शुक्रवार, 9 मार्च 2018

क्या महिला आरक्षण विधेयक का अब समर्थन करेगा राजद !



  राजद सहित सभी पार्टियों की महिला विधायकों ने महिलाओं के लिए लोक सभा-विधान सभा  में  आरक्षण की व्यवस्था करने की मांग बिहार विधान सभा में की है।सदन के बाहर भी इस मांग के समर्थन में नारे लगाए गए।
  याद रहे कि कई साल पहले राजद और सपा ने महिला आरक्षण विधेयक का संसद में विरोध किया था और उसे लोक सभा में पास नहीं होने दिया था।
राज्य सभा में 2010 में महिला विधेयक तो पास हो गया,पर भारी विरोध के कारण लोक सभा में नहीं पास हो सका।
इस गुरूवार के विरोध प्रदर्शन में राजद की विधायकों के भी शामिल होने के कारण यह सवाल उठ रहा है कि क्या राजद अपना रुख अब बदलेगा ?
याद रहे कि राजद सहित कुछ दल महिला  आरक्षण के भीतर जातियों के आधार पर आरक्षण की मांग करते रहे हैं।
खबर है कि  कांग्रेस व भाजपा आरक्षण के भीतर आरक्षण के लिए तैयार नहीं है।
कुछ समय पहले सोनिया गांधी ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से सार्वजनिक रूप से यह मांग की  थी कि वे महिला आरक्षण विधेयक पास कराएं।
 लगता है कि राजग सरकार यह काम अपने  अनुकूल समय 
पर करेगी।
महिला आरक्षण का राजनीतिक लाभ तो उसे  मिलेगा ही जो इसे अमली जामा पहनाएगा।
 पहली बार लोक सभा में महिला आरक्षण विधेयक 
1996 में  पेश हुआ था।
पर कदम -कदम पर उसका विरोध हुआ।
1997 में एक सदस्य ने संसद में कहा कि क्या आपको लगता है कि ये परकटी महिलाएं सांसद बन कर महिलाओं के पक्ष में आवाज उठाएंगी ?
1998 में एक अन्य सदस्य ने विधेयक की काॅपी स्पीकर बालयोगी के हाथ से छीन ली थी।
 विरोध के बावजूद 2010 में राज्य सभा में तो यह विधेयक पास हो गया,पर लोक सभा में लटक गया।
2004 में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि कांग्रेस ने इस बिल को पास नहीं होने दिया।
हम अगली बार सत्ता में आएंगे तो इसे जरूर पास कराएंगे।
पर 2004 के लोक सभा चुनाव के बाद उनकी सरकार नहीं बनी ।
अब नरेंद्र मोदी सरकार से लोग उम्मीद कर रहे हैं कि वह इसे पास कराएगी और अटल के सपने को पूरा करेगी।
इस बीच राजद की महिला विधायकों की मांग एक महत्वपूर्ण राजनीतिक विकास है।
 महिला आरक्षण विधेयक के तहत  संसद और विधायिकाओं की 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करनी है। 
 ------नहीं सुधरे तो टूट गए---
जब किसी राजनीतिक पार्टी में खुद को सुधारने और बदलने की क्षमता समाप्त हो जाए तो वही होता है जो सी.पी.एम.के साथ हो रहा है।
एक गरीब देश में कम्युनिस्ट पार्टी की ऐसी हालत चिंताजनक है।आश्चर्यजनक भी।
साठ-सत्तर के दशकों में गरीबों के पक्ष में जब कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट सड़कांे पर निकलते थे तो गरीबों को लगता था कि उनका भी कोई हमसफर है।
पर आज गरीब और कमजोर वर्ग के लोग भ्रष्ट सिस्टम के रहमो करम पर हैं।
उधर कम्युनिस्ट पार्टी के एक पदाधिकारी ने कई साल पहले  अपनी आंतरिक रपट में इस बात पर चिंता जताई थी कि 
‘वामपंथी आदर्श भ्रष्टाचार में गुम हो रहे हैं।’  
पूर्व मुख्य मंत्री ज्योति बसु ने 2007 में ही कह दिया था कि 
‘कुछ भ्रष्ट तत्व व्यक्तिगत लाभ के लिए पार्टी का इस्तेमाल कर रहे हैं।कुछ सदस्य समाज विरोधी गतिविधियों में लगे हुए हैं।वे सुधर जाएं अन्यथा उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाएगा।’
ज्येति बसु सरकार में मंत्री रहे डा.अशोक मित्र ने एक बार कहा था कि ‘हमारी पार्टी में 18-19 वीं सदी के जमींदारों का चरित्र घर कर गया है।’
  बाद में समय -समय पर कुछ अन्य माकपा नेताओं ने भी चुनाव हारने के बाद अपनी कमियां गिनार्इं और उन्हें सुधारने का संकल्प किया।पर वे कुछ वैसा कर नहीं पाए।
खबर है कि त्रिपुरा में भी वाम कार्यकत्र्ताओं में भी कुछ वैसी ही कमजोरियां घर कर गयी थीं।मुख्य मंत्री मानक सरकार ने राज्य की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए केंद्र की मोदी सरकार से मेलजोल बढ़ाना शुरू किया तो पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
यानी समय व जरूरत के अनुसार जो पार्टी खुद को नहीं बदलेगी तो वही होगा जो वाम पंथियों के साथ आज हो रहा है।  
---एग्जिट पोल की जरूरत----
पूर्वोत्तर राज्यों के हाल के चुनावों को लेकर एग्जिट पोल के रिजल्ट 28 मार्च के अखबार में प्रकाशित हुए।
इस काम में लगी तीन एजेंसियों में से त्रिपुरा के मामले में दो का आकलन सही निकला।तीसरे ने भी यह अनुमान लगाया कि दोनों प्रमुख दलों में बराबरी का मुकाबला है।
  अक्सर कुछ लोग ओपियन  और एग्जिट पोल के नतीजों के बारे में प्रतिकूल टिपणियां करते रहते हैं।यह सच है कि कुछ चुनावों में  इनके अनुमान गलत साबित हो जाते हैं।हां,सीटों की संख्या की दृष्टि से तो गलत साबित होते ही हैं।पर हवा का रुख किधर है,यह पूर्व सूचना तो ऐसे सर्वेक्षण दे ही देते हैं।
 लोगों की उत्सुकता को देखते हुए ओपियन  व एग्जिट पोल को अधिकतर लोग जरूरी मानते हैं।
 1989 के लोक सभा चुनाव से पहले एक साप्तााहिक पत्रिका ने 
देश के 10 शीर्ष ज्योतिषियों की चुनावी भविष्यवाणियां छापी थीं।
चुनाव नतीजा आने के बाद पता चला कि उनमें से 9 के अनुमान गलत साबित हुए थे।
  खुद नेताओं का हाल जानिए।
एक बार मधेपुरा लोक सभा चुनाव के लिए मतदान हो जाने के बाद उम्मीदवार शरद यादव धरना पर बैठ गए।उन्होंने चुनाव में धांधली कव आरोप लगाया।उन्हें हार की आशंका था।पर जब मत गणना हुई तो शरद जी जीत गए।
यानी जो उम्मीदवार कई सप्ताह से क्षेत्रमें रहते हैं ,उन्हें भी पता नहीं होता।ज्योतिषियों को तो बिलकुल पता नहीं होता।
ऐसे में जब तीन में से दो एजेंसियां सही आकलन कर पाती हैं तो 
ओपिनियन व एग्जिट पोल के नतीजों की आलोचना क्यों ? 
 ---एक भूली बिसरी याद---
सन् 2002 में बिहार के तत्कालीन डी.जी.पी.,आर.आर.प्रसाद 
ने अपनी सेवा अवधि के आखिरी दिनों में एक महत्वपूर्ण पहल की थी।
  उन्होंने लोगों से यह जानने की कोशिश की कि उनकी नजर में  पुलिस का असली चेहरा कैसा है ?
आर.आर.प्रसाद 1999 से 2002 तक इस कठिन प्रदेश बिहार के
पुलिस प्रधान थे।उन दिनों यह प्रदेश और भी ‘कठिन’ था।तब रोज -रोज पुलिस की परीक्षा होती रहती थी।कई कारणों से उस परीक्षा में वह अक्सर फेल ही कर जाती थी।
 हालांकि उस स्थिति के लिए सिर्फ आर.आर.प्रसाद जिम्मेदार नहीं थे। तकनीकी रूप से तो कई हलकों में वही जिम्मेदार माने जाते थे।
 इस पृष्ठभूमि में तब आर.आर.प्रसाद ने अपने सभी डी.आई.जी.को यह निदेश दिया कि वे सर्वेक्षण के जरिए जनता की राय जानने का अभियान चलाएं।खबर आई कि  
 जिला आरक्षी अधीक्षकों को निदेश दिया गया कि वे लिफाफे खरीद लें।
राज्य के प्रत्येक थाने में 100 लिफाफे भिजवाने थे,साथ में पांच सवालों की सूची  भी।लिफाफों को समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के बीच बांटा जाना था।
उनमें से एक सवाल यह था कि क्या सन् 2001-02 में पुलिस की छवि बेहतर हुई ?
अपने इलाके के पांच कुख्यात अपराधियों के नाम बताएं।
तीन अन्य सवाल भी थे।तय हुआ था कि जब लिफाफे लौट कर आएंगे तो उन्हें डी.आई.जी.स्तर के अफसर ही खोलेंगे।
 किंतु इस सर्वेक्षण पर विवाद हो गया।कहा गया कि ऐसा सर्वेक्षण किसी निजी एजेंसी से ही कराया जाना चाहिए।
अंततः उस सर्वेक्षण का क्या हुआ ,यह पता नहीं चल सका।पर ऐसे सर्वेक्षणों की अपनी उपयाोगिता जरूर है।
    ---और अंत में---
  एक अच्छी खबर आई है। आपराधिक घटनाओं पर काबू पाने के लिए अब विधायकों की सिफारिश पर शहरों और कस्बों में सी.सी.टी.वी.लगेंगे।पर, इस सिलसिले में सी.सी.टी.वी की गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखना होगा।अन्यथा बाद में पता चलेगा कि आपराधिक घटनाओं  के समय सी.सी.टी.वी कैमरे खराब पड़े थे । 
@ 9 मार्च, 2018 को प्रभात खबर-बिहार-में प्रकाशित मेरे कानोंकान काॅलम से@   

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