अचानक बी. जी. वर्गीस की याद आ गयी।
वैसे यह अचानक भी नहीं था।
इन दिनों जब मैं सुनता हूं कि दिल्ली के कुछ पत्रकारों के अपने बड़े -बड़े फार्म हाउसेस और न जाने क्या -क्या हैं तो एक संत पत्रकार की याद आना स्वाभाविक ही है।
एक्सप्रेस के मालिक राम नाथ गोयनका ने उन्हें संत ही कहा था।
गोयनका ने वर्गीस कहा था कि तुम्हें यहां नहीं बल्कि वेटिकन सिटी में रहना चाहिए था।
1969 से 1975 तक हिन्दुस्तान टाइम्स का संपादक रहने के बाद वर्गीस 1982 में इंडियन एक्सप्रेस ज्वाइन कर रहे थे।
जब वेतन की बात चली तो गोयनका जी ने कहा कि एक्सप्रेस के संपादक का वेतन 20 हजार रुपए मासिक है।
वर्गीस ने कहा कि मेरा काम तो दस हजार रुपए में ही चल जाएगा।
गोयनका ने कहा कि कैसी बात करते हो ? इस पद के लिए इतना ही वेतन है, मैं इसे कम कैसे कर सकता हंू ?
इस पर वर्गीस ने कहा कि पत्रकार के पास अधिक पैसे नहीं होने चाहिए।फिर तो वह पत्रकार नहीं रह जाता।
पत्रकारिता पर गर्व करने वाली यह कहानी मुझे प्रभाष जोशी ने सुनाई थी।
मैं उनसे पूछ नहीं सका था कि आखिर अंततः वे 10 हजार ही लेते थे या 20 लेना स्वीकार कर लिया था ?खैर, उस जानकारी का कोई महत्व भी नहीं था। सवाल है कि क्या आज कोई बड़ा पत्रकार यह कह सकता है कि मेरा तो इतने ही में चल जाएगा ?
वर्गीस का जन्म 1926 में हुआ था।उनका निधन 2014 में हो गया।
वैसे यह अचानक भी नहीं था।
इन दिनों जब मैं सुनता हूं कि दिल्ली के कुछ पत्रकारों के अपने बड़े -बड़े फार्म हाउसेस और न जाने क्या -क्या हैं तो एक संत पत्रकार की याद आना स्वाभाविक ही है।
एक्सप्रेस के मालिक राम नाथ गोयनका ने उन्हें संत ही कहा था।
गोयनका ने वर्गीस कहा था कि तुम्हें यहां नहीं बल्कि वेटिकन सिटी में रहना चाहिए था।
1969 से 1975 तक हिन्दुस्तान टाइम्स का संपादक रहने के बाद वर्गीस 1982 में इंडियन एक्सप्रेस ज्वाइन कर रहे थे।
जब वेतन की बात चली तो गोयनका जी ने कहा कि एक्सप्रेस के संपादक का वेतन 20 हजार रुपए मासिक है।
वर्गीस ने कहा कि मेरा काम तो दस हजार रुपए में ही चल जाएगा।
गोयनका ने कहा कि कैसी बात करते हो ? इस पद के लिए इतना ही वेतन है, मैं इसे कम कैसे कर सकता हंू ?
इस पर वर्गीस ने कहा कि पत्रकार के पास अधिक पैसे नहीं होने चाहिए।फिर तो वह पत्रकार नहीं रह जाता।
पत्रकारिता पर गर्व करने वाली यह कहानी मुझे प्रभाष जोशी ने सुनाई थी।
मैं उनसे पूछ नहीं सका था कि आखिर अंततः वे 10 हजार ही लेते थे या 20 लेना स्वीकार कर लिया था ?खैर, उस जानकारी का कोई महत्व भी नहीं था। सवाल है कि क्या आज कोई बड़ा पत्रकार यह कह सकता है कि मेरा तो इतने ही में चल जाएगा ?
वर्गीस का जन्म 1926 में हुआ था।उनका निधन 2014 में हो गया।
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