8 सितंबर 2012 को लोक सभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा था कि संसद के काम काज को बाधित करना भी लोकतंत्र का एक फार्म है जिस तरह लोकतंत्र के अन्य रूप-विधान हैं।
स्वराज ने यह भी कहा था कि प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह जब राज्य सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे तो उन्होंने भी तहलका के मुद्दे पर संसद के काम काज को बाधित किया था।
अब विदेश मंत्री सुषमा स्वाराज इस बात पर सख्त नाराज हैं कि उन्हें इराक में मृत 39 भारतीय नागरिकों के बारे में अपनी बात लोक सभा में नहीं रखने दी।कांग्रेस के सदस्यों ने भारी हंगामा कर दिया।
उधर 12 दिनों से संसद में जारी हंगामे से खफा राज्य सभा के सभापति वेंकैया नायडु ने सांसदों को दिए जाने वाले रात्रि भोज को रद कर दिया।
दरअसल जो भी दल प्रतिपक्ष में रहता है, वह संसद व विधान सभाओं को लोकलाज त्याग कर ‘हंगामा सभा’ बना ही देता है।
पर वही दल जब सत्ता में होता है तो संसद के काम काज में बाधा पहुंचाने की आलोचना करता है।
अपने देश के गैर जिम्मेदार नेताओं की इस करतूत पर सही सोच वाले सारे लोग छि छि करते हैं।
क्या नेतागण चाहते भी हैं कि सदन सुचारू रुप से चले ?
लगता तो नहीं है।पर यदि चाहते हैं तो एक उपाय मेरी समझ में आता है।इसके लिए सभी दलों को इस पर सहमत होना होगा।
पिछली गलतियों के लिए उन्हें सार्वजनिक रूप से देश से माफी मांगनी होगी।क्योंकि उन्होंने संसदीय लोक तंत्र को कलुुषित किया है। ं
अन्यथा इस देश का संसदीय लोक तंत्र सभ्य लोगों का लोक तंत्र नहीं कहलाएगा।चाहे आप उन हंगामा करने वालों को अपने मन -मिजाज के अनुसार अन्य जो भी नाम दे दें।
स्वराज ने यह भी कहा था कि प्रधान मंत्री मन मोहन सिंह जब राज्य सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे तो उन्होंने भी तहलका के मुद्दे पर संसद के काम काज को बाधित किया था।
अब विदेश मंत्री सुषमा स्वाराज इस बात पर सख्त नाराज हैं कि उन्हें इराक में मृत 39 भारतीय नागरिकों के बारे में अपनी बात लोक सभा में नहीं रखने दी।कांग्रेस के सदस्यों ने भारी हंगामा कर दिया।
उधर 12 दिनों से संसद में जारी हंगामे से खफा राज्य सभा के सभापति वेंकैया नायडु ने सांसदों को दिए जाने वाले रात्रि भोज को रद कर दिया।
दरअसल जो भी दल प्रतिपक्ष में रहता है, वह संसद व विधान सभाओं को लोकलाज त्याग कर ‘हंगामा सभा’ बना ही देता है।
पर वही दल जब सत्ता में होता है तो संसद के काम काज में बाधा पहुंचाने की आलोचना करता है।
अपने देश के गैर जिम्मेदार नेताओं की इस करतूत पर सही सोच वाले सारे लोग छि छि करते हैं।
क्या नेतागण चाहते भी हैं कि सदन सुचारू रुप से चले ?
लगता तो नहीं है।पर यदि चाहते हैं तो एक उपाय मेरी समझ में आता है।इसके लिए सभी दलों को इस पर सहमत होना होगा।
पिछली गलतियों के लिए उन्हें सार्वजनिक रूप से देश से माफी मांगनी होगी।क्योंकि उन्होंने संसदीय लोक तंत्र को कलुुषित किया है। ं
अन्यथा इस देश का संसदीय लोक तंत्र सभ्य लोगों का लोक तंत्र नहीं कहलाएगा।चाहे आप उन हंगामा करने वालों को अपने मन -मिजाज के अनुसार अन्य जो भी नाम दे दें।
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