शुक्रवार, 2 मार्च 2018

 यदि आपको अपनी पत्नी को खुश रखना हो तो उसके
 मायके  की कभी -कभी तारीफ कर दिया कीजिए।हां,यदि तारीफ नहीं कर सकते तो आलोचना तो भूल कर भी मत कीजिए अन्यथा अंजाम समझ लीजिए।
  उसी तरह यदि आपको अपने किसी मित्र को प्रसन्न रखना हो,और उनके दिवंगत पिता से आप परिचित रहे हों ,या उनके जीवन काल में एक बार भी मिल चुके हों तो कभी -कभी उनकी बड़ाई में दो शब्द बोल दिया कीजिए।
कोई पुत्र अपने पिता के जीवन काल में भले उनसे लड़ता -झगड़ता हो,पर उनके गुजर जाने के बाद उसे उनके गुण ही याद रहते हैं।अधिकतर मामलों मंे होता यह है कि पुत्र बाद में इस बात का अफसोस करता है कि उनके रहते मैं उनके महत्व को समझ नहीं सका।
 और हां, किसी की झूठी तारीफ भी नहीं करनी है।क्योंकि ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसमें कोई न कोई गुण न हो।बस आपको उसके गुणों का पता होना चाहिए।
दरअसल दोस्ती तो ऐसी धागा है जिस पर प्रेम का मांझा 
यदा -कदा चढ़ाते रहना पड़ता है।
  हां,राजनीतिक बहसों में इस बात का सदा ध्यान रखिए कि बहस आप भले हार जाइए, किंतु दोस्त मत हारिए।
मैं फेसबुक पर कभी अपने वैसे मित्रों की टिप्पणियों का जवाब नहीं देता जिनसे मैं असहमत होता हूं।



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