रविवार, 21 अप्रैल 2019

मशहूर पत्रकार दिवंगत जीतेंद्र सिंह पर हरिवंश 
का संस्मरणात्मक लेख
--- 8 अक्तूबर, 2003-प्रभात खबर।
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जीतेंद्र बाबू को जानना गौरव की बात है - हरिवंश
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महीने भर भी नहीं हुए होंगे। अचानक एक शाम ,लंबे अरसे बाद, पटना से  उनका फोन आया था।
 वह महीन, विशिष्ट और शालीन आवाज।
तुरंत मैं पहचान गया। अपना नाम बताएं, अपनी बात कहें ,इससे पहले ही अपना निवेदन कर बैठा।
वर्षाें पहले प्रभात खबर में वह स्तम्भ लिखते थे।
संपादकीय पेज पर।
पुनः शुरू करने का हम आग्रह कर रहे थे।
इस बार रांची आने और प्रभात खबर के पत्रकारों से अपने अनुभव बांटने की मेरी जिद उन्होंने मान ली थी।
वह काॅलम शुरू करने वाले थे और रांची आकर हमारे साथ रहने वाले भी थे, इसी बीच अचानक पटना कार्यालय से फोन आया, ‘जीतेंद्र बाबू चल बसे।’
 उम्र 79 वर्ष थी।वह खबर अकस्मात और अप्रत्याशित थी।
   जीतेंद्र बाबू ! जेपी के विश्वस्त, राजेंद्र बाबू के प्रिय।वह राजेंद्र बाबू को बाबू जी शब्द से ही पुकारते थे।नेहरू जिन्हें जानते थे।लोहिया के सम्मान पात्र।समाजवादी आंदोलन से गहरे सरोकार वाले।हालांकि वह खुद को बुद्धिस्ट गांधीयन 
सोशलिस्ट मानते थे।कोइराला परिवार से उनका घरेलू ताल्लुक था।
अज्ञेय, धर्मवीर भारती, फणीश्वरनाथ रेणु ,रघुवीर सहाय के वह मित्र और सम्मान के पात्र थे।
    कर्पूरी ठाकुर के स्नेह पात्र,सांसद लेखक शंकर दयाल सिंह के ‘भईया’।
   पत्रकारिता में वह 1948  में आए।‘द सर्चलाइट’ में प्रशिक्षण पाया।
पत्रकारिता की विभूति के.रामाराव@नेशनल हेराल्ड-सर्चलाइट के पूर्व संपादक@के साथ पत्रकारिता की।उनके प्रिय बने। 1950 से 1961 तक इलाहाबाद के मशहूर अखबार लीडर@मालवीय जी द्वारा स्थापित ,सी.वाई.चिंतामणि जैसे मनीषी से जुड़ा पत्र@में सहायक संपादक और संयुक्त संपादक की हैसियत से काम किया।
 पी डी टंडन के प्रिय मित्र रहे।1961 में टाइम्स आॅफ इंडिया के विशेष संवाददाता बन कर बिहार आये ।इमर्जेंसी में  1976 जून में उड़ीसा भेजे गये।बाद में हटा दिए गए।
  1962 में राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति भवन छोड़ कर सदाकत आश्रम @पटना@लौट रहे थे,उधर प्रयाग की बौद्धिकता छोड़कर जीतेंद्र बाबू पटना आने का मन बना चुके थे।
  अत्यंत गरीबी में उनका जीवन शुरू हुआ।मां ने पाला -पोसा ।सकलडीहा कोट @बनारस के पास@में उनका मकान खंडहर बन चुका था।
 आजादी की लड़ाई में जीतेंद्र बाबू के परिवार ने शिकरत की थी।उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी।
मां ने गहने बेच कर बनारस के स्कूल में उनका दाखिला कराया। 1938 में मिडिल स्कूल में सर्वश्रेष्ठ अंक पाने के लिए जीतेंद्र बाबू संपूर्णानंद से पुरस्कृत हुए -मेडल पाकर।
हाई स्कूल से एम.ए.@बी.एच.यू.@तक छात्रवृति पाकर पढ़ाई पूरी की।
  प्रतिभा के कारण संस्थाओं ने मदद की।
 बाद में परिवार पर मुसीबतों की दूसरी आंधी आई।
1942 में अगुआ बनने के कारण जीतेंद्र बाबू के परिवार पर जुल्म हुए।
आचार्य नरेंद्र देव,डा.राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण का यह परिवार अनुयायी था। 
जीतेंद्र बाबू एक जाने माने पत्रकार के रूप में प्रयाग पहुंचे थे।
उन दिनों इलाहाबाद की अहमियत राजनीतिक-बौद्धिक दुनिया और साहित्य में शिखर पर थी।
 उस दौर के सारे बड़े नामों से जीतेंद्र बाबू का निजी संबंध था।
   बनारस में वह पढ़े।इलाहाबाद में रहे।पंत,महादेवी निराला की छाया में भाषा, भाव और संस्कार अर्जित किये।प्रयाग की बौद्धिकता पाई।काशी की विद्वता ,लीजेंडरी जर्नलिस्ट रामाराव 
की सोहबत में रहे।
पत्रकारिता के सर्वश्रेष्ठ प्रतिमान लीडर जैसे संस्कारवान अखबार में पत्रकारिता की।
प्राचीन भारतीय समाज इतिहास के अनूठे विद्वान नेहरू जी के आग्रह पर ख्रुश्चेव की भारत यात्रा में वह ऐतिहासिक स्थलों पर साथ रहे-इतिहास बताने वाले के रूप में।
 अज्ञेय की ‘जय जानकी यात्रा’ के साथी।इंटेलेक्चुअल फ्लेवर के बाद भी जीतेंद्र बाबू की अद्भुत सादगी,विनय और मीठी जुबान।
   जीतेंद्र का हिन्दी-अंग्रेजी पर समान अधिकार था ।
  जेपी के प्रिय पात्र थे।इसलिए इमर्जेंसी में मुख्य मंत्री जगन्नाथ मिश्र ने उन्हें हर तरह से सताया।
हाउसिंग बोर्ड से कह कर घर की किस्तों @कर्ज@के लिए तबाह किया।मुख्य मंत्री हाउसिंग बोर्ड से खरीदे गए घर को छीनना चाहते थे -समय पर घर की किस्त चुकाने के बावजूद।
   और जीतेंद्र बाबू अपनी निजी पीड़ा की भनक किसी को नहीं लगने देते थे।
प्रखरता,तेजस्विता और गंभीर व्यक्तित्व के धनी जीतेंद्र बाबू की पृष्ठभूमि क्या थी ?
जीतेंद्र बाबू  नेहरू के घनिष्ठ मित्र पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्य नारायण सिन्हा के दामाद थे।
उनके करीबी मित्रों में से शायद ही उनके इस संबंध को जानता हो।
 क्योंकि वे उस पीढ़ी के संस्कारों में पले बढ़े थे ,जो अपने संबंधों के बल पर हैसियत -पहचान नहीं बनाती थी।
पद नहीं पाती थी।उस संबंध को बताने में संकोच करती थी।
जीतेंद्र बाबू खुुद अपनी प्रतिभा से बने।
जीये और पहचान बनाई।
संबंधों की सीढ़ी चढ़ना जानते ,तो कहीं पहुंच सकते थे।
पर उनकी मिट्टी अलग थी।
वह समर्पित गांधीवादी थे।गांधीवाद जीते थे।कार्य में, जीवन में वचन में।
   टाइम्स आॅफ इंडिया के पत्रकार, खुद ज्ञानवान, संपर्कों की कसौटी मानें तो सबसे अधिक संपर्कवान, अद्भुत विनम्रता,शालीनता।फिर भी पत्रकार।
गौर करिए ऐसी पृष्ठभूमि के पत्रकार आज क्या कहर ढा सकते हैं ?
  हमेशा नेपथ्य में रहने की कोशिश।दिल्ली में अक्सर सांसद शंकर दयाल सिंह जी के घर पर पता चलता कि जीतेंद्र बाबू पटना से आए हैं।पर अपने कमरे में हैं।काम में डूबे हुए हैं।अकेले,काम ?
गांधी के ऊपर लेखन।पत्रिका प्रकाशन।गांधी संग्रहालय ,गांध्ंाी स्मारक तक दुनिया सिमटी हुई।इतना प्रतिभावान,संपर्कवान इंसान, गंभीर कठिनाइयों में जीया,पर आत्म सम्मान के साथ जीया।पानीदार इंसान।पुरानी कहावत सही है, इंसान का पानी उतर गया तो क्या बचा ?
स्वाभिमानी पत्रकार।ईमानदारी की मिसाल।संपर्कों को नहीं भुनाया।गांधी पर काम करना नहीं छोड़ा।
इन सबके बावजूद अपने बारे में जल्द बोलते नहीं थे।आज लोग अपना बखान-आत्म गान करते नहीं अघाते।
कितना फर्क आ गया है पत्रकारिता में।वर्षों पूर्व अपने पटना निवास पर नाश्ते पर उन्हें बुलाया।कुरेद कर मैं उनका अतीत जानना-समझना चाहता था।वह मौजूदा पत्रकारिता के बारे में बताना चाहते थे।

   





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