स्वच्छ चुनाव के लिए अदालत और आयोग की पहल सराहनीय-सुरेंद्र किशोर
तमिलनाडु के वेलौर और त्रिपुरा के त्रिपुरा पूर्व लोकसभा क्षेत्रों के चुनाव रद्द कर दिए गए।
कानून-व्यवस्था की समस्या और भारी नकदी की बरामदी के बाद ऐसा किया गया।
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद योगी आदित्य नाथ ,मायावती , आजम खान और मेनका गांधी के चुनाव प्रचार पर अस्थायी रोक लगाई गई।
कुछ अन्य नेताओं पर रोक लगाने की जरूरत है।पर चलिए शुरूआत अच्छी है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कार्रवाई देख कर लगता है कि आयोग की शक्ति वापस आ गई है।
यदि उन सारे चुनाव क्षेत्रों मंे ऐसी कार्रवाई हो जहां पैसे और बाहुबल से चुनाव नतीजों को पलटने की कोशिश होती रहती है तो इस देश के लोकतंत्र के लिए शुभ होगा।
-- टी.एन.शेषन की याद--
1993 में मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन.शेषन ने कहा था कि
‘मैं अपने कत्र्तव्य के प्रति समर्पित हूं, भले मुझे कोई अलसेसियन कहे या खलनायक या फिर पागल कुत्ता,मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।’
अन्य अवसर पर उन्होंने कहा था कि ‘चुनाव में शांति बनाए रखने का काम शहनाई बजा कर नहीं हो सकता।
मेरा बाॅस न तो प्रधान मंत्री हैं और न राष्ट्रपति।जनता ही मेरी बाॅस है।’
शेषण ने जब मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यभार सम्भाला था,उस समय चुनाव -प्रक्रिया में भारी अराजकता थी।
शेषण ने काफी हद तक काबू पाने की कोशिश की।उस समय बाहुबल का अधिक बोलबाला था।आज नकदी और जातीय-सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने पर अधिक जोर है।
आज मुख्य चुनाव आयुक्त के और भी कड़े होने की जरूरत है।
किन्तु कड़ाई विवेक के साथ हो। एकाध बार शेषण पर विवेक का साथ छोड़ देने का आरोप लगा था।समय रहते यदि सुधार नहीं हुआ तो भारी धनबल का जहर लोकतंत्र के लिए अधिक खतरनाक साबित होगा।
टी.एन.शेषण के कुछ कामों से तब शासन,अदालत और संसद भी नाराज हो गई थी।आज अदालत चुनाव आयोग के साथ है।
एक बार फिर चुनाव नियमों की किताब के अनुसार काम जरूरी है ताकि चुनाव -व्यवस्था को पटरी पर लाया जा सके।
-मुद्दा वही जो मन भाए-
कर्नाटका के एक बड़े नेता ने कहा है कि वंशवाद चुनाव में कोई मुद्दा नहीं है।उन पर वंशवाद का आरोप है।
बिहार के एक नेता बहुत पहले कह चुके हैं कि जिसे जनता ने चुनाव जितवा दिया,वह अपराधी कैसा ?
इस देश के एक तीसरे नेता ने कहा था कि भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं क्योंकि वह तो विश्वव्यापी है।
चैथा नेता कहते हैं कि बलात्कार कोई मुद्दा नहीं । लड़कों से गलतियंा हो ही जाती हैं।
पाचवा नेता कहता है कि परीक्षा में कदाचार कोई मुद्दा नहीं ।परीक्षा केंद्र में इधर -उधर ताक झांक कर लेना कोई अपराध नहीं।
छठा नेता कहता है कि राष्ट्रद्रोह कोई मुद्दा नहीं।हम सत्ता में आएंगे तो इस कानून को ही खत्म कर देंगे।
कोई नेता एक रंग के आतंकवाद का बचाव करता है तो दूसरा नेता अन्य रंग के आतंकवाद का।
ऐसी बातें करने वाले कोई मामूली नेता नहीं हैं।यही लोग दशकों से इस देश को चलाते रहे हैं।
कैसा चल रहा है यह देश ?
मौजूदा चुनाव के नतीजे एक हद तक बता ही देंगे कि जनता की नजर में महत्वपूर्ण मुद्दे कौन से हैं।
-- और अंत मंे-
स्वाभाविक ही है कि मतदाता अपने सांसद से यह सवाल करे कि आप पांच साल तक यहां आए क्यों नहीं ?
1967 तक लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव एक साथ होते थे।तब लोग सांसद से ऐसे सवाल नहीं करते थे।सांसद आज जितने सक्रिय थे भी नहीं।उनके काम उनके दल के विधायक ही कर दिया करते थे।
करते भी थे तो विधायकों से ।क्योंकि उनके विधायक ही रोज ब रोज उनके दुख-सुख में शामिल रहते थे।
अब बेचारा सासंद चाह कर भी घर- घर जा नहीं सकता।क्यों नहीं फिर से संसद और विधान सभाओं के एक ही साथ चुनाव करने का प्रबंध हो जाए ?
ऐसी पहल नए सांसद कर सकते हैं।उन्हें इसका अधिक राजनीतिक लाभ मिलेगा।
@19 अप्रैल 2019 को प्रभात खबर -बिहार-में प्रकाशित मेरे काॅलम कानोंकान से @
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