कल पटना में दिवंगत पत्रकार फरजंद अहमद को याद किया गया।
दरअसल फरजंद अहमद को याद करना संतुलित व गंभीर पत्रकारिता का सम्मान है।
उन्होंने लंबे पत्रकार जीवन में अपने लेखन में भरसक
संतुलन बनाए रखा।
वे ऐसे मीडिया संस्थानों से जुड़े भी रहे जिनमें इसकी जरूरत भी थी।
दैनिक ‘इंडियन नेशन’ अपने जमाने का एक गरिमामय अखबार था।फरजंद यू.एन.आई. में भी थे।
मेरा तो हमेशा यह मानना रहा है कि दैनिक अखबारों खास कर हिंदी अखबारों के संवाददाताओं को किसी न्यूज एजेंसी में कम से कम छह महीने की ट्रेनिंग दिलायी जानी चाहिए।
उससे रिपोर्टिंग में संतुलन व जिम्मेदारी का बोध होता हेै।ऐसा संवाददाता के कैरियर के शुरूआती दौर में ही किया जाना चाहिए।
इसके लिए यदि न्यूज एजेंसी कुछ शुल्क ले तो भी वह ‘सस्ता’ ही पड़ेगा।
खैर फरजंद ‘इंडिया टूडे’ में लंबे समय तक रहे।
फरजंद अहमद सहित उस पत्रिका के जिम्मेवार संवाददाताओंं -लेखकों के कारण आप आम तौर उस पत्रिका की सामग्री पर आप भरोसा कर सकते हैं।
यू.एन.आई.के पटना ब्यूरो चीफ दिवंगत डी.एन.झा ने मुझसे एक बार कहा था कि इंडिया टूडे चलेगा,पर रविवार-संडे नहीं चलेगा।
कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि इंडिया टूडे जिस पर आरोप लगता है,उसका पक्ष भी लिखता है।
संडे-रविवार ऐसा नहीं करता है।
उन दिनों मैं संडे -रविवार का फैन था।इसलिए तब तो मुझे झा जी की बात अच्छी नहीं लगी थी।पर आज इस उम्र में अच्छी लगती है।
ऐसे मीडिया संस्थानों में काम करने पर पत्रकारांे के
व्यक्तित्व में संतुलन आता है या पहले से संतुलन है तो वह बना रहता है।
फरजंद अहमद इस मामले में सौभाग्यशाली रहे।
इसलिए उनके व्यक्तित्व और उनके कामों से यदि नयी पीढ़ी के पत्रकार अगर चाहें तो कुछ सीख सकते हैं।
नवभारत टाइम्स के प्रधान संपादक दिवंगत राजेंद्र माथुर कहा करते थे कि संवाददाता को ऐसा होना चाहिए कि वह मिल कर भी खुश करे और लिख कर भी।
सौम्य स्वभाव के फरजंद अहमद के लिए कभी किसी की जुबान पर मैंने नाराजगी या नफरत नहीं देखी।होगी भी तो मुझे नहीं मालूम ।
पुनश्चः-
पर आज के दौर में संतुलित ढंग से देश-संविधान के बारे में सोचने व लिखने वाले पत्रकार को बारी -बारी से दोनों रंगों के उन्मादियों के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है।
जातीय व सांप्रदायिक नजरिए से किसी मीडियाकर्मी के लेखन को परखने वाले कुछ लोग उसे कभी भगवाधारी कह देंगे और कभी कुछ अन्य लोग कम्ुयनिस्ट या कुछ और..........।पर यह खतरा तो उठाना ही पड़ेगा।
@ 11 मार्च 2018@
दरअसल फरजंद अहमद को याद करना संतुलित व गंभीर पत्रकारिता का सम्मान है।
उन्होंने लंबे पत्रकार जीवन में अपने लेखन में भरसक
संतुलन बनाए रखा।
वे ऐसे मीडिया संस्थानों से जुड़े भी रहे जिनमें इसकी जरूरत भी थी।
दैनिक ‘इंडियन नेशन’ अपने जमाने का एक गरिमामय अखबार था।फरजंद यू.एन.आई. में भी थे।
मेरा तो हमेशा यह मानना रहा है कि दैनिक अखबारों खास कर हिंदी अखबारों के संवाददाताओं को किसी न्यूज एजेंसी में कम से कम छह महीने की ट्रेनिंग दिलायी जानी चाहिए।
उससे रिपोर्टिंग में संतुलन व जिम्मेदारी का बोध होता हेै।ऐसा संवाददाता के कैरियर के शुरूआती दौर में ही किया जाना चाहिए।
इसके लिए यदि न्यूज एजेंसी कुछ शुल्क ले तो भी वह ‘सस्ता’ ही पड़ेगा।
खैर फरजंद ‘इंडिया टूडे’ में लंबे समय तक रहे।
फरजंद अहमद सहित उस पत्रिका के जिम्मेवार संवाददाताओंं -लेखकों के कारण आप आम तौर उस पत्रिका की सामग्री पर आप भरोसा कर सकते हैं।
यू.एन.आई.के पटना ब्यूरो चीफ दिवंगत डी.एन.झा ने मुझसे एक बार कहा था कि इंडिया टूडे चलेगा,पर रविवार-संडे नहीं चलेगा।
कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि इंडिया टूडे जिस पर आरोप लगता है,उसका पक्ष भी लिखता है।
संडे-रविवार ऐसा नहीं करता है।
उन दिनों मैं संडे -रविवार का फैन था।इसलिए तब तो मुझे झा जी की बात अच्छी नहीं लगी थी।पर आज इस उम्र में अच्छी लगती है।
ऐसे मीडिया संस्थानों में काम करने पर पत्रकारांे के
व्यक्तित्व में संतुलन आता है या पहले से संतुलन है तो वह बना रहता है।
फरजंद अहमद इस मामले में सौभाग्यशाली रहे।
इसलिए उनके व्यक्तित्व और उनके कामों से यदि नयी पीढ़ी के पत्रकार अगर चाहें तो कुछ सीख सकते हैं।
नवभारत टाइम्स के प्रधान संपादक दिवंगत राजेंद्र माथुर कहा करते थे कि संवाददाता को ऐसा होना चाहिए कि वह मिल कर भी खुश करे और लिख कर भी।
सौम्य स्वभाव के फरजंद अहमद के लिए कभी किसी की जुबान पर मैंने नाराजगी या नफरत नहीं देखी।होगी भी तो मुझे नहीं मालूम ।
पुनश्चः-
पर आज के दौर में संतुलित ढंग से देश-संविधान के बारे में सोचने व लिखने वाले पत्रकार को बारी -बारी से दोनों रंगों के उन्मादियों के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है।
जातीय व सांप्रदायिक नजरिए से किसी मीडियाकर्मी के लेखन को परखने वाले कुछ लोग उसे कभी भगवाधारी कह देंगे और कभी कुछ अन्य लोग कम्ुयनिस्ट या कुछ और..........।पर यह खतरा तो उठाना ही पड़ेगा।
@ 11 मार्च 2018@
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