इलेक्शन रेफरेंस
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--नौ वोट से जीत जबकि रद हो
गए थे करीब 11 हजार मत पत्र - सुरेंद्र किशोर-
जीत के अंतर से अधिक मतपत्र यदि रद हो जाएं तो उसे आप क्या कहेंगे ?
इसे मतदाताओं की जागरूकता की कमी कही ही जा सकती है।
हालांकि चुनावी धांधली भी एक कारण रहा।
1998 के लोक सभा चुनाव के समय बिहार में कुछ वैसा ही हुआ था।
दूसरी ओर, यदि जीत के अंतर से अधिक मत ‘नोटा’ के पक्ष में पड़ जाए तो उसे लोकतंत्र के प्रति उदासीनता या फिर व्यवस्था के प्रति रोष कहा जा सकता है।यह चिंताजनक स्थिति है।
मध्य प्रदेश विधान सभा के गत चुनाव में ऐसा ही हुआ।
वहां के 22 विधान सभा क्षेत्रों में जितने लोगों ने ‘नोटा’ का बटन दबाया,उन क्षेत्रों में हार -जीत के बीच का अंतर उससे
कम था।
‘नोटा’ को हतोत्साहित करने की कोशिश तो हो रही है।पर 1998 की चुनावी कथा तो अब कहानी ही बन कर रह गई।
क्योंकि इवीएम मशीनों ने मत पत्रों की जगह ले ली है।
1998 में मुंगेर,राजमहल,किशनगंज,विक्रमगंज और सिंहभूम लोस क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर मत पत्र रिजेक्ट किए गए ।
उसके कई कारण था।
तब तक झारखंड नहीं बना था।सन 2000 में राज्य का बंटवारा हुआ।
सिंहभूम और राजमहल क्षेत्र दक्षिण बिहार में थे।
आदिवासी बहुल क्षेत्र राजमहल में 11043 मत पत्र रद हुए ।जबकि, उस क्षेत्र में भाजपा के सोम मरांडी ने मात्र नौ मतों से कांग्रेस के थाॅमस हांसदा को हराया था।
चुनावों के इतिहास में ऐसा शायद ही कहीं हुआ होगा !
अविभाजित बिहार में लोक सभा के 53 चुनाव क्षेत्र थे।
उस साल कुल मिलाकर पूरे बिहार में 5 लाख 87 हजार मत पत्र रद करने पड़े थे।
सिंहभूम क्षेत्र में 14 हजार 383 मत पत्र रद हुए थे।
जबकि वहां कांग्रेस की जीत का अंतर करीब 10 हजार था।
@9 अप्रैल 2019 के दैनिक भास्कर -पटना में प्रकाशित@
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