नलिन वर्मा लिखित लालू प्रसाद की जीवनी ‘गोपालगंज से रायसीना’ छप कर आ जाने और उस पर व्यापक चर्चा के बाद
सुशील कुमार मोदी को इस ताजा रहस्योद्घाटन के साथ
आना ही था।
मैं भी इसकी उम्मीद कर रहा था।क्योंकि उस किताब का जवाब यही हो सकता था।
हालांकि मुझ सहित अनेक लोगों के लिए यह कोई रहस्योद्घाटन नहीं है।
यह बात तभी से मीडिया और राजनीतिक हलकों के सीमित दायरे में तैर रही थी जब लालू प्रसाद और प्रेम गुप्त ने जेटली से संपर्क किया था।
इसमें कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें भी हैं।शायद सुशील मोदी ने उन्हें जाहिर करना जरूरी नहीं समझा हो।
मुझे तो वे बातें भी बताई गई थीं।
अब कोई मुझसे पूछ सकता है कि आपने तब जाहिर क्यों नहीं किया ?
दरअसल मैं खंडन के खतरे के बीच कोई बे्रकिंग न्यूज भी नहीं दे सकता।उम्र का यही तकाजा है।
यह बात उस समय की है जब राजद की मदद से नीतीश कुमार की सरकार चल ही रही थी।
पर, उस बात को किसी अन्य पत्रकार ने भी नहीं लिखकर ठीक ही किया क्योंकि कोई आधिकारिक स्वीकृति नहीं थी।
अरूण जेटली या प्रेेम गुप्त ने भी इसे राज बनाए रखा।
खुद लालू प्रसाद तो बता नहीं सकते थे।
पर अब जब सुशील मोदी ने इसे सार्वजनिक कर दिया तो यह मान कर चला जा रहा है कि अरूण जेटली ने सार्वजनिक करने की स्वीकृति दे दी होगी।
उन दिनों किसी ने यह भी कहा था कि इस मामले में सी.सी.टी.वी.कैमरे भी गवाह हैं।
खैर, ऐसी बातें अब राजनीति में आश्चर्य पैदा नहीं करतीं।
ठीक ही कहा गया है कि राजनीति संभावनाओं का खेल है।हां, कुछ नेता कुछ बातें वोट बैंक का ध्यान रखते हुए सार्वजनिक रूप से नहीं स्वीकारते।
सुशील कुमार मोदी को इस ताजा रहस्योद्घाटन के साथ
आना ही था।
मैं भी इसकी उम्मीद कर रहा था।क्योंकि उस किताब का जवाब यही हो सकता था।
हालांकि मुझ सहित अनेक लोगों के लिए यह कोई रहस्योद्घाटन नहीं है।
यह बात तभी से मीडिया और राजनीतिक हलकों के सीमित दायरे में तैर रही थी जब लालू प्रसाद और प्रेम गुप्त ने जेटली से संपर्क किया था।
इसमें कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें भी हैं।शायद सुशील मोदी ने उन्हें जाहिर करना जरूरी नहीं समझा हो।
मुझे तो वे बातें भी बताई गई थीं।
अब कोई मुझसे पूछ सकता है कि आपने तब जाहिर क्यों नहीं किया ?
दरअसल मैं खंडन के खतरे के बीच कोई बे्रकिंग न्यूज भी नहीं दे सकता।उम्र का यही तकाजा है।
यह बात उस समय की है जब राजद की मदद से नीतीश कुमार की सरकार चल ही रही थी।
पर, उस बात को किसी अन्य पत्रकार ने भी नहीं लिखकर ठीक ही किया क्योंकि कोई आधिकारिक स्वीकृति नहीं थी।
अरूण जेटली या प्रेेम गुप्त ने भी इसे राज बनाए रखा।
खुद लालू प्रसाद तो बता नहीं सकते थे।
पर अब जब सुशील मोदी ने इसे सार्वजनिक कर दिया तो यह मान कर चला जा रहा है कि अरूण जेटली ने सार्वजनिक करने की स्वीकृति दे दी होगी।
उन दिनों किसी ने यह भी कहा था कि इस मामले में सी.सी.टी.वी.कैमरे भी गवाह हैं।
खैर, ऐसी बातें अब राजनीति में आश्चर्य पैदा नहीं करतीं।
ठीक ही कहा गया है कि राजनीति संभावनाओं का खेल है।हां, कुछ नेता कुछ बातें वोट बैंक का ध्यान रखते हुए सार्वजनिक रूप से नहीं स्वीकारते।
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