जे.बी.कृपलानी की आज पुण्य तिथि है।सन 1982 में इसी दिन उनका निधन हो गया।
यदि आप आज की नयी पीढ़ी के किसी व्यक्ति से पूछेंगे कि कृपलानी जी कौन थे तो शायद वह नहीं बता सकेगा।
इसलिए मैं बता दूं कि उस समय वही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे जब देश आजाद हो रहा था।
पर 1951 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।
उन्होंने किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई।1952 के चुनाव के बाद सोशलिस्ट पार्टी के साथ उसका विलय हो गया।नाम पड़ा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी।
कृपलानी जी को लोग ‘दादा’ कहते थे।यह नाम उन्हें बिहार के ही एक क्रांतिकारी ने दिया था।
वह क्रांतिकारी राम विनोद सिंह, कृपलानी जी के छात्र थे।
सिंध में जन्मे कृपलानी बिहार के मुजफ्फर पुर के एल.एस. कालेज में शिक्षक थे।तब इस कालेज का नाम कुछ और था।
कृपलानी जी गांधी जी से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल होने से पहले क्रांतिकारियों के साथ थे।
राम विनोद सिंह भी क्रांतिकारी जमात में थे।
राम विनोद सिंह, जो बाद में कांग्रेस के विधायक बने, सारण जिले के मलखाचक के मूल निवासी थे।राम विनोद बाबू जब सख्त बीमार थे तो कृपलानी जी उनसे मिलने पटना आए थे।
पर ऐसा ही व्यवहार तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने कृपलानी जी के साथ नहीं किया।अनेक लोगों को यह शिकायत रही कि कृपलानी जी का जब निधन हुआ था तो प्रधान मंत्री विदेश यात्रा पर चली गयीं।उन्हें स्थगित कर देनी चाहिए थी।पर सवाल है कि जब डा.राजंद्र प्रसाद के निधन के बाद जवाहर लाल नेहरू ने अपनी जय पुर यात्रा स्थगित नहीं की तो इंदिरा गांधी विदेश यात्रा कैसे स्थगित कर देतीं ! खैर जिसकी जो मर्जी !
बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष ने कृपलानी जी के निधन पर शोक प्रस्ताव रखना चाहा।पर उसकी मंजूरी नहीं मिली।विरोध में प्रतिपक्षी सदस्यों ने सदन से वाक आउट किया।
कृपलानी जी ने आजादी के आंदोलन में सक्रिय सुचेता से
प्रेम विवाह किया था।
कुछ कारणवश उनका प्रेम जब लंबा खिंचने लगा और शादी की कोई आहट नहीं आ रही थी तो गांधी जी ने हस्तक्षेप करके शादी करवाई थी।सुचेता जी बाद में उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बनीं।
कृपलानी जी के निधन के बाद मशहूर पत्रकार व विचारक राज किशोर ने ‘रविवार’ में लिखा था कि ‘कृपलानी जी की किसी से नहीं पटी क्योंकि वे झूठ और आडंबर से एक क्षण के लिए भी समझौता करने के लिए तैयार नहीं थे।
वे अपनी वाणी का इस्तेमाल चाबुक की तरह करते थे।इसकी तनिक भी परवाह नहीं करते थे कि उनसे कौन आहत हो रहा है।लेकिन इसके पीछे उनका अहं या आत्म मुग्धता नहीं होती थी।वे सार्वजनिक जीवन में शुद्धि के लिए चिंतित रहते थे।’
जय प्रकाश नारायण का अमृत महोत्सव पटना के गांधी मैदान में मनाया जा रहा था।मैं भी संवाददाता के रूप में शामिल था।
उसमें कृपलानी जी ने जो भाषण दिया ,वह सुनकर मुझे नया अनुभव हुआ।
ऐसे अवसरों पर उस व्यक्ति का सिर्फ गुणगान ही किया जाता है जिसका अमृत महोत्सव मनाया जाता है।पर कृपलानी जी ने जेपी की उपस्थिति जेपी की कमियों की भी विस्तार से चर्चा की थी।पर किसी ने उसे बुरा नहीं माना।
क्योंकि सब जानते थे कि ऐसे ही हैं कृपलानी जी।
यदि आप आज की नयी पीढ़ी के किसी व्यक्ति से पूछेंगे कि कृपलानी जी कौन थे तो शायद वह नहीं बता सकेगा।
इसलिए मैं बता दूं कि उस समय वही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे जब देश आजाद हो रहा था।
पर 1951 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था।
उन्होंने किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई।1952 के चुनाव के बाद सोशलिस्ट पार्टी के साथ उसका विलय हो गया।नाम पड़ा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी।
कृपलानी जी को लोग ‘दादा’ कहते थे।यह नाम उन्हें बिहार के ही एक क्रांतिकारी ने दिया था।
वह क्रांतिकारी राम विनोद सिंह, कृपलानी जी के छात्र थे।
सिंध में जन्मे कृपलानी बिहार के मुजफ्फर पुर के एल.एस. कालेज में शिक्षक थे।तब इस कालेज का नाम कुछ और था।
कृपलानी जी गांधी जी से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल होने से पहले क्रांतिकारियों के साथ थे।
राम विनोद सिंह भी क्रांतिकारी जमात में थे।
राम विनोद सिंह, जो बाद में कांग्रेस के विधायक बने, सारण जिले के मलखाचक के मूल निवासी थे।राम विनोद बाबू जब सख्त बीमार थे तो कृपलानी जी उनसे मिलने पटना आए थे।
पर ऐसा ही व्यवहार तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने कृपलानी जी के साथ नहीं किया।अनेक लोगों को यह शिकायत रही कि कृपलानी जी का जब निधन हुआ था तो प्रधान मंत्री विदेश यात्रा पर चली गयीं।उन्हें स्थगित कर देनी चाहिए थी।पर सवाल है कि जब डा.राजंद्र प्रसाद के निधन के बाद जवाहर लाल नेहरू ने अपनी जय पुर यात्रा स्थगित नहीं की तो इंदिरा गांधी विदेश यात्रा कैसे स्थगित कर देतीं ! खैर जिसकी जो मर्जी !
बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष ने कृपलानी जी के निधन पर शोक प्रस्ताव रखना चाहा।पर उसकी मंजूरी नहीं मिली।विरोध में प्रतिपक्षी सदस्यों ने सदन से वाक आउट किया।
कृपलानी जी ने आजादी के आंदोलन में सक्रिय सुचेता से
प्रेम विवाह किया था।
कुछ कारणवश उनका प्रेम जब लंबा खिंचने लगा और शादी की कोई आहट नहीं आ रही थी तो गांधी जी ने हस्तक्षेप करके शादी करवाई थी।सुचेता जी बाद में उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बनीं।
कृपलानी जी के निधन के बाद मशहूर पत्रकार व विचारक राज किशोर ने ‘रविवार’ में लिखा था कि ‘कृपलानी जी की किसी से नहीं पटी क्योंकि वे झूठ और आडंबर से एक क्षण के लिए भी समझौता करने के लिए तैयार नहीं थे।
वे अपनी वाणी का इस्तेमाल चाबुक की तरह करते थे।इसकी तनिक भी परवाह नहीं करते थे कि उनसे कौन आहत हो रहा है।लेकिन इसके पीछे उनका अहं या आत्म मुग्धता नहीं होती थी।वे सार्वजनिक जीवन में शुद्धि के लिए चिंतित रहते थे।’
जय प्रकाश नारायण का अमृत महोत्सव पटना के गांधी मैदान में मनाया जा रहा था।मैं भी संवाददाता के रूप में शामिल था।
उसमें कृपलानी जी ने जो भाषण दिया ,वह सुनकर मुझे नया अनुभव हुआ।
ऐसे अवसरों पर उस व्यक्ति का सिर्फ गुणगान ही किया जाता है जिसका अमृत महोत्सव मनाया जाता है।पर कृपलानी जी ने जेपी की उपस्थिति जेपी की कमियों की भी विस्तार से चर्चा की थी।पर किसी ने उसे बुरा नहीं माना।
क्योंकि सब जानते थे कि ऐसे ही हैं कृपलानी जी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें