शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

इलेक्शन रेफरेंस
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रशियन स्याही की बात 
मधु लिमये ने नहीं मानी  
सुरेंद्र किशोर 
समाजवादी नेता मधु लिमये ने 1971 में कहा था कि ‘रसायन अथवा अदृश्य स्याही के प्रयोग के आरोपों पर मैंने कभी विश्वास नहीं किया और अपने चुनाव क्षेत्र के मतपत्रों की जांच से मेरी धारणा और भी अधिक पुष्ट हुई।’
   1971 मेें लिमये मुंगेर लोक सभा चुनाव हार गए थे।
  उससे पहले वहां से वे दो बार जीते थे।
याद रहे कि 1971 के लोक सभा चुनाव के तत्काल बाद जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष बलराज मधोक ने  मतपत्रों पर रशियन स्याही का इस्तेमाल करके प्रतिपक्षी दलों को हरवा देने का आरोप लगाया था।इस पर  चुनाव आयोग ने उसकी सीमित जांच करवाई।
 जांच चुनाव कानून, 1961 की धारा - 93@1@ के तहत  हुई।
 विभिन्न दलों के 13 सदस्यों को मतपत्रों की जांच की अनुमति चुनाव आयोग ने  दी थी।
जिन दलों के नेताओं को जांच की अनुमति मिली  ,उनमें सत्ताधारी कांग्रेस, भारतीय क्रांति दल, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी,सी.पी.आई.और अकाली दल शामिल थे।
 मधोक और समाजवादी नेता राज नारायण ने प्रयुक्त और अप्रयुक्त मतपत्रों की जांच की अनुमति प्राप्त करने के लिए जो याचिका दायर की थी, उसे मुख्य चुनाव आयुक्त एस.पी.सेनवर्मा ने पहले ही अस्वीकार कर दिया था।
मधोक ने मतपत्रों में रसायन और अदृश्य स्याही के प्रयोग के अलावा यह जांचने की भी अनुमति चाही थी कि मतपत्रों में ठीक गाय -बछड़े के चिह्न में ही मुहर लगाई गई है या नहीं।
कहीं जनसंघ के चुनाव चिह्न के खाने तक तो मुहर की स्याही नहीं फैल गई है ?
सभी मतपत्रों के कागज का स्तर समान था या नहीं।
चुनाव आयोग ने इन आरोपांे को निराधार बताया।
  बाद में राजनारायण ने  प्रतिपक्ष की हार के दूसरे कारण गिनाए।उन्होंने कहा कि चार दलों के मोर्चे से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी को कोई लाभ नहीं मिला।
अन्य दलों के प्रतिबद्ध मत हमें नहीं मिले।
बहुत से अल्पसंख्यक  मत हमसे कट गए।
@इस लेख का संपादित अंश आज के दैनिक भास्कर,पटना  में प्रकाशित@


  

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