सोमवार, 26 मार्च 2018

मशहूर कम्युनिस्ट नेता जगन्नाथ सरकार ने लिखा था कि  राज कुमार पूर्वे के संस्मरणों से गुजरना एक दिलचस्प अनुभव है।दिवंगत पूर्वे की संस्मरणात्मक पुस्तक ‘स्मृति शेष’ का एक प्रकरण में सामान्य पाठकों 
की भी दिलचस्पी हो सकती है।
यह प्रकरण है भारत पर चीन के हमले का प्रकरण।
स्वतंत्रता सेनानी व विधायक रहे दिवंगत पूर्वे के अनुसार, चीन ने भारत  पर 1962 में आक्रमण कर दिया।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने आक्रमण का विरोध किया।
पार्टी में बहस होने लगी।
कुछ नेताओं का कहना था कि चीनी हमला हमें पूंजीवादी सरकार से मुक्त कराने के लिए है।दूसरों का कहना था कि माक्र्सवाद हमें यही सिखाता है कि क्रांति का आयात नहीं होता।
देश की जनता खुद अपने संघर्ष से पूंजीवादी व्यवस्था और सरकार से अपने देश को मुक्त करा सकती है।
पार्टी  के अंदर एक वर्ष से कुछ ज्यादा दिनों तक बहस चलती रही।
लिबरेशन या एग्रेशन का ?
इसी कारण कम्ुयनिस्ट पार्टी, जो राष्ट्रीय धारा के साथ आगे बढ़ रही थी और विकास कर रही थी, पिछड़ गयी।
लोगों में देश पर चीनी आक्रमण से रोष था।
यह स्वाभाविक था ,देशभक्त ,राष्ट्रभक्त की सच्ची भावना थी।
यह हमारे खिलाफ पड़ गया।कई जगह पर हमारे राजनीतिक विरोधियों ने लोगों को संगठित कर हमारे आॅफिसों और नेताओं पर हमला भी किया।
हमें चीनी दलाल कहा गया।
आखिर में उस समय 101 सदस्यों की केंद्रीय कमेटी में से 31 सदस्य पार्टी से 1964 में निकल गए।
उन्होंने अपनी पार्टी का नाम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी@माक्र्सवादी @रखा।सिर्फ भारत में ही नहीं,कम्युनिस्ट पार्टी के इस अंतर्राष्ट्रीय फूट ने पूरे विश्व में पार्टी के बढ़ाव को रोका और अनेक देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों में फूट पड़ गयी।
    

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