इलेक्शन रेफरेंस
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कांग्रेस टूटी तो पहला मध्यावधि चुनाव हुआ-सुरेंद्र किशोर
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आजादी के बाद अब तक कायदे से लोक सभा के सिर्फ 14 चुनाव ही होने चाहिए थे।
पर लोक सभा की आयु के घटते -बढ़ते के कारण अभी 17 वीं लोक सभा के लिए चुनाव हो रहे हैं।
1952 से 1967 तक समय पर चुनाव हुए।
पर 1971 से यह सिलसिला बिगड़ गया।
1971 में चुनी गई लोक सभा की आयु 1977 तक के लिए बढ़ा दी गई थी।
1980 और 1984 में समय से पहले चुनाव हुए तो
1989 में चुनी गई संसद भी पांच साल पूरा नहीं कर पाई।
1996 ,1998 और 1999 में लोक सभा के चुनाव हुए।
क्रम बिगड़ने की शुरूआत 1971 में हुई।इसके साथ ही
लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव भी अलग -अलग होने लगे।
इससे सरकार व राजनीतिक दलों का खर्च बढ़ गया।
1967 में चुनी गई लोक सभा को तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने बीच मेें ही भंग कर दिया।1971 में पहली बार लोक सभा का मध्यावधि चुनाव हुआ।
इंदिरा जी की सरकार को बहुमत नहीं था और इस स्थिति में वह असंतुष्ट थीं।
1969 में कांग्रेस में महा विभाजन हुआ ।वह एक अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रही थींं।
संसद में कोई भी महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास कराने से पहले समर्थक दलों पर निर्भर रहना पड़ता था।
इस स्थिति से तंग आकर प्रधान मंत्री कई हफ्तों तक सोचती रहीं कि चुनाव कराया जाए या नहीं।
सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से कि पूर्व राजाओं के विशेषाधिकारों को खत्म करने का उनका निर्णय गैर संवैधानिक है,श्रीमती गांधी की द्विविधा समाप्त हो गई।
1971 में चुनाव कराने का सीधा राजनीतिक लाभ इंदिरा गांधी को मिला।उनकी पार्टी इंका को बिहार में भी उतनी अधिक सीटें मिल गर्इं जितनी सीटें अविभाजित पार्टी को 1967 के चुनाव में भी नहीं मिली थीं।
कांग्रेस @संगठन @को बिहार में सिर्फ तीन सीटें मिल पार्इं।
@इस लेख का संपादित अंश 21 अप्रैल 2019 के दैनिक भास्कर,पटना में प्रकाशित@
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कांग्रेस टूटी तो पहला मध्यावधि चुनाव हुआ-सुरेंद्र किशोर
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आजादी के बाद अब तक कायदे से लोक सभा के सिर्फ 14 चुनाव ही होने चाहिए थे।
पर लोक सभा की आयु के घटते -बढ़ते के कारण अभी 17 वीं लोक सभा के लिए चुनाव हो रहे हैं।
1952 से 1967 तक समय पर चुनाव हुए।
पर 1971 से यह सिलसिला बिगड़ गया।
1971 में चुनी गई लोक सभा की आयु 1977 तक के लिए बढ़ा दी गई थी।
1980 और 1984 में समय से पहले चुनाव हुए तो
1989 में चुनी गई संसद भी पांच साल पूरा नहीं कर पाई।
1996 ,1998 और 1999 में लोक सभा के चुनाव हुए।
क्रम बिगड़ने की शुरूआत 1971 में हुई।इसके साथ ही
लोक सभा और विधान सभाओं के चुनाव भी अलग -अलग होने लगे।
इससे सरकार व राजनीतिक दलों का खर्च बढ़ गया।
1967 में चुनी गई लोक सभा को तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने बीच मेें ही भंग कर दिया।1971 में पहली बार लोक सभा का मध्यावधि चुनाव हुआ।
इंदिरा जी की सरकार को बहुमत नहीं था और इस स्थिति में वह असंतुष्ट थीं।
1969 में कांग्रेस में महा विभाजन हुआ ।वह एक अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रही थींं।
संसद में कोई भी महत्वपूर्ण प्रस्ताव पास कराने से पहले समर्थक दलों पर निर्भर रहना पड़ता था।
इस स्थिति से तंग आकर प्रधान मंत्री कई हफ्तों तक सोचती रहीं कि चुनाव कराया जाए या नहीं।
सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से कि पूर्व राजाओं के विशेषाधिकारों को खत्म करने का उनका निर्णय गैर संवैधानिक है,श्रीमती गांधी की द्विविधा समाप्त हो गई।
1971 में चुनाव कराने का सीधा राजनीतिक लाभ इंदिरा गांधी को मिला।उनकी पार्टी इंका को बिहार में भी उतनी अधिक सीटें मिल गर्इं जितनी सीटें अविभाजित पार्टी को 1967 के चुनाव में भी नहीं मिली थीं।
कांग्रेस @संगठन @को बिहार में सिर्फ तीन सीटें मिल पार्इं।
@इस लेख का संपादित अंश 21 अप्रैल 2019 के दैनिक भास्कर,पटना में प्रकाशित@
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