मंगलवार, 2 अप्रैल 2019

नेहरू-इंदिरा परिवार की सम्पत्ति की राजनीतिक हलकों में अक्सर चर्चा होती रहती है।
 तरह-तरह के अनुमान लगाए जाते हैं।सम्पत्ति को लेकर मुकदमा भी चल रहा है।
पर वास्तविकता क्या है ?
जानकारी का सूत्र क्या है ? आधार बिन्दु क्या है ?
एक सूत्र मिला है।
उसे आधार माना जा सकता है।
वह है इंदिरा गांधी का वसीयतनामा।
उसमें परिवार की मूल सम्पति का पूरा विवरण उपलब्ध है।
1984 के बाद इस परिवार ने अपनी कितनी संपत्ति बढ़ाई है ?
या नहीं बढ़ाई है ?
बढ़ाई तो जायज तरीके से या नाजायज तरीके से ?
इंदिरा गांधी के वसीयतनामे को शिखा त्रिवेदी ने इलेस्ट्रेटेड विकली आॅफ इंडिया के 19 मई 1985 के अंक में छापा था।
 इंदिरा जी ने सम्पत्ति का बंटवारे में वरूण का भी पूरा ध्यान रखा।
हालांकि उन्होंने मेनका गांधी को कोई सम्पत्ति नहीं दी।
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मेरी राय है कि इस देश में जितने भी प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री अब तक हुए हैं,उनकी सम्पत्ति का पूरा विवरण छपना चाहिए।
किसने कितनी बनाई ? किसने कुछ नहीं बनाई ? किसने राजनीति में आने के बाद उल्टे पुश्तैनी सम्पत्ति ही गंवाई ?
 कहावत है कि ‘सीजर की पत्नी को संदेह से ऊपर होना चाहिए।’
 सूचना में बड़ी शक्ति है।लोग जानेंगे तो किसी नेता या दल के बारे में अपनी बेहतर राय बनाएंगे।स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह सही होगा।
मेरा यह भी मानना है कि इस देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है।उसी से अन्य समस्याएं पैदा होती हैं।
मान लीजिए कि किसी पर साप्रदायिक दंगे का आरोप लगता है।पर वह घूस देकर बच जाता है।तो दंगे बढ़ेंगे या घटेंगे ?
अदालतों में सुनवाई में देरी के कारण भी दंगाई बच जाते हैं।देरी इसलिए होती है क्योंकि अदालतों की संख्या कम है और मुकदमों की संख्या अधिक । सरकारें कहती रही  हैं कि पर्याप्त संख्या मंे अदालतेें कायम करने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हंै।
पैसे क्यों नहीं हैं ?
उसका कारण राजीव गांधी ने 1985 में बता दिया था।
यह कि 100 पैसे में से 85 पैसे भ्रष्टाचार में चले जाते हैं। 

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