प्रधान मंत्री के रूप में मोरारजी देसाई जब पटना आए थे तो वे रात में राज भवन की खुली जगह में मच्छरदानी लगा कर सोये थे।तब सुना था कि उन्होंने पंखा भी नहीं चलने दिया था।
तब कुछ लोगों को इस बात पर आश्चर्य हुआ था कि उन्होंने एयर कंडीशनर का इस्तेमाल नहीं किया।
आजादी की लड़ाई में तरह -तरह की तकलीफें झेलने के अभ्यस्त ऐसे गांधीवादी नेताओं की साधारण जीवन शैली की कल्पना शायद आज की पीढ़ी को नहीं होगी।
आजादी के तत्काल बाद के कुछ नेता जब अपने शहर या राज्य से बाहर जाते थे तो वे अपने मित्र नेताओं व राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं के आवास में टिकते थे।पर, बाद के वर्षों में वह परंपरा लगभग समाप्त हो गयी ।उसके
कई कारण थे।एक कारण तो बड़ा शर्मनाक था।
यानी, शर्मनाक संबंधों को लेकर कुछ दिलजले लोगों द्वारा अफवाह फैलाने के कारण ऐसी स्थिति बनी।
अपवादों को छोड़ दें तो आज तो अधिकतर दलों के सामान्य राजनीतिक कार्यकत्र्ता गण भी शीत ताप नियंत्रित जीवन शैली के अभ्यस्त हो चुके हैं।
जवाहर लाल नेहरू की आराम तलब जीवन शैली के बारे में कुछ किस्से हम सब सुनते हुए बड़े हुए हैं।
पर वैसी चर्चाओं मंे कई बार पूूरी सच्चाई नहीं होती।
सच्चाई तो यह थी कि नेहरू जी एयर कंडीशनर पसंद नहीं करते थे।उनके साथ निजी सचिव के रूप में 13 साल रहे एम.ओ.मथाई ने लिखा है कि नेहरू जी एयर कंडीशनर न तो अपने सोने के कमरे में इस्तेमाल करते थे और न ही सचिवालय में ।यहां तक कि संसद भवन के अपने दफ्तरों में भी नहीं।
मथाई के अनुसार रात में वे बरामदे में सोना पसंद करते थे।
पर गर्मियों में वे प्रधान मंत्री निवास में अपने कार्यालय में एयर कंडीशनर जरूर चलने देते थे।
वे वहां रात में देर तक काम करते थे।
मथाई ने लिखा कि 1955 में मैंने महसूस किया कि उनके सोने के कमरे में एयर कंडीशनर लगवा दिया जाए ताकि हारी-बीमारी में काम आए।याद रहे कि तब तक वे बूढे होने लगे थे। उनसे पूछे बिना मैंने तब लगवा दिया था जब वे विदेश के दौरे पर थे।लौटने के बाद बोले कि ‘मुझे इसकी जरूरत नहीं।’
इस पर मथाई ने कहा कि जरूरत पड़ने पर ही उसका इस्तेमाल किया जाएगा।
रोजाना उसे नहीं चलाया जाएगा।
लेकिन मथाई करते यह थे कि गर्मियों में जब वे दोपहर को खाने के लिए घर आते थे तो उसके पहले दो घंटे के लिए उसे चलवा देते थे।जैसे ही उनकी कार फाटक पर पहुंची,उसे बंद करवा देते थे।
खाने के बाद वे अपने ठंडे कमरे में कुछ देर आराम करते थे लेकिन उनके सामने मशीन नहीं चलती थी।
हां,एयर कंडीशनर उनके जीवन के अंतिम दिनों में बहुत काम आया, खास तौर से उनके अंतिम एक महीने यानी मई 1964 में जब बेहद गर्मी थी।
इस पृष्ठभूमि में आप कल्पना कीजिए कि इन दिनों की ठंड से बचने के लिए हमारे अधिकतर नेता सहित इस देश के अनेक प्रभावशाली लोग शीत नियंत्रणक मशीनों पर कितनी अधिक बिजली खर्च करते होंगे और उसमें से कितनी बिजली के लिए बिल भरे जाते हैं और कितनी ........?
तब कुछ लोगों को इस बात पर आश्चर्य हुआ था कि उन्होंने एयर कंडीशनर का इस्तेमाल नहीं किया।
आजादी की लड़ाई में तरह -तरह की तकलीफें झेलने के अभ्यस्त ऐसे गांधीवादी नेताओं की साधारण जीवन शैली की कल्पना शायद आज की पीढ़ी को नहीं होगी।
आजादी के तत्काल बाद के कुछ नेता जब अपने शहर या राज्य से बाहर जाते थे तो वे अपने मित्र नेताओं व राजनीतिक कार्यकत्र्ताओं के आवास में टिकते थे।पर, बाद के वर्षों में वह परंपरा लगभग समाप्त हो गयी ।उसके
कई कारण थे।एक कारण तो बड़ा शर्मनाक था।
यानी, शर्मनाक संबंधों को लेकर कुछ दिलजले लोगों द्वारा अफवाह फैलाने के कारण ऐसी स्थिति बनी।
अपवादों को छोड़ दें तो आज तो अधिकतर दलों के सामान्य राजनीतिक कार्यकत्र्ता गण भी शीत ताप नियंत्रित जीवन शैली के अभ्यस्त हो चुके हैं।
जवाहर लाल नेहरू की आराम तलब जीवन शैली के बारे में कुछ किस्से हम सब सुनते हुए बड़े हुए हैं।
पर वैसी चर्चाओं मंे कई बार पूूरी सच्चाई नहीं होती।
सच्चाई तो यह थी कि नेहरू जी एयर कंडीशनर पसंद नहीं करते थे।उनके साथ निजी सचिव के रूप में 13 साल रहे एम.ओ.मथाई ने लिखा है कि नेहरू जी एयर कंडीशनर न तो अपने सोने के कमरे में इस्तेमाल करते थे और न ही सचिवालय में ।यहां तक कि संसद भवन के अपने दफ्तरों में भी नहीं।
मथाई के अनुसार रात में वे बरामदे में सोना पसंद करते थे।
पर गर्मियों में वे प्रधान मंत्री निवास में अपने कार्यालय में एयर कंडीशनर जरूर चलने देते थे।
वे वहां रात में देर तक काम करते थे।
मथाई ने लिखा कि 1955 में मैंने महसूस किया कि उनके सोने के कमरे में एयर कंडीशनर लगवा दिया जाए ताकि हारी-बीमारी में काम आए।याद रहे कि तब तक वे बूढे होने लगे थे। उनसे पूछे बिना मैंने तब लगवा दिया था जब वे विदेश के दौरे पर थे।लौटने के बाद बोले कि ‘मुझे इसकी जरूरत नहीं।’
इस पर मथाई ने कहा कि जरूरत पड़ने पर ही उसका इस्तेमाल किया जाएगा।
रोजाना उसे नहीं चलाया जाएगा।
लेकिन मथाई करते यह थे कि गर्मियों में जब वे दोपहर को खाने के लिए घर आते थे तो उसके पहले दो घंटे के लिए उसे चलवा देते थे।जैसे ही उनकी कार फाटक पर पहुंची,उसे बंद करवा देते थे।
खाने के बाद वे अपने ठंडे कमरे में कुछ देर आराम करते थे लेकिन उनके सामने मशीन नहीं चलती थी।
हां,एयर कंडीशनर उनके जीवन के अंतिम दिनों में बहुत काम आया, खास तौर से उनके अंतिम एक महीने यानी मई 1964 में जब बेहद गर्मी थी।
इस पृष्ठभूमि में आप कल्पना कीजिए कि इन दिनों की ठंड से बचने के लिए हमारे अधिकतर नेता सहित इस देश के अनेक प्रभावशाली लोग शीत नियंत्रणक मशीनों पर कितनी अधिक बिजली खर्च करते होंगे और उसमें से कितनी बिजली के लिए बिल भरे जाते हैं और कितनी ........?
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