गुरुवार, 15 मार्च 2018


डा.राम मनोहर लोहिया ने 1967 में कई राज्यों में
गठित गैर कांग्रेसी सरकारों से कहा था कि ‘बिजली की तरह कौंधो और सूरज की तरह स्थायी हो जाओ।
छह माह के भीतर अपने अच्छे कामों के जरिए  जनता को यह दिखा दो कि तम्हारी सरकारें पिछली कांग्रेसी सरकारों से बिलकुल अलग ढंग की है।’
 पर गैर कांग्रेसी सरकारों के मुख्य शिल्पकार डा.लोहिया की बातों पर गैर कांग्रेसी सरकारों ने  आंशिक रूप से ही अमल किया।
नतीजतन कुछ ही सालों के भीतर  उन राज्यों में भी एक बार फिर बारी -बारी से कांग्रेसी सरकारें बन गयीं।
 याद रहे कि डा.लोहिया ने जनसंघ और कम्युनिस्टों से कहा था कि आप एक साथ नहीं आएंगे तो  50 प्रतिशत से भी कम वोट पाकर कांग्रेस सत्ता में बनी रहेगी।जनता की मूल समस्याओं को भुला कर भी अनंत काल तक राज करती रहेगी।
 1967 की गैर कांग्रेसी सरकारों के दौर में  एक से अधिक राज्यों में जनसंध और सी.पी.आई.के प्रतिनिधि एक साथ मंत्रिमंडलों में थे।
याद रहे कि कांग्रेस को 1952 से लेकर आज तक सभी लोक सभा  चुनावों में 50 प्रतिशत से कम ही वोट मिले।
यानी उसने भी प्रतिपक्ष के बीच विभाजन का लाभ उठाया जिस तरह आज के राजग ने गत लोक सभा चुनाव में उठाया ।
  आज जिस तरह बसपा और सपा अपने मतभेदों को भुलाकर एक दूसरे के साथ आ रही हैं और चुनावी सफलता हासिल की हैं,यदि यह काम प्रतिपक्षी दलों के बीच 1952 में ही हो गया होता तो कैसा चुनावी नतीजा होता  ? अनुमान मुशिकल नहीं है।
  पर उन दिनों राजनीतिक दल अपने सिद्धांतों की शुचिता पर अधिक ध्यान देते थे।इसलिए उन्हें लगता था कि एक दूसरे दलों के पास आ जाने से हमारे काॅडर भी दिग्भ्रमित हो जाएंगे।
इसलिए सीमित सहयोग के काम में भी आजादी के बाद 15 साल लग गये।
पर, अब इन दिनों अधिकतर राजनीतिक दलों की प्राथमिकताओं में सिद्धांत व शुचिता बहुत नीचे हैं।कुछ अन्य काम ही सबसे ऊपर हैं।इसलिए कोई आश्चर्य नहीं होगा कि अगले लोक सभा चुनाव में गैर राजग दल मिलकर कोई ताकतवर गठबंधन बना लें और मोदी सरकार को सत्ताच्युत कर दें।
हालांकि राजग खास कर भाजपा के नेता बताते हैं कि उनके पास भी तुरुप का पत्ता है।देखना है कि किसके दावे, किसकी चाल  और किसकी रणनीति में कितना दम है ! 

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