शनिवार, 20 अप्रैल 2019

राजस्थान के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत ने 17 अप्रैल को 
कहा कि जातीय संतुलन बनाने के लिए राम नाथ कोविंद जी को राष्ट्रपति बनाया गया।
यह और बात है कि बाद में गहलोत ने कहा कि मीडिया ने मुझे गलत ढंग से पेश किया था।फंसने के बाद नेता आम तौर पर मीडिया को ही दोषी ठहरा ही देते हैं।
  पर मेरा मानना है कि यदि जातीय संतुलन बनाने के लिए ही उन्हें बनाया गया तो भी उसमें बुरा क्या था ?
कांग्रेसी नेता को यह भी ध्यान नहीं है  कि जातीय असंतुलन रखने के कारण खुद कांग्रेस को खामियाजा भुगतना पड़ा है।
बिहार और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस फिर से सत्ता पाने के लिए तरस ही रही है।केंद्र में भी ऐसी ही नौबत है।
आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू ने सी.राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति बनाने के लिए ऐड़ी -चोटी का पसीना एक कर दिया था।जबकि वह खुद ब्राह्मण थे ही उप राष्ट्रपति पद पर भी डा.राधा कृष्णन को बैठना था ।
यानी नेहरू जी का वश चलता तो तीनों शीर्ष पदों पर एक ही जाति के नेता बैठते।वह कैसा संतुलन होता !
वह पटेल थे जिनके कारण राजेन बाबू राष्ट्रपति बन गए
उत्तर प्रदेश में जब भी कांग्रेस को विधान सभाओं में पूर्ण बहुमत मिला,उसने  सवर्णों खास कर ब्राह्मणों को ही मुख्य मंत्री बनाया।
   इस तरह के अनेक उदाहरण आपको मिल जाएंगे।रणदीप सुरजेवाला ने पिछले दिनों सार्वजनिक से कहा कि कांग्रेस के डी एन ए में ही ब्राह्मण है।
  वी.पी.सिंह ने भी माना  था कि उत्तर प्रदेश में आजादी की लड़ाई में ब्राह्मण अधिक थे।पर क्या आजादी सिर्फ ब्राह्मणों के लिए ही हुई  ?
 सुब्रह्मण्यम स्वामी कहते हैं कि ब्राह्मण  ज्ञानी और त्यागी होते हैं।उनका इशारा राहुल गांधी की ओर होता है जिनमें ये गुण नहीं हैं।जबकि राहुल  कहते हैं कि मैं ब्राह्मण हूंंं।
 क्या आजादी के बाद सत्ता में सबको हिस्सेदारी देने की कोशिश हुई ?
आजादी के बाद के पहले कैबिनेट में एक भी यादव या राजपूत क्यों नहीं थे ?
मोरारजी देसाई के कैबिनेट की इस कमी की ओर तो खुद मधु लिमये ने देश का ध्यान खींचा था।
संविधान में प्रावधान रहने के बावजूद कांग्रेस सरकार ने सरकारी नौकरियों में पिछड़ों के लिए आरक्षण लागू क्यों नहीं किया ?
क्या उसका नतीजा यह नहीं हुआ कि लालू और मुलायम जैसे एक तरफा सोच वाले नेता उभर कर सामने आए ? वे दरअसल कांग्रेस की एकतरफा सोच के जवाब थे ।
  आज राष्ट्रपति ,प्रधान मंत्री ,स्पीकर तथा अन्य बड़े पदों को देखिए और आजादी के बाद के अधिकतर वर्षों को याद कर लीजिए।
यह कांग्रेस के भी हक में है कि वह सामाजिक संतुलन बना कर चलना अब से भी सीख ले।





कोई टिप्पणी नहीं: