सोमवार, 29 अप्रैल 2019

संदर्भ-गुजरात दंगे पर राजदीप सरदेसाई की ताजा 
टिप्पणी।
राजदीप ने कहा कि दंगे के लिए मोदी जिम्मेवार नहीं थे।
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दंगों की रिपोर्टिंग में समस्या यह आती है कि आम तौर पर संवाददाता संतुलन बनाए नहीं रख पाता।
कई बार उसकी निजी विचारधारा हावी हो जाती है।
ऐसी बात मैं दोनों पक्षों के लिए कह रहा हूंं।
अपवादों की बात और है।
 सत्तर-अस्सी के दशकों में मेरा छोटा भाई साप्ताहिक ‘संडे’ मैगजिन नियमित रूप से खरीदता था।
बाद में उसे मैं अपने संदर्भालय में रख लिया करता  था।
एक दंगे पर एम.जे.अकबर की रपट आई।वह उसे एकतरफा लगी।उसने संडे खरीदना बंद कर दिया।
उसे जारी रखने के लिए मुझ पर खर्च बढ़ गया।तब मेरी आय बहुत कम थी।
  खैर, गुजरात दंगे में बहुसंख्यक समुदाय के भी 254 लोग मारे गए थे।
करीब 200 पुलिसकर्मी भी दंगा रोकने की कोशिश में मरे।
जिस गोधरा टे्रन कार सेवक दहन के कारण दंगा शुरू हुआ,वह भी हृदय विदारक घटना थी।
पर जहां तक मुझे याद है,उन घटनाओं की रिपोर्टिंग के साथ अधिकतर मीडिया ने सौतेलापन का व्यवहार किया।
 यह सही है कि अल्संख्यकों की पीड़ा अपेक्षाकृत बहुत बड़ी थी,उसकी रिपोटिंग होनी ही चाहिए थी।
पर बाकी लोगों की ! ?
संतुलन नहीं रखे जाने के कारण भी नरेंद्र मोदी के साथ बहुसंख्यकों की सहानुभूति बढ़नी स्वाभाविक ही थी।
 गोधरा ट्रेन दहन की खबर सुबह -सुबह आ गई थी।
एक बड़े ‘सेक्युलर नेता’ जी के सहकर्मी ने उस घटना की निंदा करते हुए एक बयान तैयार किया ताकि उसे उनकी ओर से मीडिया में जारी किया जा सके।
सहकर्मी ने फोन पर उसे नेता जी को पढ़कर सुनाया भी।
नेता जी ने कहा कि उस बयान को आप फाड़कर फेंक दीजिए।
फंेक दिया गया।
पर, जैसे ही प्रतिक्रियास्वरूप अल्पसंख्यक संहार होने लगा ,बयान वीर नेता जी मीडिया में सक्रिय हो गए।
ऐसी घटनाओं ने भी मोदी व भाजपा को बढ़ाया।
गुजरात दंगे के अनुभव से सीख कर यदि मीडिया व नेता गण संतुलन बनाए रखने का अब भी सबक ले लें तो देश में शांति-सौहार्द बनाए रखने में मदद मिलेगी।कोई नेता किसी दंगे के कारण मिली ‘लोकप्रियता’ का लाभ नहीं उठा पाएगा।  
पर असंतुलित सोच और झूठ से भरी हमारी राजनीति में क्या ऐसा हो कभी पाएगा ?
   

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