शनिवार, 17 मार्च 2018

 1972 की बात है।कर्पूरी ठाकुर बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता थे।
विधान सभा भवन स्थित अपने आॅफिस के मुख्य टेबल पर उनके निजी सचिव व कर्पूरी जी के लिए दोपहर का खाना आया।
   निजी सचिव खाना खाकर पहले ही उठ गया।हाथ धोने बेसिन की ओर चला गया।
उसने जूठी थाली टेबल पर ही छोड़ दी।
कर्पूरी जी ने जब अपना खाना खत्म किया तो उन्होंने एक हाथ से अपनी और दूसरे हाथ से अपने निजी सचिव की थाली उठाई और कमरे के बाहर रख दिया।कर्पूर्री जी भी हाथ धोने चले गए।
बेसिन थोड़ा दूर था।
इस बीच निजी सचिव आ गया।वहां पहले से बैठे प्रणव चटर्जी ने निजी सचिव से पूछा, ‘आपको पता है कि आपकी थाली किसने उठाई ?’
निजी सचिव ने कहा कि दुर्गा ने उठाया होगा।दुर्गा कैंटीन का स्टाफ  था।
बक्सर के  पूर्व विधायक  प्रणव जी ने कहा कि ‘नहीं आपकी जूठी थाली खुद कर्पूरी जी उठाई और बाहर रखा।’
यह सुनकर  निजी सचिव शर्मिंदा हो गया। 
 यदि कर्पूरी जी की जगह कोई अन्य नेता, खास कर आज का कोई नेता होता तो उस स्थिति में वह क्या करता ?

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