सोमवार, 26 मार्च 2018

साठ-सत्तर के दशकों में बंबई से दो चर्चित साप्ताहिकों का 
प्रकाशन होता था।
ब्लिट्ज और करंट।ब्लिट्ज के जुझारू व अदमनीय संपादक थे आर.के.करजिया।उधर करंट के अयूब सईद।
ब्लिट्ज घोर वामपंथी तेवर वाला था तो करंट पूरी तरह दक्षिणपंथी।उन दिनों दुनिया में शीत युद्ध का जमाना था।उसका साफ असर भारत पर पड़ रहा था।
कुछ प्रकाशनों  पर तो पड़ना लाजिमी था।
उन दिनों राजनीतिक बयानों और अखबारों में खुलेआम सी.आई.ए.एजेंट व के.जी.बी. एजेंट का खिताब किसी न किसी को आए दिन मिलता रहता था।
उन दिनों के दैनिक अखबार आम तौर से  शालीन व मर्यादित हुआ करते थे।अपवादों की बात और है।
राजनीति की धारदार,  चटपटी और अंतःपुर की खबरें इन दोनों पत्रिकाओं में मिल जाती थीं। 
पर दोनों में एकतरफा खबरें ही रहती थीं।
क्या करें ? हम कुछ जागरूक लोग दोनांे खरीदते थे।दोनों की खबरों को जोड़कर फिर उसमें दो से भाग दे देते थे।
फिर सही खबर तक पहुंचते थे।
यानी दोनों के बीच में कहीं खबर होती थीं।
आज कल भी इस देश में कुछ इलेक्ट्रानिक चैनलों का हाल भी ब्लिट्ज  और करंट की तरह ही हो गया लगता है।दोनों को देखिए।इन्हीं दोनों के बीच मंे कहीं असली खबर मिलती रहेगी।




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