इंदिरा गांधी ने एक महीने के भीतर ही चरण सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।
यह राजनीति की अजूबी घटना थी।
साथ ही दूसरी घटना यह हुई कि चरण सिंह संसद
का सामना किए बिना प्रधान मंत्री पद से हट गए।बड़े नेताओं की राजनीतिक उच्चाकांक्षा के कारण जनता पार्टी में टूट के बाद 15 जुलाई 1979 को मोरारजी देसाई ने प्रधान मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।कांग्रेस और सी.पी.आई. के समर्थन से जनता@एस@के नेता चरण सिंह 28 जुलाई 1979 को प्रधान मंत्री बने।
राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने निदेश दिया था कि चरण सिंह 20 अगस्त तक लोक सभा में बहुमत सिद्ध करें।
पर इस बीच इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त को ही यह घोषणा कर दी कि वह चरण सिंह सरकार को संसद में बहुमत साबित करने में साथ नहीं देगी।
नतीजतन चरण सिंह ने लोक सभा का सामना किए बिना ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
राष्ट्रपति ने 22 अगस्त 1979 को लोक सभा भंग करने की घोषणा कर दी।
लोक सभा का मध्यावधि चुनाव हुआ और इंदिरा गांधी 14 जनवरी 1980 को प्रधान मंत्री बन गयीं।
यह सब इतनी जल्दी कैसे हो गया ?
इसके लिए कौन जिम्मेदार थे ? किसे किसने ठगा और किसे इसका राजनीतिक लाभ मिला ?
यह सब बताना तो इतिहास लेखकांे का काम है,पर मोटा- मोटी कुछ बातें समझ में आ जाती हैं।
इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने चरण सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का पूरा राजनीतिक लाभ उठाया।
संजय गांधी तभी से राज नारायण से सीधे संपर्क में थे जब मोरार जी देसाई और चरण सिंह में खटपट शुरू हो गयी थी।
पर चरण सिंह भी एक हद से अधिक समझौते नहीं कर सकते थे।उनके भी कुछ उसूल थे जिससे वे कभी डिगते नहीं थे।
मोरारजी देसाई के प्रधान मंत्रित्व काल में इंदिरा गांधी और संजय गांधी पर मुकदमे हुए थे।
स्वाभाविक ही था कि कांग्रेस समर्थन के बदले में उन मुकदमों की वापसी की उम्मीद चरण सिंह की सरकार से करे।
पर चरण सिंह इसके लिए तैयार नहीं थे।
फिर यह गठबंधन चलता कैसे ?नहीं चला।
पर इसी बीच इंदिरा गांधी का एक बड़ा राजनीतिक उद्देश्य पूरा हो चुका था।उन्होंने जनता नेताओं की पदलोलुपता और फूट को जनता के सामने प्रदर्शित कर दिया।
1977 में लोगों में जनता पार्टी के नेताओं के लिए जैसी इज्जत की भवाना थी,वह कम हो गयी।इससे कांगे्रस की सत्ता में वापसी का रास्ता साफ हो गया।
पर चरण सिंह अपनी सरकार के चले जाने का कारण इन शब्दों में बताया था।अपदस्थ चरण सिंह ने तब बताया था कि ‘मुझे इंदिरा गांधी के बारे में गलतफहमी कभी नहीं थी।
पर,हमने सोचा कि एक महत्वपूर्ण सवाल पर जिससे राष्ट्रीय एकता जुड़ी हुई थी,जब उन्होंने बिना शत्र्त समर्थन की पेशकश की तो हमने उसे स्वीकार किया।जब हम गरीबों, किसानों, पिछड़ों और उपेक्षित वर्गाें के लिए अपना कार्यक्रम बना ही रहे थे कि इंदिरा गांधी ने अपने नजदीकी लोगों से इस तरह के संदेश भेजना शुरू कर दिया कि जब तक संजय गांधी के खिलाफ जारी मुकदमे उठा नहीं लिए जाते वे 20 तारीख को विश्वास मत पर सरकार का साथ नहीं दे सकतीं।’
चरण सिंह ने यह भी कहा कि ‘ यह देश हमें कभी माफ नहीं करता यदि कुर्सी से चिपके रहने के लिए मुकदमे उठा लेते जो इमरजेंसी के अत्याचारों के लिए जिम्मेदार थे।मैं ब्लैकमेल की राजनीति स्वीकार कर एक दिन भी सत्ता में नहीं रह सकता।’
हालांकि उन दिनों चरण सिंह की इस बात पर कुछ लोगों ने यह सवाल किया कि क्या चरण सिंह इतने भोले थे कि वे इंदिरा गांधी की मंशा नहीं समझ सके थे ? संजय पर मुकदमे चलते रहने की स्थिति में भी इंदिरा गांधी चरण सिंह की सरकार को समर्थन देना कैसे जारी रख सकती थीं ? क्या इंदिरा गांधी पर संजय के प्रभाव से चरण सिंह अवगत नहीं थे ?
खैर दरअसल चरण सिंह प्रधान मंत्री बनने की जल्दीबाजी में थे।वे तो बन भी गए।
पर इसके अतिरिक्त चरण सिंह में कई गुण भी थे।वह पढ़े -लिखे थे।कुछ पठनीय किताबें भी लिखी हैं।जीवन के प्रारंभिक काल में गाजियाबाद में वकालत करते थे। किसानों की समस्याओं को वे जितना समझते थे,उतना कम ही नेता समझते थे।
वे बार- बार कहा करते थे कि जब तक किसानों की आय नहीं बढ़ेगी, तब तक कारखानों में उत्पादित माल के खरीदार नहीं बढे़ंगे।खरीदार नहीं बढ़ेंगे तो कारखाने मुनाफे में कैसे रहेंगे ?
चैधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को यूनाइटेड प्रोविंस के नूर पुर गांव में, जो अब उत्तर प्रदेश है, हुआ था।
वे सन 1937 में विधान सभा के सदस्य चुने गए थे।
सन् 1967 में मुख्य मंत्री बनने से पहले राज्य के कैबिनेट मंत्री रह चुके थे।वे 1970 में भी मुख्य मंत्री बने थे।
सन् 1977 में वे केंद्र सरकार में उप प्रधान मंत्री और गृह मंत्री बने।वे आजादी की लड़ाई और आपातकाल में जेल में रहे।
उन्होंने हमेशा वही किया जो वे चाहते थे।
29 मई 1987 को उनका निधन हो गया।
@चरण सिंह के जन्म दिन पर फस्र्टपोस्टहिंदी पर 23 दिसंबर 2017 को प्रकाशित मेरा लेख@
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