जेपी आंदोलन के एक कर्मठ नेता रहे अरूण दास मुझसे मिलने आए थे।
उन्होंने चम्पारण में पंकज जी के नेतृत्व में जारी कठिन भूमि आंदोलन की चर्चा की।
वे लोग भूमिहीनों को उनका हक दिलाने के लिए आंदोलनरत हैं।
उससे पहले प्रियदर्शी जी ने भी उस भूमि आंदोलन के बारे में मुझे बताया था।
अखबारों के अलग -अलग कई संस्करण निकलने के कारण जिलों की महत्वपूर्ण खबरें भी पटना के पाठकों तक कम ही पहुंच पाती हैं।
वैसे जो कुछ मैंने इस आंदोलन के बारे में सुना,उससे लगा कि वह बहुत महत्वपूर्ण है।
गांधी जी की कर्मभूमि में हजारों एकड़ जमीन का मामला दशकों से लटका हो और भूमिहीन जमीन के एक टुकड़े के लिए आंदोलनरत हों,इस खबर को पूरे देश में पहुंचना चाहिए।
कम से कम फेसबुक मित्र तो जान लें।
यह सब सुनकर मुझे सत्तर के दशक की एक घटना याद आ गयी।
एक दिन मैं रामानंद तिवारी के पटना स्थित आर.ब्लाॅक स्थित आवास में बैठा हुआ था।
उनके दल के चम्पारण के एक नेता जी उनके पास आए।उन्होंने तिवारी जी से कहा कि रोगी महतो हत्याकांड वाले केस में हम लोगों को अब सुलह कर लेनी चाहिए।
इस पर तिवारी जी ने तमतमा कर दृढ शब्दों में कहा कि आप कम्प्रोमाइज कर लीजिए।मैं रोगी महतो की लाश का सौदा नहीं करूंगा।
यह कहते समय तिवारी जी की आंखों में आंसू थे।
दरअसल 1969 में तिवारी जी के नेतृत्व में चम्पारण में जोरदार भूमि आंदोलन चला था।तिवारी जी ने जमीन पर हल चलाया था।वे हदबंदी से फाजिल जमीन पर भूमिहीनों को कब्जा दिलाने के लिए आंदोलनरत थे।
भूमिपतियों के लठैतों ने तिवारी जी तथा उनके साथियों को लाठियांंे से बहुत पीटा।उस घटना में रोगी महतो की जान चली गयी।तिवारी जी भी बुरी तरह घायल हो गए थे।
लंबे समय तक अस्पताल में रहे।
उन दिनों रोगी महतो हत्याकांड का मुकदमा चल रहा था।
पता नहीं चला कि उस केस का अंततः क्या हुआ।पर ऐसा लग रहा है कि उस जिले में जमीन की समस्या अब भी गंभीर नी हुई है।
खबर है कि चम्पारण में हदबंदी से फाजिल हजारों एकड़ जमीन जो भूमिहीनों के पास होनी चाहिए थी, उस पर अब भी दूसरे लोगों को कब्जा है।राज्य सरकार ने भी सलटाने की कोशिश की थी,पर पता नहीं उस काम में उसे भी सफलता क्यों नहीं मिल पा रही है ! अनेक मामलों में भूमिहीन को मालिकाना हक का परचा खुद सरकार ने ही दिया है।पर वह कब्जा नहीं दिला पा रही है।
उन्होंने चम्पारण में पंकज जी के नेतृत्व में जारी कठिन भूमि आंदोलन की चर्चा की।
वे लोग भूमिहीनों को उनका हक दिलाने के लिए आंदोलनरत हैं।
उससे पहले प्रियदर्शी जी ने भी उस भूमि आंदोलन के बारे में मुझे बताया था।
अखबारों के अलग -अलग कई संस्करण निकलने के कारण जिलों की महत्वपूर्ण खबरें भी पटना के पाठकों तक कम ही पहुंच पाती हैं।
वैसे जो कुछ मैंने इस आंदोलन के बारे में सुना,उससे लगा कि वह बहुत महत्वपूर्ण है।
गांधी जी की कर्मभूमि में हजारों एकड़ जमीन का मामला दशकों से लटका हो और भूमिहीन जमीन के एक टुकड़े के लिए आंदोलनरत हों,इस खबर को पूरे देश में पहुंचना चाहिए।
कम से कम फेसबुक मित्र तो जान लें।
यह सब सुनकर मुझे सत्तर के दशक की एक घटना याद आ गयी।
एक दिन मैं रामानंद तिवारी के पटना स्थित आर.ब्लाॅक स्थित आवास में बैठा हुआ था।
उनके दल के चम्पारण के एक नेता जी उनके पास आए।उन्होंने तिवारी जी से कहा कि रोगी महतो हत्याकांड वाले केस में हम लोगों को अब सुलह कर लेनी चाहिए।
इस पर तिवारी जी ने तमतमा कर दृढ शब्दों में कहा कि आप कम्प्रोमाइज कर लीजिए।मैं रोगी महतो की लाश का सौदा नहीं करूंगा।
यह कहते समय तिवारी जी की आंखों में आंसू थे।
दरअसल 1969 में तिवारी जी के नेतृत्व में चम्पारण में जोरदार भूमि आंदोलन चला था।तिवारी जी ने जमीन पर हल चलाया था।वे हदबंदी से फाजिल जमीन पर भूमिहीनों को कब्जा दिलाने के लिए आंदोलनरत थे।
भूमिपतियों के लठैतों ने तिवारी जी तथा उनके साथियों को लाठियांंे से बहुत पीटा।उस घटना में रोगी महतो की जान चली गयी।तिवारी जी भी बुरी तरह घायल हो गए थे।
लंबे समय तक अस्पताल में रहे।
उन दिनों रोगी महतो हत्याकांड का मुकदमा चल रहा था।
पता नहीं चला कि उस केस का अंततः क्या हुआ।पर ऐसा लग रहा है कि उस जिले में जमीन की समस्या अब भी गंभीर नी हुई है।
खबर है कि चम्पारण में हदबंदी से फाजिल हजारों एकड़ जमीन जो भूमिहीनों के पास होनी चाहिए थी, उस पर अब भी दूसरे लोगों को कब्जा है।राज्य सरकार ने भी सलटाने की कोशिश की थी,पर पता नहीं उस काम में उसे भी सफलता क्यों नहीं मिल पा रही है ! अनेक मामलों में भूमिहीन को मालिकाना हक का परचा खुद सरकार ने ही दिया है।पर वह कब्जा नहीं दिला पा रही है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें