अद्भुत प्रतिभा के धनी रहे गणितज्ञ डा.वशिष्ठ
नारायण सिंह के जन्म दिन पर उनके बारे में
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राजनीतिक खबरों की भरमार के बीच ‘प्रभात खबर’ ने
डा.वशिष्ठ नारायण सिंह के बारे में आज नई पीढ़ी को अच्छी अच्छी-खासी जानकारी दी है।
हमलोग तो अद्भुत प्रतिभा के धनी गणितज्ञ वशिष्ठ बाबू के जमाने के छात्र थे और उनसे मिले बिना भी उनसे प्रेरित होते थे।
उनके लिए पटना विश्व विद्यालय ने पहली बार नियम बदल कर जल्दी -जल्दी उन्हंे एम.एससी.करवा दी थी।
उन्होंने 1963 में हायर सेकेंड्री परीक्षा पास की थी।नेतरहाट स्कूल में पढ़ेे वशिष्ठ जी बिहार टाॅपर थे।
पर जब पटना साइंस काॅलेज में दाखिला लिया तो शिक्षकों ने पाया कि ये तो ऊंची कक्षाओं के विषयों में भी पारंगत हैं।
फिर इनको एम.एससी.कराने के लिए 5 साल का लंबा समय क्यों लगाया जाए।वे 1965 में ही एम.एससी.कर गए।1969 में तो उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से पीएच.डी.कर ली।
उन्होंने कुछ समय के लिए नासा के लिए भी काम किया।
पर कुछ ही साल बाद उनके दिमाग के तंतु उलझ गए यानी वे सिजोफं्रेनिया के मरीज हो गए।
जिनके ज्ञान से नासा ने अंतरिक्ष मिशन को आगे बढ़ाया,वह अपने गांव में वर्षों से गुमनामी में जी रहे थे कि इस बीच ‘नोवा’ ने उनके पटना में रहने की व्यवस्था कर दी।
नोवा के सहयोग से उनकी समय- समय पर स्वास्थ्य जांच भी होती रहती है।बीमारी से ग्रस्त इस जीनियस के सरकार बहुत काम नहीं आई,पर नोवा ने अपना मित्र धर्म निभाया।
नोवा यानी नेतरहाट के पूर्ववर्ती छात्रों का संगठन।इसके सदस्य बड़े -बड़े पदों पर रहे हैं।
यह नोवा भी एक अलग ढंग का संगठन है।इसके सदस्य ही ऐसे हैं।
हाल में पटना में अवस्थित नोवा काॅलोनी जाने का अवसर मिला।उस सुव्यवस्थित काॅलोनी को देख कर उसके सदस्यों के
व्यवस्थित व सुरूचिपूर्ण व्यक्तित्व की भी हल्की झलक मिली।
बात उस समय की है जब मेरे पत्रकार मित्र इंद्रजीत प्रसाद सिंह पटना के दीघा-आशियाना रोड स्थित एक फ्लैट में रहते थे।
उन दिनों यानी नब्बे के दशक में मैं लोहिया नगर में रहता था।वहां से आशियाना रोड की दूरी बहुत है।उधर अभी पूरी आबादी भी नहीं बसी थी।
मैंने उनसे पूछा कि ‘ इतनी दूर क्यों आ गए ?
आपको शहर में आवास नहीं मिला ?’
उन्होंने बताया कि ‘मेरे मित्र अजय जी का यह फ्लैट है।वे मुझसे किराया नहीं लेते।उनके ही आॅफर पर मैं यहां हूं।’
वे दोनों नेतरहाट स्कूल में साथ पढ़ते थे।
अजय जी पटना के मशहूर यूरोलाॅजिस्ट हैं।दोस्तपरस्त हैं।कुछ तो उनका पारिवारिक संस्कार है । बाकी नेतरहाट की मैत्री संस्कृति ।
वह मैत्री संस्कृति वशिष्ठ बाबू के मामले में भी ‘नेतरहाटियनों’ ने कायम रखी।अब तो नेतरहाट झारखंड में है।
उम्मीद है कि वहां के छात्रों के बीच पहले जैसी ही आपसी सद्भावना अब भी होगी।
याद रहे कि आजादी के तत्काल बाद स्थापित नेतरहाट के छात्र बोर्ड परीक्षा में दर्जनों बार राज्य टाॅपर हुए।खैर अब तो शिक्षा-परीक्षा की जो हालत पूरे देश की है,वही बिहार की भी है।
खुदा खैर करे !!
नारायण सिंह के जन्म दिन पर उनके बारे में
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राजनीतिक खबरों की भरमार के बीच ‘प्रभात खबर’ ने
डा.वशिष्ठ नारायण सिंह के बारे में आज नई पीढ़ी को अच्छी अच्छी-खासी जानकारी दी है।
हमलोग तो अद्भुत प्रतिभा के धनी गणितज्ञ वशिष्ठ बाबू के जमाने के छात्र थे और उनसे मिले बिना भी उनसे प्रेरित होते थे।
उनके लिए पटना विश्व विद्यालय ने पहली बार नियम बदल कर जल्दी -जल्दी उन्हंे एम.एससी.करवा दी थी।
उन्होंने 1963 में हायर सेकेंड्री परीक्षा पास की थी।नेतरहाट स्कूल में पढ़ेे वशिष्ठ जी बिहार टाॅपर थे।
पर जब पटना साइंस काॅलेज में दाखिला लिया तो शिक्षकों ने पाया कि ये तो ऊंची कक्षाओं के विषयों में भी पारंगत हैं।
फिर इनको एम.एससी.कराने के लिए 5 साल का लंबा समय क्यों लगाया जाए।वे 1965 में ही एम.एससी.कर गए।1969 में तो उन्होंने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से पीएच.डी.कर ली।
उन्होंने कुछ समय के लिए नासा के लिए भी काम किया।
पर कुछ ही साल बाद उनके दिमाग के तंतु उलझ गए यानी वे सिजोफं्रेनिया के मरीज हो गए।
जिनके ज्ञान से नासा ने अंतरिक्ष मिशन को आगे बढ़ाया,वह अपने गांव में वर्षों से गुमनामी में जी रहे थे कि इस बीच ‘नोवा’ ने उनके पटना में रहने की व्यवस्था कर दी।
नोवा के सहयोग से उनकी समय- समय पर स्वास्थ्य जांच भी होती रहती है।बीमारी से ग्रस्त इस जीनियस के सरकार बहुत काम नहीं आई,पर नोवा ने अपना मित्र धर्म निभाया।
नोवा यानी नेतरहाट के पूर्ववर्ती छात्रों का संगठन।इसके सदस्य बड़े -बड़े पदों पर रहे हैं।
यह नोवा भी एक अलग ढंग का संगठन है।इसके सदस्य ही ऐसे हैं।
हाल में पटना में अवस्थित नोवा काॅलोनी जाने का अवसर मिला।उस सुव्यवस्थित काॅलोनी को देख कर उसके सदस्यों के
व्यवस्थित व सुरूचिपूर्ण व्यक्तित्व की भी हल्की झलक मिली।
बात उस समय की है जब मेरे पत्रकार मित्र इंद्रजीत प्रसाद सिंह पटना के दीघा-आशियाना रोड स्थित एक फ्लैट में रहते थे।
उन दिनों यानी नब्बे के दशक में मैं लोहिया नगर में रहता था।वहां से आशियाना रोड की दूरी बहुत है।उधर अभी पूरी आबादी भी नहीं बसी थी।
मैंने उनसे पूछा कि ‘ इतनी दूर क्यों आ गए ?
आपको शहर में आवास नहीं मिला ?’
उन्होंने बताया कि ‘मेरे मित्र अजय जी का यह फ्लैट है।वे मुझसे किराया नहीं लेते।उनके ही आॅफर पर मैं यहां हूं।’
वे दोनों नेतरहाट स्कूल में साथ पढ़ते थे।
अजय जी पटना के मशहूर यूरोलाॅजिस्ट हैं।दोस्तपरस्त हैं।कुछ तो उनका पारिवारिक संस्कार है । बाकी नेतरहाट की मैत्री संस्कृति ।
वह मैत्री संस्कृति वशिष्ठ बाबू के मामले में भी ‘नेतरहाटियनों’ ने कायम रखी।अब तो नेतरहाट झारखंड में है।
उम्मीद है कि वहां के छात्रों के बीच पहले जैसी ही आपसी सद्भावना अब भी होगी।
याद रहे कि आजादी के तत्काल बाद स्थापित नेतरहाट के छात्र बोर्ड परीक्षा में दर्जनों बार राज्य टाॅपर हुए।खैर अब तो शिक्षा-परीक्षा की जो हालत पूरे देश की है,वही बिहार की भी है।
खुदा खैर करे !!
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