बुधवार, 28 मार्च 2018

 इंडिया टूडे काॅनक्लेव में हाल में सोनिया गांधी ने कहा  कि कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी के रूप में देखे जाने की भारी कीमत चुकानी पड़ी।
  इस बात से लगता है कि कांग्रेस को अपनी असली ‘बीमारी’ का आज भी पता नहीं है।
वह इलाज क्या करेगी !
दरअसल कांग्रेस को लोगों ने मुस्लिम पार्टी के रूप में नहीं बल्कि ऐसे एक दल के रूप में देखा जो देश को टुकड़े -टुकड़े @ राहुल की जेएनयू यात्रा@करने की कोशिश में लगी शक्तियों का बचाव करती है।यदि कांग्रेस सरकारें आम मुसलमानों की आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति सुधारने के लिए  कुछ ठोस करती तो धर्म निरपेक्ष मिजाज वाले इस देश के अनेक लोगों को वह अच्छा लगता।
पर कांग्रेस के बड़े नेता सलमान खुर्शीद सिमी के पक्ष में अदालत में वकील बन गए।क्या वे कभी आर.एस.एस.के वकील बनेंगे ? याद रहे कि कुछ वकील कहते हैं कि यह तो हमारा पेश है जो आएगा,उसी की वकालत करेंगे।सिमी का शुरू से ही यह घोषित लक्ष्य रहा कि इस देश में हथियार के बल पर इस्लामी शासन कायम करना है।
दिग्विजय सिंह बाटला हाउस मुंठभेड़ पर पुलिसकर्मी शर्मा को ही कसूरवार ठहराने लगे थे।
2008 में मुम्बई में ताज होटल पर हुए आतंकी हमले पर पूर्व मुख्य मंत्री ए.आर.अंतुले ने बयान दे दिया था कि इसके पीछे  संघ परिवार है।मणिशंकर अययर पाकिस्तान जाकर वहां के लोगों से अपील करते हैं कि आप लोग भारत में मोदी को हराइए।
  मुसलमानों की आर्थिक दुर्दशा पर सच्चर रपट और रंगनाथ मिश्र रपट धूल खाती रही ,पर कांग्रेस की सरकारें व नेता अति वादी मुस्लिम नेताओं व मुल्लाओं से  गलबाहियां करते रहे।चुनाव से ठीक पहले दिल्ली की  जामा मस्जिद के विवादास्पद इमाम से मुलाकात करते रहे।वह अपने यहां महत्वपूर्ण कार्यक्रम में पाकिस्तान के पी.एम.को तो आमंत्रित करता है,पर भारत के पी.एम..को नहीं बलाता।
 कांग्रेस अगला लोस चुनाव दलीय गठजोड़ करके भले जीत जाए ,पर उस पर अतिवादी मुस्लिम नेताओं का समर्थन करने का दाग शायद नहीं धुलेगा।
सांप्रदायिक मामलों में कांग्रेस यदि सचमुच संतुलन अपनाए तो वह देश के लोकतंत्र के लिए भी भला होगा।पर लगता है कि अच्छे विचारों को  ग्रहण करने की क्षमता अब कांग्रेस में रही नहीं।   @27 डंतबी 2018@   

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