बुधवार, 24 अप्रैल 2019

इलेेक्शन रेफरेंस
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हर बार बढ़ती ही गई 
 दागी सांसदों की संख्या
     सुरेंद्र किशोर  
आजादी की स्वर्ण जयंती के अवसर पर भारतीय  संसद की विशेष बैठक हुई।संसद ने सर्वसम्मत  प्रस्ताव पास किया।प्रस्ताव के जरिए  भ्रष्टाचार  समाप्त करने ,राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त करने के साथ- साथ चुनाव सुधार करने का संकल्प किया गया। 
जनसंख्या वृद्धि,निरक्षरता और बेरोजगारी को दूर करने के लिए जोरदार राष्ट्रीय अभियान चलाने का भी संकल्प किया गया।’
   उसके छह माह बाद मुख्य चुनाव आयुक्त एम.एस.गिल ने देश के सभी 43 राजनीतिक दलों से  अपील की कि आप चुनाव में अपनी ओर से आदर्श इंसान को  उम्मीदवार बनाएं ताकि राजनीति में अपराधियों के प्रवेश पर काबू पाया जा सके।
 2002 में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से एक ऐसा कानून बना जिसके तहत उम्मीदवारों को अपने बारे में विवरण देेना अनिवार्य हो गया।
वे  शैक्षणिक योग्यता,संपत्ति और आपराधिक मुकदमों का विवरण नामांकन पत्र के साथ ही दाखिल करते हैं।
   इसके बावजूद  विधायिकाओं में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों का  प्रवेश  रोका नहीं जा सका। 1996 के लोक सभा चुनाव में विभिन्न दलों की ओर से 40 ऐसे व्यक्ति लोक सभा के सदस्य चुन लिए गए थे जिन पर गंभीर आपराधिक मामले अदालतों में चल रहे थे।
उनमें से दो बाहुबली बिहारी सांसदों ने 1997 में  लोक सभा के अंदर ही आपस में मारपीट कर ली।संसद का सर्वसम्मत प्रस्ताव उसके तत्काल बाद ही आया।
   पर बाद के चुनावों में भी राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को संसद-विधायिकाओं में भेजना जारी रखा ।उस प्रस्ताव की लाज नहीं रखी गई।निवत्र्तमान लोक सभा में उनकी संख्या बढ़कर 186 हो चुकी है।
 2009 में गठित लोक सभा के  30 प्रतिशत सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे थे।
2014 में गठित लोक सभा में उनकी संख्या बढ़कर 34 प्रतिशत हो गई।
 अब देखना है कि मौजूदा  चुनाव के बाद जो लोक सभा गठित होगी,उसमें उनकी संख्या  कितनी होती है।
@इस लेख का संपादित अंश 24 अप्रैल, 2019 के दैनिक भास्कर,पटना में प्रकाशित@ 

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