूं ।यानी जरूरी हो तभी नेट का इस्तेमाल किया जाए और आंखों को अधिक से अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने की कोशिश की जाए।
नेट और स्मार्टफोन के अधिक इस्तेमाल के खराब नतीजे आने वाले दिनों में लोगों को भुगतने पड़ सकते हैं, ऐसा मेरा अनुमान है।हालांकि इस संबंध में वैज्ञानिक लोग ही बेहतर बता सकते हैं।
पर मुझे लगता है कि अत्यधिक इस्तेमाल के कारण रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं का जैसा खराब असर खेतों पर पड रह़ा है,वैसा ही विपरीत असर देर-सवेर वेब और एप का पड़ सकता है। इसलिए जरूरत के हिसाब से ही ऐसी कृत्रिम चीजों का इस्तेमाल होना चाहिए।
लगता है कि वहां के युवा समझदार हैं।
दरअसल मेरी चिंता यह है कि नेट पर अधिक लिखंत-पढंत करने से आंखों को नुकसान हो सकता है।हालांकि लंदन के युवा वर्ग प्रिंट में पढ़ने का कारण दूसरा बता रहे हैंं।
स्वाभाविक ही है कि मेरे पास नेट से लेकर स्मार्ट फोन तक की सुविधाएं हैं। फिर भी मेरे घर रोज एक दर्जन से अधिक दैनिक अखबार आते हैं।ऐसा महंगा काम मैं अपनी आंखों को बचाने के लिए करता हूं ।यानी जरूरी हो तभी नेट का इस्तेमाल किया जाए और आंखों को अधिक से अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने की कोशिश की जाए।
नेट और स्मार्टफोन के अधिक इस्तेमाल के खराब नतीजे आने वाले दिनों में लोगों को भुगतने पड़ सकते हैं, ऐसा मेरा अनुमान है।हालांकि इस संबंध में वैज्ञानिक लोग ही बेहतर बता सकते हैं।
पर मुझे लगता है कि अत्यधिक इस्तेमाल के कारण रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं का जैसा खराब असर खेतों पर पड रह़ा है,वैसा ही विपरीत असर देर-सवेर वेब और एप का पड़ सकता है। इसलिए जरूरत के हिसाब से ही ऐसी कृत्रिम चीजों का इस्तेमाल होना चाहिए।
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