राजग उत्तर प्रदेश में जहां अपना राजनीतिक किला नहीं बचा सका,वहीं बिहार में राजग ने अपनी भभुआ विधान सभा सीट बनाए रखी।अररिया और जहानाबाद सीटें तो पहले से ही राजद के पास थीं।
उत्तर प्रदेश में जहां दलीय समीकरण सपा के अनुकूल रहा,वहीं
बिहार में जदयू-भाजपा गठबंधन का लाभ राजग को मिला।
एक सासंद और दो विधायकों के निधन के कारण बिहार की तीन सीटों पर उप चुनाव हुए थे।मृतक जन प्रतिनिधियों के परिजन ही तीनों क्षेत्रों में चुनाव मैदान में थे।
उन्हें सहानुभूति मतों का लाभ मिला।ऐसे अवसरों पर अन्य परिजन उम्मीदवारों को भी मिलता रहा है।
तीनों सीटों पर परिजनों की ही जीत हुई है।
हालांकि इस उप चुनाव में यह बात भी देखी गयी कि राजद के मुस्लिम -यादव समीकरण के मतों की एकजुटता पहले की अपेक्षा बढ गय़ी है।
अररिया लोक सभा और जहानाबाद विधान सभा चुनाव क्षेत्रों के नतीजों से इस बात का संकेत मिल रहा है।
नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद सन 2014 के लोक सभा चुनाव में मुस्लिम-यादव बहुल क्षेत्र अररिया से राजद के तसलीमुद्दीन विजयी हुए थे।
इस बार तसलीमुद्दीन के पुत्र राजद के उम्मीदवार थे।
सन 2014 के चुनाव में भाजपा,जदयू और राजद के उम्मीदवार वहां एक दूसरे से मुकाबला कर रहे थे।
तब भाजपा और जदयू को प्राप्त मतों का जोड़ डाले गए कुल मतों का करीब 50 प्रतिशत था।
राजद उम्मीदवार को 41 प्रतिशत मत मिले थे।
भाजपा और जदयू के बीच मतों के बंटवारे का सीधा लाभ तब राजद को मिला था।
पर इस बार तो भाजपा को जदयू का समर्थन हासिल था।
इसके बावजूद राजद की अररिया मंे जीत के कारणों पर राजग को गहन चिंतन करना पड़ेगा।
पर भभुआ विधान सभा चुनाव क्षेत्र में
भाजपा की जीत से राजग बिहार में चुनावी भविष्य के प्रति आशान्वित हो सकता है।क्योंकि वहां जातियों की दृष्टि से लगभग मिलीजुली आबादी है।
यानी भभुआ के चुनाव नतीजे को देखकर यह कहा जा सकता है कि बिहार की राजग सरकार से आम लोगों का अभी मोहभंग नहीं हुआ है।क्योंकि भभुआ जातीय दृष्टि से भी मिली जुली आबादी वाला चुनाव क्षेत्र है।राजग का नारा भी है ‘सबका साथ,सबका विकास।’
इस तरह लगता है कि कुल मिला कर दलीय समीकरण बिहार में राजग के अब भी अनुकूल ही है।
हां, राजद के वोट बैंक वाले चुनाव क्षेत्र अररिया और जहानाबाद में राजद उम्मीदवारों के पहले की अपेक्षा बेहतर प्रदर्शन को लेकर तरह -तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं।क्या लालू प्रसाद के जेल जाने से मतदाताओं के एक वर्ग में उपजी सहानुभूति के कारण उनके वोट बैंक में एकजुटता बढ़ी है ?
क्या दिवंगत जन प्रतिनिधियों की संतानों के लिए मतदाताओं में भारी सहानुभूति के कारण वोट बढ़े हैं ? या कोई और बात है ?क्या बिहार सरकार को सुशासन और विकास के अपने कार्यक्रम को और तेज करना पड़ेगा ?
इन सवालों पर मंथन आगे भी होता रहेगा।
उधर उत्तर प्रदेश में राजग को यह उम्मीद ही नहीं थी कि बसपा सपा को इस चुनाव में मदद कर देगी।
सपा -बसपा की एकजुटता का सीधा चुनावी नुकसान भाजपा को हो गया।चुनाव नतीजा आने के बाद भाजपा नेताओं ने कहा है कि वह अब अपनी रणनीति बदलेगी।
पर सवाल है कि वह बदली हुई रणनीति क्या होगी ? क्योंकि सपा और बसपा के अपने -अपने मजबूत वोट बैंक हैं जो दोनों मिलकर भाजपा पर आगे भी भारी पड़ सकते हैं।इसलिए भाजपा को उत्तर प्रदेश में अपना आधार वोट बढ़ाना पड़ेगा जो अभी 30 प्रतिशत के आसपास ही है।वह कैसे बढ़ेगा ?
इस संंबंध में भाजपा के एक शुभचिंतक ने बताया कि महिला आरक्षण विधेयक संसद से पारित कराने से उसका आधार वोट बढ़ सकता है।कंेद्र सरकार ने 27 प्रतिशत मंडल आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।अति पिछड़ों को आकर्षित करने के लिए यह कदम उठाया जा रहा है।
दिल्ली हाई कोर्ट की रिटायर जस्टिस रोहिणी के नेतृत्व में आरक्षण कोटे के वर्गीकरण के प्रस्ताव की समीक्षा के लिए गत अक्तूबर में कमेटी का गठन भी कर दिया गया है।उसकी रपट आने ही वाली है।
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार 2019 के लोक सभा चुनाव को देखते हुए केंद्र और उत्तर प्रदेश की सरकारों को विकास व सुशासन के क्षेत्रों में अनेक जरूरी कदम उठाने होंगे।भ्रष्टाचार के
खिलाफ कदम तो उठ रहे हैं ,पर वे उतने कारगर नहीं हैं जितने होने चाहिए।यदि यह सब नहीं हुआ तो देश के सबसे बड़े प्रदेश में संभावित सपा-बसपा चुनावी गठबंधन का मुकाबला करना राजग के लिए कठिन होगा।
@--प्रभात खबर-बिहार-15 मार्च 2018 @
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