2013 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सिविल सर्वेंट राजनीतिक कार्यपालिका के मौखिक आदेशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है।
ऐसे ऐतिहासिक आदेश हासिल करने के पीछे भारत सरकार के पूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर.सुब्रमणियन की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
सुब्रमणियन का गत सोम वार को निधन हो गया।
वे नब्बे के दशक में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव भी रह चुके थे।
उत्तर प्रदेश जैसे ‘प्रश्न प्रदेश’ में मुख्य सचिव रह कर भी विचारों से भी ईमानदार बने रहना एक बड़ी बात है।
ऐसे ही एक अन्य अफसर हैं पूर्व आई.पी.एस.अफसर प्रकाश सिंह।
उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में पुलिस सुधार लागू करने का निदेश सरकार को दिया था।
यह और बात है कि वह आदेश अब तक लागू नहीं हुआ।
सरकारें समझती हैं कि यदि पुलिस स्वतंत्र हो जाएगी तो हम शासन कैसे चला पाएंगे ?
प्रकाश सिंह नब्बे के दशक में उत्तर प्रदेश के डी.जी.पी.थे।
सुब्रमणियन और प्रकाश सिंह जैसे अफसरों को टी.वी.पर कई बार सुना है।
उनकी बातों से ही यह साफ लग जाता है कि वे ईमानदार और देश के हित में सोचने वाले अफसर रहे हैं।
ऐसे अफसर अब भी जहां -तहां हैं, पर उनकी संख्या नगण्य है।इस देश में ऐसे अफसरों की संख्या अधिक होती तो शासन में ईमानदारी आती और विकास के काम तेज होते।
याद रहे कि सिर्फ किसी प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री के ईमानदार होने से ही चीजें सही नहीं हो जातीं जब तक कि अफसर भी ईमानदार न हों।
ऐसे ऐतिहासिक आदेश हासिल करने के पीछे भारत सरकार के पूर्व कैबिनेट सचिव टी.एस.आर.सुब्रमणियन की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
सुब्रमणियन का गत सोम वार को निधन हो गया।
वे नब्बे के दशक में उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव भी रह चुके थे।
उत्तर प्रदेश जैसे ‘प्रश्न प्रदेश’ में मुख्य सचिव रह कर भी विचारों से भी ईमानदार बने रहना एक बड़ी बात है।
ऐसे ही एक अन्य अफसर हैं पूर्व आई.पी.एस.अफसर प्रकाश सिंह।
उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में पुलिस सुधार लागू करने का निदेश सरकार को दिया था।
यह और बात है कि वह आदेश अब तक लागू नहीं हुआ।
सरकारें समझती हैं कि यदि पुलिस स्वतंत्र हो जाएगी तो हम शासन कैसे चला पाएंगे ?
प्रकाश सिंह नब्बे के दशक में उत्तर प्रदेश के डी.जी.पी.थे।
सुब्रमणियन और प्रकाश सिंह जैसे अफसरों को टी.वी.पर कई बार सुना है।
उनकी बातों से ही यह साफ लग जाता है कि वे ईमानदार और देश के हित में सोचने वाले अफसर रहे हैं।
ऐसे अफसर अब भी जहां -तहां हैं, पर उनकी संख्या नगण्य है।इस देश में ऐसे अफसरों की संख्या अधिक होती तो शासन में ईमानदारी आती और विकास के काम तेज होते।
याद रहे कि सिर्फ किसी प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री के ईमानदार होने से ही चीजें सही नहीं हो जातीं जब तक कि अफसर भी ईमानदार न हों।
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