बुधवार, 7 मार्च 2018

  कोनराड संगमा जब मेघालय के मुख्य मंत्री बने तो एक  अखबार ने उस खबर की हेडिंग लगाई -- ‘अ चीफ मिनिस्टर बाई चांस।’
पी.वी.नरसिंह 1991 में जब प्रधान मंत्री बने थे तो उस समय भी यह कहा गया कि वे बाई चांस बन गए।
विप्लव कुमार देव जब त्रिपुरा के मुख्य मंत्री बन रहे हैं तो  यह कहा गया कि वे काम के बल पर बन रहे हैं।
राजस्थान की मुख्य मंत्री के बारे में कुछ लोग कहते हैं कि वह एक खास परिवार की होने के कारण मुख्य मंत्री हैं।
    इस लोकतांत्रिक देश में समय -समय पर जब कुछ  व्यक्ति या नेता मुख्य मंत्री या  प्रधान मंत्री बनते हैं तो यह बात स्पष्ट रहती है कि वे किसी खास वंश या परिवार के कारण बने हैं।
  दरअसल भारत विविधताओं का देश है।
यहां की लोकतांत्रिक परंपरा भी विविधतापूर्ण रही है।
 एक खास परंपरा भी चल पड़ी है।कुछ राजनीतिक पार्टी  खास राजनीतिक परिवारों की निजी संपत्ति सी बनती जा रही है।
या यूं कहें कि कुछ दल व्यावसायिक उपक्रम की तरह बन रहे  हंै।
यदि किसी उद्यमी का निजी कारखाना हो और उसमें लगातार घाटा हो रहा हो,तोभी वह उस कारखाने को  किसी अन्य व्यक्ति को दान तो नहीं कर देगा !
उसी तरह  कोई पार्टी अयोग्य,अदूरदर्शी  व कल्पनाविहीन नेतृत्व के कारण यदि लगातार  पराभव की ओर जा रही है,फिर भी  उसका मालिक यानी नेतृत्व  नहीं बदल रहा है ! नीति और रणनीति भी नहीं ।
यानी अपना भारत महान ! लोकतंत्र से डाइनेस्टिक डेमोक्रेसी की ओर प्रस्थान ! 


कोई टिप्पणी नहीं: